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सुई प्राचीन काल का एक विशेष उपकरण है जिसकी शुरूआत लगभग 40‚000 वर्ष पूर्व हो गयी
थी। आविष्कारों के दौर में से सुई का आविष्कार सबसे पुराना माना जाता है जिसे कपड़ा
पुरातत्वविद् एलिजाबेथ वेलैंड बार्बर (Elizabeth Wayland Barber) द्वारा स्ट्रिंग क्रांति (string
revolution) कहा जाता था। प्राचीन काल में जो सुइयाँ जानवरों की हड्डियों, सींगों और दातों
द्वारा बनाई जाती थी उन्हें हिमयुग में‚ लगभग 10‚000 से 12‚000 साल पहले और उसके
बाद ठंडे क्षेत्रों में मानव बस्ती के फैलाव को संभव बनाने में काफी मदद की‚ और उनका उपयोग
मछली पकड़ने वाले जाल बनाने और बैग में ले जाने के लिए भी किया जाता था। आज भी इस
बात के कई प्रमाण हैं कि ग्रेवेटियन द्वारा‚ सुइयों का प्रयोग न केवल गर्मी के लिए खाल की
सिलाई करने के लिए किया जाता था‚ बल्कि सामाजिक और कामुक प्रदर्शन के लिए कपड़ों की
सिलाई और सजावट के लिए भी किया जाता था।
सिलाई मशीन की सुइयां माइक्रोन-विशिष्ट (micron-specific) होती हैं और इसके निर्माण के
लिए विशेष प्रयोजन मशीनों की आवश्यकता होती है। एक सुई के निर्माण में 150 से अधिक
चरण होते हैं। एक अच्छी गुणवत्ता वाली सुई‚ उत्पाद को सिलने के साथ-साथ उत्पादकता के
सौंदर्यपूर्ण परिष्करण के लिए भी आवश्यक होती है। जैसे एक कढ़ाई मशीन को एक बार में
1000 से अधिक सुइयों की आवश्यकता होती है। चमड़े की सिलाई के लिए‚ सुइयों में बिंदु
शैलियों की विस्तृत श्रृंखला होती है।
सुई निर्माण में भारत विश्व की राजधानी बना हुआ है। सिलाई के लिए इस्तेमाल की जाने
वाली एक सिलाई सुई‚ एक ऐसा पतला उपकरण है‚ जिसके एक छोर में नुकीला सिरा होता है
तथा दूसरे छोर पर एक छेद या आंख बनी होती है। प्राचीन काल में सुइयां हड्डी या लकड़ी की
बनी होती थी। आधुनिक सुइयां उच्च कार्बन स्टील के तार से निर्मित होती हैं तथा जंग प्रतिरोध
के लिए निकल या 18K गोल्ड प्लेटेड (gold plated) होती हैं। उच्च गुणवत्ता वाली कढ़ाई सुइयों
को दो-तिहाई प्लैटिनम (platinum)और एक तिहाई टाइटेनियम (Titanium)मिश्र धातु के साथ
बनाया जाता है। परंपरागत रूप से‚ सुइयों को छोटी डिबिया या सुईकेस में रखा जाता था‚ जो
एक सजावट की वस्तु का कार्य भी करता था। सिलाई की सुइयों को एक एतुई में भी रखा जा
सकता है‚ एक छोटा सा बॉक्स जिसमें सुई और अन्य सामान जैसे कैंची‚ पेंसिल और चिमटी
रखी होती हैं।
सिलाई मशीन की शुरुआत तब से हुई जब 1850 के दशक में प्रसिद्ध इसहाक सिंगर (Isaac
Singer) और एलियास हवे (Elias Howe) ने सिलाई मशीन की खोज की। उन्होंने सिलाई
मशीन के पेटेंट (Patent)अधिकारों के संदर्भ में अदालत में मुकदमा लड़ा। जिसमें इसहाक सिंगर
इस मुकदमे को हार गए। लेकिन‚ सिंगर की व्यापारिक प्रवृत्ति और भी तेज हो गई। सिंगर ने
एलियस हॉवे से उनके पेटेंट अधिकार खरीदने के बाद सिलाई मशीन में कुछ विशेष सुधार किए
और किस्त बिक्री की विचारधारा को शुरू किया। ऐसा करने से मशीनों के व्यापार में काफी हद
तक विकास हुआ और उन्हें काफी लाभ होने लगा।
1860 में सिलाई मशीन सुई की खोज करने का अवसर सबसे पहले जर्मनी (Germany) के दो
आविष्कारकों लियो लेममर्ट (LeoLammertz) और स्टीफन बियेसेल (Stephan Beissel) को
मिला। वे गुणवत्ता और उच्च उत्पादकता जैसे कार्यों के लिए मशीनों में विशेष प्रकार के तकनीकी
सुधार लाए। बियेसेल ने 13 अक्टूबर 1853 में इस कार्य की शुरुआत की और लियोलेममर्ट ने 1
अक्टूबर 1861 को एक सिलाई मशीन सुई प्लांट की स्थापना की। 1911 तक‚ लेममर्ट ने
