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गंगा नदी मत्स्य पालन दुनिया की सबसे बड़ी मछली पकड़ने वाली आबादी में से
एक का समर्थन करती है। एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में‚ गंगा लगभग
10-13 मिलियन नदी के मछुआरों और लगभग 300 मीठे पानी की मछली
प्रजातियों का भी समर्थन करती है। लेकिन बड़े बांधों‚ बैराजों और जल-विद्युत
परियोजनाओं‚ उग्रता पूर्वक परिवर्तित नदी प्रवाहों‚ प्रदूषण के खतरनाक स्तर‚
नदियों और आर्द्रभूमि के बीच जलविज्ञान संयोजकता के खंडीकरण‚ नदी किनारे
अतिक्रमण‚ बड़े पैमाने पर रेत खनन और मछली संसाधनों के अनियंत्रित
अतिदोहन के कारण‚ मछली संसाधनों में तेजी से गिरावट आ रही है। सरकार
द्वारा गंगा को न केवल ‘गंगा माता’ के रूप में‚ बल्कि ‘नौवहन गलियारा’
(‘navigational corridor’) के रूप में भी संबोधित किया जा रहा है‚ जिसमें विश्व
बैंक से वित्त पोषण के साथ हर 100 किलोमीटर के बाद बैराज बनाने की योजना
है।
गंगा के मूल में सैकड़ों जलविद्युत बांध‚ गंगा के पारिस्थितिकी स्वरूप को बदल
रहे हैं। नदी मत्स्य पालन‚ लाखों लोगों को पोषण और आजीविका सुरक्षा प्रदान
करते हैं‚ इस तथ्य के बावजूद भी स्वतंत्र भारत में नदी मत्स्य पालन का स्थान
अस्पष्ट रहा है। स्वतंत्रता के बाद के जल प्रबंधन संभाषण में नदीयों को‚ पानी‚
सिंचाई‚ जल आपूर्ति तथा जल विद्युत के समीकृत किया गया है। नदी मत्स्य
पालन जैसे क्षेत्रों पर सिंचाई‚ जल आपूर्ति और जल विद्युत बांधों से पड़ने वाले
गहरे प्रभावों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है। मत्स्य पालन अपनी
सीमा के पार‚ हिंसक सामाजिक संघर्षों के साथ-साथ दुर्लभ तथा घटते संसाधनों के
साथ राजनीति और अभिगम पर प्रतियोगिता के परिणाम के रूप में‚ आर्थिक
अव्यवहार्यता और पारिस्थितिक पतन के संकेत दिखाते हैं। मत्स्य पालन से
संबंधित गंभीर समस्याओं के पीछे एक प्रमुख कारक बड़े बांधों‚ बैराजों और जल
विद्युत परियोजनाओं द्वारा नदी के प्रवाह की मात्रा और मौसमी गतिशीलता में
गंभीर परिवर्तन है।
10.86 मिलियन से अधिक भारतीय‚ जीविका तथा बाजार आधारित मत्स्य पालन
के लिए नदियों‚ झीलों‚ बाढ़ के मैदानों‚ मुहल्लों‚ तालाबों और टैंकों पर निर्भर हैं।
नदीयों के मत्स्य पालन का पूर्ण योगदान आर्थिक दृष्टि से बहुत बड़ा नहीं हो
सकता है‚ यह ग्रामीण गरीबों की आजीविका तथा पोषण सुरक्षा में एक बहुत ही
महत्वपूर्ण घटक है। नदियों के स्वास्थ्य में गिरावट के साथ‚ नदी मत्स्य पालन
तेजी से घट रहा है और नष्ट हो रहा है। नदी मत्स्य पालन की स्थिति सीधे तौर
पर नदी क्षेत्रों की घटती जैव-भौतिकीय‚ पारिस्थितिक और सामाजिक अखंडता को
दर्शाती है। मौजूदा नदी में मत्स्य पालन‚ समग्र अंतर्देशीय मछली उत्पादन में
केवल 10% का योगदान करती है। यह उत्पादन आज भी अत्यधिक टिकाऊ नहीं
है और इसमें अत्यधिक मछली पकड़ने के गंभीर स्तर के सभी संकेतक हैं। जैसे;
बिहार में नदी मत्स्य पालन‚ अब उत्तरी पश्चिम बंगाल और असम के बाजारों के
लिए‚ छोटे आकार की फिश फ्राई (Fish Fry) भी बटोरती है‚ जहां छोटी मछली
खाना एक स्वादिष्ट व्यंजन है। गंगा बेसिन की स्थिति को स्पष्ट रूप से समझने
के लिए‚ 2012 में उत्तर भारत के 5 राज्यों में‚ 17 नदियों में फैले हुए 59
मछुआरे समूहों के 372 मछुआरों पर एक विस्तृत तथा बड़े पैमाने पर साक्षात्कार
सर्वेक्षण किया गया था। इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य गंगा क्षेत्रों में मछली
पकड़ने के मुद्दों और समस्याओं के बारे में‚ पारंपरिक मछली पकड़ने वाले
समुदायों की धारणाओं का दस्तावेजीकरण करना था। जिसमें उत्तरदाताओं में से‚
90% ने “बड़े बांधों और खराब नदी प्रवाह” को पिछले 4 दशकों में मत्स्य पालन
और मछली संसाधनों में लगभग कुल गिरावट का मुख्य कारण बताया। लोगों ने
कम पानी की उपलब्धता और बड़े बांधों द्वारा मछली के प्रवासी मार्गों को रोकना‚
