स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के सपनों का भारत

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
26-02-2022 10:13 AM
Post Viewership from Post Date to 26- Mar-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2005 117 2122
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के सपनों का भारत

जिस प्रकार किसी भोजन की थाली में परोसे गए अलग-अलग व्यंजन स्वाद में वृद्धि करते हैं, ठीक उसी प्रकार किसी देश का समुचित अर्थात अलग-अलग क्षेत्रों में किया जाने विकास, देश की तरक्की में वृद्धि करता है। इसे उदाहरण के तौर पर समझें तो देश को केवल संसाधन सम्पन्न बनाने के साथ-साथ देशवासियों की मानसिकता का भी विकास हो तो, ऐसे देश में रहना निश्चित तौर पर आनंददायक होगा। कुछ ऐसी ही क्रांतिकारी सोच लेकर धरा में पैदा हुए थे, महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती।
जब भी आधुनिक भारत के महान चिंतकों, विचारकों और समाज सुधारकों का जिक्र आता है तो, आर्य समाज के संस्थापक रहे महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती का नाम बड़े ही गर्व के साथ लिया जाता है। स्वामी जी को बचपन में मूलशंकर के नाम से पुकारा जाता था। भारतीय इतिहास में वे एक क्रांतिकारी चिंतक रहे हैं, जिन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त को स्वंत्रता दिलाने के लिए मुम्बई में 7 अप्रैल, 1875 के दिन आर्यसमाज की स्थापना की।
एक संन्यासी के तौर पर उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। उनके द्वारा दिया गया नारा 'वेदों की ओर लौटो' आज भी सामाजिक जागरूकता की क्रांति ला सकता है। वह वेदों के महान ज्ञाता और प्रबल वख्ता थे इसलिए उन्हें ऋषि की उपाधि दी जाती है। उनके द्वारा कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया गया। सर्वप्रथम उनके द्वारा ही 1876 में 'स्वराज्य' का नारा दिया गया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक द्वारा आगे बढ़ाया गया। उनका मानना था की 'हिंदू' शब्द विदेशियों की देन हैं और 'फारसी भाषा' में इसके अर्थ 'चोर, डाकू' इत्यादि हैं। इसलिए उन्होंने देशभर में आर्य समाज को आह्वान दिया की सभी सदस्य स्वयं को हिन्दू के बजाय सनातनी से संबोधित करें, और परिचित करवायें। उनके क्रांतिकारी विचारों ने उनके बाद के कई महापुरुषों को प्रभावित किया जिनमें मादाम भिकाजी कामा,भगत सिंह, पण्डित लेखराम आर्य, स्वामी श्रद्धानन्द, चौधरी छोटूराम पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद 'बिस्मिल', महादेव गोविंद रानाडे, लाला लाजपत राय इत्यादि कुछ प्रमुख नाम हैं। स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थपित आर्य समाज को एक हिन्दू सुधार आन्दोलन के रूप में देखा जाता है। यह आन्दोलन, हिन्दू धर्म में पश्चात् विचारों के प्रभाव को देखते हुए इसमें सुधार की इच्छा से शुरू हुआ। आर्य समाज के सदस्य मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अन्धविश्वासों का पूरी तरह से खंडन करते थे, तथा शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे।
इन्होने संमाज में फैले छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया। आर्य समाज का मूल ग्रन्थ "सत्यार्थ प्रकाश" है जिसकी रचना स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा की गई थी। आर्य समाज का आदर्श वाक्य है: कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, अर्थात विश्व को आर्य बनाते चलो।
