दीर्घायु कछुए की खेती और इनका पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग

रेंगने वाले जीव
09-09-2021 06:50 AM
Post Viewership from Post Date to 13- Sep-2021 (5th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1380 237 1617
दीर्घायु कछुए की खेती और इनका पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग

भारत के हर बच्चे की सबसे पहली प्रेरणादायक कहानियों में एक, “खरगोश और कछुए की दौड़” नामक कहानी आपने ज़रूर सुनी होगी, जिसमें तेज़ न चल सकने वाला कछुआ अपनी निरंतरता के बल पर एक, तेज़ लेकिन आलसी खरगोश से जीत जाता है। पृथ्वी पर सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले जानवरों में से एक कछुआ, आज किस्से-कहानियों से ऊपर उठकर मनुष्य जाति के लिए असल जीवन में कई मायनों में महत्वपूर्ण साबित हो रहा है।
दीर्घायु होने के साथ ही कई संस्कृतियों में कछुए को पालने की भी प्रथा है। साथ ही कई देशों में भोजन और पारंपरिक चिकित्सा के लिए भी कछुओं की खेती की जाती है। कछुआ फार्म (Turtle farms) में मुख्य रूप से मीठे पानी के कछुओं को पाला जाता है।
भोजन के लिए कछुआ फार्मों में मुख्य रूप से मीठे पानी के कछुए (चीनी सोफ्टशेल कछुए (Chinese softshell turtles) तथा चिकित्सा हेतु स्लाइडर और कूटर कछुए (sliders and cotter turtles) को पाला जाता है। कछुए की खेती को आमतौर पर स्थलीय और जलीय कृषि के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। व्यापरिक उपयोग हेतु कुछ कछुओं कुओरा मौहोटी (Cuora Mauhoti) को खेतों में भी पाला जाता है। तकनीकी तौर पर विकसित देश जापान को नरम कवच वाले कछुए पेलोडिस साइनेंसिसस्क (Pelodis sinensiscus) की खेती में अग्रणी राष्ट्र माना जाता है, जिसकी खेती को पहली बार सन 1866 में टोक्यो के निकट फुकागावा में कुराजिरो हाटोरी द्वारा शुरू किया गया था। शरू में यहाँ जंगली कछुओं को रखा गया, जिन्होंने वर्ष 1875 से प्रजनन करना शुरू कर दिया था। 20 वीं सदी की शुरुआत तक हटोरी के खेतों में लगभग 13.6 हेक्टेयर क्षेत्र में कछुए के तालाब निर्मित हो चुके थे, जहां वर्ष 1904 में अनुमानित 82,000 अंडे और 1907 में 60,000 कछुओं के उद्पादन का अनुमान लगया गया।
दुनिया से सबसे अधिक कछुओं के फार्म (लगभग 1000 से अधिक) चीन में मौजूद हैं। 5वीं शताब्दी के एक प्राचीन चीनी साहित्य फैन ली की द आर्ट ऑफ फिश-ब्रीडिंग (Fan Li's The Art of Fish-breeding) में लिखा गया है, की पहली बार यहां मछली के भंडारण में संतुलन बनाने के लिए मछली के तालाबों में सॉफ्टशेल (softshell) कछुओं का उद्पादन किया गया। पहले जहां चीन के अधिकांश फार्म यहाँ के दक्षिणी प्रांतों जैसे ग्वांगडोंग(Guangdong), गुआंग्शी(Guangxi), हैनान और हुनान (Hainan and Hunan) इत्यादि क्षेत्रों में स्थित थे, किंतु आज कछुआ पालन के संदर्भ में चीन के झेजियांग (Zhejiang) प्रांत को प्रमुख माना जाता है। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि, चीन के पंजीकृत कछुओं के फार्मों से सालाना लगभग 300 मिलियन कछुओं का निर्यात किया जाता है। थोक मूल्यों में इन कछुओं की कीमत संभवतः 750 मिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई है। इसके अलावा यहां बड़ी संख्या में अपंजीकृत फार्म भी मौजूद हैं। हाल के चीनी आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2008 के अंदर केवल चीनी नरम खोल वाले कछुए का वार्षिक उत्पादन 204,000 टन था।
