बाओ हाऊस कला शैली का इतिहास‚ परिचय तथा इसकी प्रभावशाली भारत यात्रा

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बाओ हाऊस कला शैली का इतिहास‚ परिचय तथा इसकी प्रभावशाली भारत यात्रा

बाओ हाऊस कला (Bauhaus Art) 1920 और 1930 के दशक में प्रयोगात्मक यूरोपीय कला (European art) के कई आउटलेट्स पर चित्रों और ग्राफिक्स से लेकर वास्तुकला और अंदरूनी हिस्सों तक काफी हावी रही। यद्यपि यह जर्मनी (Germany) के साथ सबसे अधिक निकटता से जुड़ी हुई है‚ इसने सभी पृष्ठभूमि के कलाकारों को आकर्षित और प्रेरित किया। आज इसका प्रभाव संग्रहालय की दीवारों के भीतर‚ उपनगरीय सड़क पर तथा दुनिया भर में कला और डिजाइनों में पाया जा सकता है। बाओ हाऊस का शाब्दिक अनुवाद “निर्माण घर” है‚ 1919 में‚ जर्मन वास्तुकार वाल्टर ग्रोपियस (Walter Gropius) ने एक छत के नीचे कला की सभी शाखाओं को एकजुट करने के लिए समर्पित एक स्कूल‚ स्टैट्लिच बाओ हाऊस (Staatliches Bauhaus) की स्थापना की। स्कूल ने यूरोप के सबसे महत्वपूर्ण प्रयोगात्मक कार्यों के लिए एक केंद्र के रूप में काम किया‚ जिसमें जोसेफ अल्बर्स (Josef Albers)‚ वासिली कैंडिंस्की (Wassily Kandinsky) और पॉल क्ली (Paul Klee) जैसे प्रसिद्ध कलाकारों ने प्रशिक्षकों के रूप में अपनी विशेषज्ञता को पेश किया। बॉहॉस का उद्देश्य कलाकृतियों की आत्मा के साथ व्यावहारिक वस्तुओं का निर्माण करते हुए ललित कला और कार्यात्मक डिजाइन को फिर से जोड़ना था। 1920 के दशक के मध्य तक इस दृष्टि ने कला और औद्योगिक डिजाइन को एकजुट करने पर जोर दिया और बाओ हाऊस की सबसे मूल और महत्वपूर्ण उपलब्धियों को रेखांकित किया। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बाओ हाऊस की कई सबसे प्रभावशाली और स्थायी उपलब्धियां पेंटिंग और मूर्तिकला के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी थीं। स्कूल अपने असाधारण संकाय के लिए भी प्रसिद्ध है‚ जिन्होंने बाद में पूरे यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में आधुनिक कला और आधुनिक विचार के विकास का नेतृत्व किया। यह स्कूल अंततः अपने स्वयं के आधुनिक कला आंदोलन में बदल गया‚ जो वास्तुकला और डिजाइन के लिए अपने अद्वितीय दृष्टिकोण की विशेषता है। आज‚ बाओ हाऊस अपने कला और शिल्प के साथ-साथ आधुनिक और समकालीन कला पर इसके स्थायी प्रभाव के साथ ललित कलाओं को जोड़ने के अद्वितीय सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। एक शैक्षणिक संस्थान के रूप में बाओ हाऊस ‚ वीमर (Weimar)‚ डेसाऊ (Dessau)‚ और बर्लिन (Berlin) नामक तीन शहरों में मौजूद था। वीमर में ग्रोपियस (Gropius) ने बाओ हाऊस के आने की नींव रखी थी‚ तथा यहीं पर उन्होंने ऐसे आदर्श स्थापित किए जिन्हें उस समय के लिए दूरदर्शी माना गया। बाओ हाऊस के सुनहरे दिनों में डेसाऊ (Dessau) को आकर्षक का केन्‍द्र माना जाता था। इसने बड़े पैमाने पर उपभोग के लिए नए औद्योगिक उत्पादों को डिजाइन करने का मार्ग प्रशस्त किया। अधिकांश उत्पाद और डिज़ाइन जो आज प्रसिद्ध हैं‚ वे डेसाऊ से ही आए हैं। बाओ हाऊस की शैली को आमतौर पर आधुनिकता के साथ‚ कला और शिल्प आंदोलन के संयोजन के रूप में वर्णित किया जाता है। इस प्रकार‚ बाओ हाऊस डिजाइन की पेंटिंग‚ वास्तुकला‚ या इंटीरियर डिजाइन तथा अन्य में थोड़ा अलंकरण और संतुलित रूपों और अमूर्त आकृतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। आज बाओ हाऊस को आधुनिक वास्तुकला और फर्नीचर के उत्प्रेरक के रूप में और 20 वीं शताब्दी के मध्य चित्रकला और मूर्तिकला पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव