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निहारी‚ भारतीय उपमहाद्वीप का एक स्टू (Stew) है‚ जिसमें धीमी गति से पका
हुआ मांस होता है‚ मुख्य रूप से गाय‚ भेड़‚ बकरी‚ मुर्गी के मांस व अस्थि मज्जा
के साथ। “निहारी” अरबी शब्द “नाहर” से आया है‚ जिसका अर्थ है “सुबह”। यह
मूल रूप से मुगल साम्राज्य में नवाबों द्वारा उनकी इस्लामी सुबह की प्रार्थना फज्र
के बाद नाश्ते के रूप में खाया जाता था। यह बाद में अपने ऊर्जा-वर्धक गुणों के
कारण मजदूर वर्ग के लिए एक नियमित नाश्ते का व्यंजन बन गया था। कई
स्रोतों के अनुसार‚ निहारी या तो हैदराबाद या पुरानी दिल्ली में 18वीं शताब्दी के
अंत में मुगल साम्राज्य के अंतिम दौर में या अवध की शाही रसोई में‚ आधुनिक
लखनऊ‚ उत्तर प्रदेश‚ भारत में उत्पन्न हुआ था।
यह मूल रूप से नाश्ते के व्यंजन के रूप में‚ खासकर ठंडी सुबह में‚ खाली पेट
खाया जाता था। निहारी भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के समग्र व्यंजनों के
साथ विकसित हुआ। यह बांग्लादेश के कुछ हिस्सों‚ विशेष रूप से ढाका और
चटगांव में एक पुराना लोकप्रिय व्यंजन है। जिसे पूरी रात पकाया जाता था और
सुबह सूर्योदय के समय खाया जाता था। यह व्यंजन मूल रूप से अपने तीखेपन
और स्वाद के लिए जाना जाता है।
निहारी दिल्ली‚ भोपाल और लखनऊ के मुसलमानों का पारंपरिक व्यंजन है। 1947
में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के बाद‚ उत्तरी भारत के कई उर्दू
भाषी मुसलमान कराची और ढाका चले गए‚ और रेस्तरां स्थापित किए। कराची में‚
निहारी एक शानदार सफल व्यंजन बन गया और जल्द ही पूरे पाकिस्तान में पाया
जाने लगा। अब निहारी दुनिया भर के पाकिस्तानी रेस्तरां में उपलब्ध है। एक
विशेष पसंदीदा नल्ली निहारी है‚ जो निहारी में जोड़े गए मज्जा के साथ बनाई
जाती है‚ और स्टू को बहुत समृद्ध बनाती है।
कुछ रेस्तरां में‚ प्रत्येक दिन के बचे हुए निहारी में से कुछ किलो अगले दिन के
बर्तन में डाला जाता है। निहारी के इस पुन: उपयोग किए गए हिस्से को तार कहा
जाता है‚ और माना जाता है कि यह अद्वितीय स्वाद प्रदान करता है। पुरानी
दिल्ली के कुछ निहारी दुकानों में एक सदी से भी अधिक पुराने तार के अटूट होने
का दावा किया गया है। निहारी का उपयोग बुखार‚ नासास्त्राव और सामान्य सर्दी
के घरेलू उपचार के रूप में भी किया जाता था।
मुगल राजधानियों‚ अवध और दिल्ली में विशेष रूप से मुगल शासन के तहत कुछ
महानतम पाक रत्न देखे गए। खमेरी रोटी के साथ नल्ली निहारी‚ पुरानी दिल्ली के
सबसे पसंदीदा पारंपरिक नाश्ते में से एक है। इतिहासकारों का दावा है कि निहारी
को पुरानी दिल्ली में विकसित किया गया था‚ जबकि कुछ का कहना है कि यह
बेहतरीन अवधी खानसामा की उपज थी‚ और पुरानी दिल्ली की रसोई में इसको
अंतिम आकार मिला। निहारी को मुगलों द्वारा लाए गए भोजन में भारत-फारसी
प्रभाव का एक ऑफ-शूट (off-shoot) भी कहा जाता है।
प्रसिद्ध लेखिका और कार्यकर्ता‚ सादिया देहलवी बताती हैं‚ “दिल्ली सल्तनत के
बाद से दिल्ली ने भोजन के हार्दिक मेल का आनंद लिया है‚ जबकि परिष्करण
मुगलों के साथ आया था। समृद्ध मुगलई भारतीय स्वाद और जायके के साथ
अपनी फ़ारसी बारीकियों के साथ फैल गये और जादू बिखेर दिया। यह उस समय