जापान और चीन जैसे देशों के अलावा दक्षिण - पूर्व एशिया, भारत, थाईलैंड, वियतनाम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में भी लघु अथवा वृहद स्तर पर कई दशकों से कछुओं की खेती की जा रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कछुओं की खेती 1900 की शुरुआत में शुरू हुई। हालाँकि कई दशकों के विभिन्न उपयोगों हेतु कछुओं को पाला और उनका शिकार किया जा रहा है, लेकिन अनियमित शिकार और अस्थिर उद्पादन के कारण आज कछुओं की कई प्रजातियों में नाटकीय रूप से गिरावट देखी गई है। इसी तरह की गिरावट का अनुभव करने वाले कई अन्य देशों ने अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप कछुओं की खपत पर रोक लगाने का फैसला किया है।
भारत में कछुओं के अवैध शिकार और तस्करी की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए, ट्रैफिक (TRAFFIC) ने खुलासा किया कि, सितंबर 2009-सितंबर 2019 के बीच 10 वर्षों की अवधि के दौरान कम से कम 1,11,310 मीठे पानी के कछुए अवैध रूप से बेचे गए। हालांकि वास्तविक संख्या बहुत अधिक हो सकती है। पालतू जानवरों के रूप में, भोजन और दवा के लिए इन कछुओं का शिकार किया गया। भारत के अधिकांश कछुओं और कछुओं की प्रजातियों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की विभिन्न अनुसूचियों के तहत संरक्षित किया जाता है, जिसके तहत प्रजातियों या उनके शरीर के अंगों शिकार, व्यापार या किसी अन्य रूप के उपयोग पर प्रतिबंध है। इनके अवैध शिकार के संदर्भ में भारत के उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल दो प्रमुख हॉटस्पॉट (Hotspot) के रूप में उभरे है।
भारत से कछुओं और मीठे पानी के कछुओं की कुल 14 प्रजातियों का व्यापार किया जाता है, जिनमे से 49 प्रतिशत मामलों में भारतीय स्टार कछुआ जियोचेलोन एलिगेंस (Geochelon elegans) का शिकार किया गया। इसके अलावा 26% प्रतिशत भारतीय सोफ्टशेल टर्टल निल्सोनिया गैंगेटिका (Indian softshell turtle Nilsonia gangetica), 15% प्रतिशत पंक्टाटा (punctata) और 9% जियोक्लेमीस हैमिल्टन (turtle Geoclemys hamilton) कछुआ शामिल हैं। जियोचेलोन एलिगेंस (Geochelon elegans) कछुए को वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कन्वेंशन (CITES CoP18) की सूची में अनुबंध 2 से अनुबंध 1 में स्थानांतरित किया गया।
जानकारों का मानना है की कछुए मुख्य रूप से जलीय पारिस्थितिक तंत्र को साफ रखते हैं, जबकि कुछ प्रजातियां घोंघे और कीड़ों की आबादी को नियंत्रण में रखने में मदद करती हैं। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित किया जाए।

संदर्भ
https://bit.ly/3nbWeWH
https://bit.ly/3BL2WXq
https://bit.ly/3yTtdRM
https://en.wikipedia.org/wiki/Turtle_farming

चित्र संदर्भ
1. कछुआ फार्म में कछुओं का एक चित्रण (envato)
2. (चीनी सोफ्टशेल कछुए (Chinese softshell turtles) का एक चित्रण (wikimedia)
3. घरेलु तौर पर पाले गए नन्हे कछुए का एक चित्रण (istockphoto)
4. भारतीय स्टार कछुआ जियोचेलोन एलिगेंस (Geochelon elegans) का एक चित्रण (flickr)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.