मछली की गिरावट का मुख्य कारण बताया था। तथा पूर्वी‚ उत्तरी यूपी और बिहार
के लगभग 45% लोगों ने फरक्का बैराज को मुख्य समस्या बताया था। 1975 में
फरक्का बैराज को चालू करने से पहले‚ मछली बंगाल की खाड़ी से इलाहाबाद
प्रवास कर चुकी थी। फरक्का के बाद‚ हिल्सा मछली की उपज 1960 के दशक में
91 किग्रा/किमी से गिरकर इलाहाबाद में 2006 तक लगभग शून्य हो गई। जल
प्रवाह की मात्रा मत्स्य पालन को कैसे प्रभावित करती है‚ इसे हुगली मुहाना
उदाहरण द्वारा अच्छी तरह से स्पष्ट किया जा सकता है‚ जहां फरक्का बैराज को
चालू करने के बाद पानी की मात्रा में भारी उछाल के परिणामस्वरूप मुहाना मछली
पालन में‚ 9482 टन (1966-75: पूर्व फरक्का अवधि) से 62000 टन (1999-
2000) तक तेज वृद्धि हुई।
दूसरी ओर मछलियाँ पृथ्वी के ताज़े पानी के कशेरुकियों में सबसे अधिक
संकटग्रस्त समूह बन गई है। पिछले 40 वर्षों में औसतन ताज़े पानी में मछली की
आबादी में 76% की गिरावट आई है। क्षतिग्रस्त मछली समुदाय तथा घटते मत्स्य
पालन‚ ऑस्ट्रेलिया (Australia) सहित वैश्विक ताज़े पानी के वातावरण को
चिह्नित करते हैं। मछलियाँ अपने जीवन चक्र को पूरा करने के लिए प्रवास करती
हैं‚ लेकिन जल-संसाधन विकास‚ नदी संयोजकता तथा प्रवास को बाधित करते हैं‚
जिससे जैविक विविधता और मत्स्य पालन को खतरा होता है। भंडारण और
सिंचाई‚ सड़क और रेल परिवहन तथा जल विद्युत योजनाओं के लिए लाखों बांध‚
मेड़ और छोटे अवरोधक‚ दुनिया भर की नदियों में मछलियों के प्रवास को रोकते
हैं। ये बाधाएं जल आपूर्ति‚ परिवहन और ऊर्जा के लिए हमारी जरूरतों को पूरा
करती हैं। लेकिन‚ मछली प्रवास में बाधा डालकर‚ वे पारिस्थितिक अखंडता को भी
अवक्रमित करते हैं तथा खाद्य सुरक्षा को कम करते हैं। खाने के लिए मछलियों
पर निर्भर रहने वालों के लिए यह अच्छी खबर नहीं है। मेकांग (Mekong) नदी में
मछली 70% से अधिक लोगों के लिए पशु प्रोटीन की आपूर्ति करती है‚ लेकिन
बांध निर्माण के बाद से मछली पकड़ने में भारी गिरावट आई है। बाधाओं को दूर
करने में मछलियों की मदद करने का एक तरीका फिशवे (fishways) या “फिश
लैडर” (fish ladders) का निर्माण करना है। फिशवे को यात्रा करने वाली मछलियों
की सहायता करने के लिए‚ उच्च स्तर के बांधों तथा मेड़ों या निम्न स्तर के सड़क
संगम तथा बैराजों जैसी बाधाओं पर ऊपर या नीचे की ओर रूपांकित किया गया
है। इन्हें कठिन-अभियांत्रिकी डिज़ाइन द्वारा “तकनीकी” तथा प्राकृतिक धारा प्रवाहों
की नकल करके “प्रकृति की तरह” के रूपों में वर्गीकृत किया गया है। मछलियों पर
पड़ने वाले बांधों के प्रभाव को कम करने के लिए‚ नदी-बेसिन पैमाने पर अवरोधकों
के प्रबंधन में सुधार‚ पर्यावरण प्रवाह और पानी की गुणवत्ता‚ बाधाओं को दूर करना
तथा बेहतर फिशवे डिजाइन विकसित करना‚ जैसी समस्याओं के समाधान पर
ध्यान देने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय स्तर पर सुधारों में तेजी लाने का एक
तरीका नियमित अंतराल पर जलमार्ग बाधाओं को नियमित रूप से पुन: लाइसेंस
देने के लिए कानून पारित करना है। अर्थात पुराने अवरोधों का पुनर्मूल्यांकन किया
जाए तथा जहां आवश्यक हो उन्हें उन्नत बनाया जाए या हटा दिया जाए।
एनएसडब्ल्यू वियर रिमूवल प्रोग्राम (NSW Weir Removal Program) के तहत‚
14 अनावश्यक अवरोधों को हटा दिया गया है‚ तथा अन्य का मूल्यांकन किया जा
रहा है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3GhSn1g
https://bit.ly/3mbBixR
https://bit.ly/3beHrmA
चित्र संदर्भ
1. विद्युत परियोजना की वजह से 12 किमी क्षेत्र में सूखी पड़ी मंदाकिनी नदी का एक चित्रण (Etvuttarakhand)
2. गंगा नदी में मछली पकड़ते मछुआरों का एक चित्रण (youtube)
3. उत्तराखंड के टिहरी बांध का एक चित्रण (youtube)
4. पानी के आभाव में सूखी नदी का एक चित्रण (Shutterstock)
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