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भारत में मजबूत लोकतांत्रिक प्रणाली और चौकस सुरक्षा महकमे की बदौलत आज हमारे देश में
"डाकू" शब्द पुरानी किताबों और फिल्मों में केवल एक बुरे किरदार के रूप में दर्ज हो गए हैं। लेकिन
आज से केवल एक सदी पूर्व ही लगभग, अंग्रेज़ों के शाशनकाल के दौरान भारत में डाकुओं का
भयावह आतंक व्याप्त था। उस समय किसी की जुबान पर डाकू शब्द सुनते ही शरीर में सिहरन
दौड़ जाती थी। डाकुओं का अधिपत्य केवल जमीनी भू भाग तक ही सीमित नहीं था, वरन विशाल
महासागरों में भी डाकुओं के द्वारा किये गए लूटपाट और खून खराबे के किस्से बेहद मशहूर हैं। इन
डाकुओ को अक्सर समुद्री लुटेरा भी कहा जाता है।
समुद्री डाकू अथवा लुटेरे के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द पाइरेट्स (pirates), लैटिन शब्द पिराटा
(pirata) से निकला एक शब्द है, और जिसका अर्थ है 'प्रयास' या 'अनुभव' जो मुख्य रूप से 'समुद्र
पर भाग्य' की कोशिश करने वाले सामाजिक खंडों को दर्शाता है, और समुद्र में किए गए
आपराधिकता के विभिन्न पहलुओं से जुड़े लोगों की विभिन्न श्रेणियों का प्रतिनिधित्व करता है।
इस शब्द के केंद्रीय पहलू के रूप में समुद्र या किनारे पर डकैती के साथ ही कई तरह की संबद्ध
आपराधिक गतिविधियाँ शामिल हैं। जिनमें जहाजों और माल पर हमला और जब्ती, फिरौती, पैसे
के बदले में व्यापारियों और शासकों को समुद्र में कैद या यातना देना शामिल है।
समुद्री डकैती उतनी ही पुरानी है, जितना कि समुद्री व्यापार। फिर भी हिंद महासागर में समुद्री
डकैती का इतिहास जटिल है, और अन्य जगहों पर समुद्री डकैती के इतिहास से अलग माना जाता
है। दरअसल हिन्द महासागर एक "मुक्त समुद्र" था, जहां व्यापारी औपचारिक अनुमति के बिना
व्यापार और नेविगेट (Navigate) कर सकते थे। 1650 और 1720 के बीच, के युग को 'चोरी का
स्वर्ण युग' कहा जाता था। 17वीं शताब्दी के भारत में सूरत, उपमहाद्वीप का सबसे धनी बंदरगाह
था। यहां ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company)के पहले प्रतिनिधि 24 अगस्त 1608 को
हेक्टर जहाज पर पहुंचे थे, और यहीं पर कंपनी ने ग्यारह साल बाद अपना पहला व्यापारिक पोस्ट
स्थापित किया था।
सूरत ने पश्चिम एशिया के साथ मुगल साम्राज्य की प्राथमिक व्यापारिक कड़ी के रूप में कार्य
किया। मुगलों ने अकबर के शासनकाल के दौरान 1573 में बंदरगाह पर नियंत्रण हासिल कर लिया
था। कहा जाता है कि यहां से सीमा शुल्क और अन्य बकाया से लगभग 4 लाख सालाना राजस्व
प्राप्त होता था। सूरत भारतीय मुसलमानों के लिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह हज यात्रा के लिए
प्रारंभिक बिंदु था। हर साल, तीर्थयात्रियों और कपास, रेशम, गेहूं और कालीनों के भारतीय निर्यात
को ले जाने वाले जहाज सूरत से निकल जाते थे, और सोने और चांदी के बुलियन (Bullion) से लदे
होते हैं।
1695 के अगस्त में, कई लोगों द्वारा 'समुद्री डाकू के राजा' के रूप में संदर्भित व्यक्ति, हेनरी एवरी
(Henry Avery) की नज़र मक्का के बेड़े पर थी। हालांकि एवरी ने रॉयल नेवी में अपना करियर शुरू
किया था, जो 17 वीं शताब्दी के अंत में अफ्रीका और अमेरिका के बीच ट्रांस-अटलांटिक दास व्यापार
में चले गए। आखिरकार, उन्होंने चार्ल्स द्वितीय (Charles II) नामक एक स्पेनिश (Spanish)