उन्होंने भारतीय समाज और धर्म की अवधारणा पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ा।धार्मिक विश्वासों के उनके तार्किक, वैज्ञानिक और आलोचनात्मक विश्लेषण तथा देवत्व की धारणा में क्रांति लाने के कारण ही उन्हें महर्षि की उपाधि दी गई। उनके द्वारा दी गई शिक्षाएं आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी की तब थी। उन्होंने किसी जाति विशेष का प्रचार करने के बजाय 'सार्वभौमवाद (universalism)' का प्रचार किया।
यद्यपि वे वास्तव में कभी भी सीधे तौर पर राजनीति में शामिल नहीं थे, लेकिन उनकी राजनीतिक टिप्पणियां भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई राजनीतिक नेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई। एक प्रबल उदाहरण के तौर पर वह 1876 में 'स्वराज्य' के लिए 'इंडिया फॉर इंडियन (India for Indian)' के रूप में आह्वान करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने छात्रों को वेदों और समकालीन अंग्रेजी शिक्षा दोनों का ज्ञान प्रदान करने के लिए एंग्लो-वैदिक स्कूलों की शुरुआत भी की, जिसने क्रांतिकारी रूप से भारत की शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से बदल दिया। उनकी वाकपटुता ने ईसाई धर्म और इस्लाम के साथ-साथ जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म जैसे धर्मों के, उनके तार्किक, वैज्ञानिक और आलोचनात्मक विश्लेषण ने कई लोगों की आंखें खोल दीं। वह बड़ी ही निडरता से मूर्तिपूजा और मिथ्या कर्मकांड पर व्यर्थ जोर देने के खिलाफ अपनी राय देते थे, और जन्म से जाति और वेदों को पढ़ने से महिलाओं के बहिष्कार जैसे मानव निर्मित आदेशों के खिलाफ खड़े हुए। स्वामी दयानद का मानना था कि वेदों के संस्थापक सिद्धांतों से विचलन के कारण हिंदू धर्म भ्रष्ट हो गया था और पुजारियों के आत्म-उन्नति के लिए हिंदुओं को पुरोहितों द्वारा गुमराह किया गया था। लेकिन कट्टर हिंदू धर्म के खिलाफ उनके मजबूत उपदेशों के कारण उन्होंने अपने कई दुश्मन भी बना लिए थे।
आर्य समाज के दस बुनियादी सिद्धांत हैं:
1. ईश्वर सभी आध्यात्मिक और भौतिक विज्ञानों और उनके माध्यम से ज्ञात हर चीज का प्राथमिक कारण है।
2. ईश्वर विद्यमान, बुद्धिमान और आनंदमय है। वह निराकार, अनादि, अतुलनीय, सहारा देने वाला और सबका स्वामी, सर्वज्ञ, अविनाशी, अमर, निडर, शाश्वत, पवित्र और ब्रह्मांड का निर्माता है।
3. सभी वेद सच्चे ज्ञान के ग्रंथ हैं। सभी आर्यों का कर्तव्य है कि उन्हें पढ़ें, उन्हें पढ़ते हुए सुनें और दूसरों को सुनाएं।
4. सत्य को स्वीकार करने और असत्य को अस्वीकार करने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।
5. सभी कर्म धर्म के अनुरूप अर्थात सही और गलत का विचार करके ही करना चाहिए।
6. समस्त विश्व का कल्याण करना अर्थात समस्त मानव जाति के भौतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक कल्याण में सुधार करना ही आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य है।
7. सभी लोगों को उनकी योग्यता के अनुरूप प्यार, निष्पक्षता और उचित सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए।
8. मनुष्य को हमेशा ज्ञान को बढ़ावा देना चाहिए और अज्ञान को दूर करना चाहिए।
9. केवल अपने कल्याण में ही संतुष्ट नहीं रहना चाहिए, बल्कि दूसरों के कल्याण का प्रयत्न करना चाहिए।
10. परोपकारी, सामाजिक नियमों का पालन करने के लिए बाध्य होना चाहिए, तथा व्यक्तिगत कल्याण के नियमों के पालन के अनुरूप सभी को स्वतंत्र होना चाहिए।

संदर्भ
https://bit.ly/3viW2ZB
https://bit.ly/3veVsMp
https://bit.ly/3Hjibcu
https://en.wikipedia.org/wiki/Arya_Samaj

चित्र संदर्भ   

1. स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. वेद ज्योतिष को दर्शाता चित्रण (flickr)
3. आर्य समाज को समर्पित टिकट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.