के रूप में श्रेय दिया जाता है। यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थल‚ बाओ हाऊस डेसाऊ सहित कुछ इमारतों को पर्यटन स्थलों और गृह संग्रहालयों में बदल दिया गया है‚ जबकि कई प्रमुख आधुनिक कला संग्रहालय‚ कला के कार्यों को अपने स्थायी प्रदर्शन और लोकप्रिय प्रदर्शनियों में शामिल करते हैं। अभिव्यक्तिवादी मास्टर्स पॉल क्ली (Paul Klee) और वासिली कैंडिंस्की (Wassily Kandinsky)‚ और यूरोपीय अवंत-गार्डे के अन्य महत्वपूर्ण कलाकार‚ बाओ हाऊस स्कूल से जुड़े कुछ शिक्षक थे। जहां हिटलर (Hitler) के जर्मनी से बचने के लिए जर्मन और अन्य बाओ हाऊस शिक्षक भाग गए थे‚ वहीं दिल्ली के कानविन्दे और बंगाल के हबीब रहमान (Habib Rehman) दोनों को ग्रोपियस ने हार्वर्ड (Harvard) और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Massachusetts Institute of Technology) में पढ़ाया था। कानविन्दे और रहमान 20 वीं सदी के सबसे प्रभावशाली डिजाइन आंदोलनों में से एक‚ बाओ हाऊस को भारत लाए। कम से कम एक हजार इमारतें जैसे दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद‚ और नेहरू विज्ञान केंद्र‚ मुंबई‚ बौहौस दर्शन से प्रेरित कानविन्दे द्वारा बनाए गए थे। रहमान के बाओ हाऊस से प्रेरित हाउसिंग मॉडल को भारत के शहरों में लाखों में दोहराया गया। 1933 में कला विद्यालय बंद होने के बाद‚ पूर्व सोवियत संघ (USSR)‚ भारत‚ उत्तर कोरिया (North Korea)‚ हंगरी (Hungary)‚ चिली (Chile) और चीन (China) सहित बाकी दुनिया में बॉहॉस के विचारों‚ वास्तुकला और लोकाचार को फैलाने के लिए कई पूर्व छात्रों और शिक्षकों को जर्मनी से बाहर कर दिया गया। इसके बाद दिल्ली में किरण नादर म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट (Kiran Nadar Museum of Art) ने “मूविंग अवे” (Moving Away) नामक एक विशेष प्रदर्शनी को एक साथ लगाया‚ जिसमें यह देखा गया है कि बाओ हाऊस के विचार अन्य देशों में कैसे आए और विशिष्ट स्थानीय परिस्थितियों के लिए खुद को अनुकूलित कैसे किया। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में कला आंदोलन की पहली प्रदर्शनी 1922 में कलकत्ता में “कलकत्ता में बाओ हाऊस” शीर्षक से आयोजित की गई थी। इस प्रदर्शनी की कल्पना इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट (Indian Society of Oriental Art) और स्टेला क्रैमरिश (Stella Kramrisch) द्वारा की गई थी‚ जिन्होंने विश्व में भारतीय और यूरोपीय कला का इतिहास फैलाया था। शांतिनिकेतन में भारती विश्वविद्यालय ने जर्मनी से कलकत्ता तक बाओ हाऊस कलाकारों द्वारा कई प्रिंटों को पारित करने में सहायता की। यह उस समय की बात है जब रवींद्रनाथ टैगोर भारत और यूरोप के बीच सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक वार्ताकार थे‚ एवं अपनी इस प्रतिभा के लिए वे साहित्य में नोबेल पुरस्कार भी जीत चुके थे। बॉहॉस कला तथा आधुनिकतावादी वास्तुकला से प्रभावित होकर रविन्द्रनाथ टैगोर ने विश्वभारती स्कूल की स्थापना की।

संदर्भ:

https://bit.ly/3eefSLY
https://bit.ly/3EplU6W
https://bit.ly/3ElHNnC
https://bit.ly/3qchjjy
https://bit.ly/3stVhM4

चित्र संदर्भ
1. बॉहॉस, डेसौस (Bauhaus, Dessaus) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. बॉहॉस संग्रहालय वीमारो को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3.बॉहॉस आर्ट को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. बाओ हाऊस कला शैली को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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