अभियान जहाज पर सेवा समाप्त की। लेकिन 1694 में उन्होंने चालकदल के असंतोष का फायदा
उठाकर विद्रोह कर दिया, और जहाज पर कब्जा कर लिया, और इसे फैंसी नाम दिया।
माईओ में पहली समुद्री डकैती करते हुए, एवरी ने अपने जहाज फैंसी को संशोधित किया था,
जिससे यह अटलांटिक को नौकायन करने वाले सबसे तेज जहाजों में से एक बन गया।
1695 में उन्होंने मक्का के बेड़े से खजाने से भरे तीन चेस्ट (Chest) प्राप्त करने की योजना बनाई।
उस दौरान गंज-ए-सवाई, जिसका अर्थ है "अनंत खजाना", नामक जहाज जो सूरत के बंदरगाह में
सबसे बड़ा मुगल जहाज माना जाता था, 400 तोपों से लैस यह जहाज इब्राहिम खान की कमान में
मक्का से लौट रहा था। बोर्ड पर तीर्थयात्री मौजूद थे, साथ ही उसमे भारतीय निर्यात की बिक्री से
अर्जित भारी मात्रा में सोना और चांदी भी था।
सुरक्षा के उद्देश्य से, सवाई ने 24 जहाजों के काफिले में यात्रा की। और एक संक्षिप्त लड़ाई के बाद
इस जहाज पर कब्जा कर लिया गया। अब सारा जहाज उनके वश में आ गया, और वे सब सोना-
चाँदी और बहुत से कैदियों को अपने जहाज पर ले गए। जब उनका जहाज अतिभारित हो गया, तो
वे शाही जहाज को अपनी एक बस्ती के पास समुद्र-तट पर ले आए। यहां एक सप्ताह तक रहने के
बाद, उन्होंने जहाज और उसके यात्रियों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया। कुछ महिलाओं ने मौका
पाकर अपनी इज्जत बचाने के पानी में कूद लगा दी, जबकि कुछ ने चाकू और खंजर से आत्महत्या
कर ली। एवरी के कृत्य ने ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों को गंभीर रूप से खतरे में
डाल दिया। उसे पकड़ने के लिए बड़े इनाम की घोषणा भी की गई लेकिन उसे कभी भी पकड़ा ही नहीं
गया।
समुद्री लुटेरों के संदर्भ में कई प्रसिद्ध पुस्तकें भी लिखी गई है, जिनमे एक पुस्तक "मालाबारी के
समुद्री डाकू" (Pirates of Malabar) भी है। यह पुस्तक अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में समुद्री
लुटेरों के बारे में वर्णन करती है जो वास्तव में मालाबार तट के मराठे थे। मराठा संघ का नेतृत्व
ग्रहण करने के बाद शिवाजी ने तानाजी को मराठा नौसेना का एडमिरल नियुक्त किया। उन्होंने
शुरू में केवल मुगल बेड़े के जहाजों पर हमला किया, लेकिन जैसे-जैसे नौसैनिक रणनीति और
उनके बेड़े का ज्ञान बढ़ता गया, उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता गया, और उन्होंने ईस्ट इंडिया
कंपनी के जहाजों पर भी हमला करना शुरू कर दिया। लगभग साठ वर्षों के नौसैनिक युद्ध के बाद,
अंग्रेज तानाजी के वंशजों को पकड़ने और मारने के बाद भारत के पश्चिमी तट पर नौसैनिक वर्चस्व
स्थापित करने में सफल रहे।
संदर्भ
https://bit.ly/3G6fhrx
https://bit.ly/3pnlokl
https://bit.ly/3DgSfMO
https://bit.ly/3pibtNb
https://bit.ly/3xLabxQ
चित्र संदर्भ
1. समुद्री डाकू जैक एवरी द्वारा मुग़ल जहाज की डकैती को दर्शाता एक चित्रण (wikimeida)
2. सैन सेबेस्टियन डे ला गोमेरा (1743) पर चार्ल्स विंडन के हमले (Charles Windon's attack on San Sebastian de la Gomera) का प्रतिनिधित्व करने वाला भित्ति चित्र (wikimeida)
3. बरामद हुए लुटे गए समुद्री डाकू खजाना को दर्शाता एक चित्रण (wikimeida)
4. मालाबार के समुद्री डाकू (Pirates of Malabar) पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (wikimeida)
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