के दौरान था जब दिल्ली के व्यंजन वास्तव में दुनिया भर में सबसे अमीर
पाकशाला किरायों में से एक के रूप में उभरने लगे थे।”
दिल्ली पवेलियन के कार्यकारी सूस-बावर्ची (Sous Chef)‚ महाराज कुशा माथुर
बताते हैं‚ कि कैसे अवध का प्रसार दिल्ली से काफी अलग है। “यह सब सामग्री
और मसालों का खेल है। दिल्ली के मांसाहारी भोजन में उल्लेखनीय अंतर हैं।
उदाहरण के लिए‚ दिल्ली का निहारी‚ अवध के हल्के और थोड़े पीले रंग के
संस्करण की तुलना में अधिक लाल-नारंगी है। निश्चित रूप से दोनों में अंतर है‚
जो वर्षों तक बना रहा और विकसित हुआ और दिल्ली के लिए अद्वितीय बन
गया।”
मुगलों और भारत के व्यंजनों में उनका योगदान भारतीय पाकशाला इतिहास में
सबसे बड़े मील के पत्थर में से एक है। निहारी कुछ ही वर्षों में जनता और मुगल
सेना का पसंदीदा बन गया था‚ जो अपने ऊर्जा-बढ़ाने वाले गुणों के कारण और
दिल्ली की सर्दियों की सुबह से गुजरने के लिए उपभोग किया जाने लगा था।
परंपरागत रूप से‚ निहारी को मुगल किलों और महलों के निर्माण में शामिल
मजदूर वर्ग के मजदूरों के लिए बड़े बर्तनों में रात भर 6-8 घंटे के लिए तैयार
किया जाता था। मजदूरों को सुबह सबसे पहले मुफ्त में परोसा जाता था। मक्खन
और मसालेदार निहारी को आटे से सील करके रात भर धीमी गति से पकने के
लिए छोड़ दिया जाता है जब तक मांस पूरी तरह से पिघल कर स्टू की बनावट के
साथ मिल न जाए। चूंकि मांस को धीमी आग पर रात भर पकाया जाता है‚
इसलिए इन बर्तनों को 'शब देग' (shab deg) या रात भर के बर्तन कहा जाता है।
इसमें लगभग 50 विभिन्न प्रकार के मसालों का उपयोग किया जाता है‚ जिसमें
सामान्य गरम मसाला‚ जीरा‚ इलायची‚ लौंग के साथ-साथ एक विशेष प्रकार का
समुद्री झाग भी शामिल है‚ इसे अक्सर भेजा के साथ जोड़ा जाता है और ऊपर से
अदरक‚ कटा हरा धनिया‚ हरी मिर्च और घी डाला जाता है। खमेरी रोटी के साथ
निहारी का सबसे अच्छा आनंद लिया जाता है।
हाजी शब्रती निहारीवाले और कल्लू निहारीवाले पुरानी दिल्ली के कुछ सबसे पुराने
और पसंदीदा निहारी दुकानें हैं। कहा जाता है कि निहारी से पेट इतना भारी होता
है‚ कि पुराने जमाने में रईस इसकी थाली खाकर जोहर या दोपहर की नमाज़ तक
झपकी लेते थे। सर्दियों का समय इसके लिए सबसे अच्छा है। गर्मी के दिनों में‚
निहारी आसानी से नहीं पचता। न्यू लखनऊ होटल के अली का मानना है कि
बेहतरीन निहारी पकाने का रहस्य अनुपात प्रबंधन में है। “मांस‚ मसाला और देसी
घी तो हर कोई बाजार से खरीदता है‚ लेकिन जब सबसे अच्छे स्वाद की बात
आती है‚ तो यह रसोइए के हाथ में होता है और वह किस अनुपात में मसाला
मिलाता है।” प्रत्येक भोजनालय के अनुपात की अपनी गणना होती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3azGgxL
https://bit.ly/3BsYtJn
https://bit.ly/3oXUYaB
https://bit.ly/3v44jyp
चित्र संदर्भ
1. चिकन निहारी का एक चित्रण (swatisani)
2. निहारी व्यंजन का एक चित्रण (youtube)
3. बड़े पात्र में निहारी व्यंजन का एक चित्रण (flickr)
4. लांब निहारी का एक चित्रण (flickr)
5. बड़े पात्रों में ब्रेन निहारी का एक चित्रण (youtube)
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