15‚000 कर्मचारियों को एकत्रित कर दिया था तथा काफी हद तक वृद्धि कर चुके थे बल्कि
बियेसेल की वृद्धि ज्यादा आशाजनक नहीं थी। स्मेत (Schmetz) और सिंगर ने 1922 में
जर्मनी (Germany) में सिलाई मशीन सुई कारखानों की शुरुआत की थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुई कारखानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा।
बेल्जियम (Belgium) और नीदरलैंड (Netherland) की सीमा के निकट आचेन (Aachen) क्षेत्र
एक थिएटर था जिसमें 1944 में सम्पूर्ण शत्रु सेना द्वारा उत्तरी जर्मनी (Northern Germany)
में प्रवेश किए जाने पर भीषण युद्ध लड़ा गया था। इस लड़ाई के दौरान आचेन को भारी
नुकसान पहुंचा। इसी लड़ाई में लेममर्ट (Lemmertz) का कारखाना कई कारखानों के साथ नष्ट
हो गया था। युद्ध के पश्चात सभी कारखानों का फिर से निर्माण किया गया और सिलाई मशीन
सुई ब्रांड‚ लैमर्ट्ज़‚ राइन‚ बेका‚ मुवा‚ श्मेट्ज़‚ सिंगर (Lammertz‚ Rhein‚ Beka‚ Muva‚
Schmetz‚ Singer) आदि दुनिया भर में प्रचलित हो गए। लेकिन‚ जल्द ही ये कंपनियां जर्मनी
की सफलता का शिकार हो गईं। युद्ध के बढ़ने के साथ साथ उत्पादन की लागत भी बढ़ी।
यूरोपीय (European) वस्त्र कारखाने एशिया (Asia) में चले गए और उन्होंने वहां कम कीमतों
की मांग की। इसका परिणाम जर्मन सुई कंपनियों को 1990 से हानि के रूप में देखने को
मिला। उन्होंने एशिया में कम लागत वाले स्थानों को खोजना शुरू कर दिया। इसी चरण में
1996 में अल्टेक (Altek) ने सिलाई मशीन सुई तकनीक को भारत में लाया। तब सुई उद्योग
को सम्पूर्ण भारत में फैलाने के लिए प्रयास किए जा रहे थे और भारत को सुई उद्योग की
दुनिया का केंद्र बनाने का प्रयास किया जा रहा था।
सिलाई का पहला रूप संभवतः जानवरों की खाल को कांटों और नुकीली चट्टानों का उपयोग
करके सुई के रूप में जानवरों की नस या पौधे की सामग्री के साथ धागे के रूप में बांधना था।
प्रारंभिक सीमा में सुई के ढांचे में एक छोटे से पर्याप्त छेद का उत्पादन करने की क्षमता थी‚
जैसे हड्डी का टुकड़ा‚ यह सामग्री को नुकसान नहीं पहुंचाता था। इसके निशान धागों को काटने
के बजाय अलग करके कपड़े में छेद बनाने के लिए सुतारी के उपयोग में बने रहते हैं। एक बिंदु‚
जो हड्डी की सुई से 61‚000 साल पहले का हो सकता है और दक्षिण अफ्रीका (South Africa)
के सिबुडु गुफा (Sibudu Cave) में खोजा गया था। पक्षी की हड्डी से बनी एक सुई और
पुरातन मनुष्यों के लिए जिम्मेदार‚ डेनिसोवन(Denisovan)‚ लगभग 50‚000 वर्ष पुरानी होने
का अनुमान है‚ जो डेनिसोवा गुफा (Denisova Cave) में पाई गई थी। ऑरिग्नेशियन
(Aurignacian) युग में लगभग 47‚000 से 41‚000 वर्ष पूर्व‚ एक हड्डी की सुई को पूर्वी
करावांके (Eastern Karavanke)‚ स्लोवेनिया (Slovenia) में पोटोक गुफा (Potok Cave) में
पायी गयी थी। लिओनिंग प्रांत (Liaoning province) में शियाओगुशन प्रागैतिहासिक स्थल
(Xiaogushan prehistoric site) में पायी गयी हड्डी और हाथी दांत की सुई लगभग 30‚000
से 23‚000 साल पुरानी है। 30‚000 साल पहले रूस (Russia) में कोस्टेनकी स्थल (Kostenki
site) पर हाथी दांत की सुइयां भी मिली थीं।
मूल अमेरिकी (Americans) प्राकृतिक स्रोतों से सिलाई सुइयों का उपयोग करने के लिए जाने
जाते थे। ऐसा ही एक स्रोत‚ एगेव प्लांट (agave plant) है जो सुई और धागा दोनों प्रदान
करता है। एगेव की पत्ती को लंबे समय तक भिगोया जाता है‚ जिससे एक गूदा‚ लंबे रेशेदार तंतु
तथा रेशों के सिरों को जोड़ने वाला एक नुकीला सिरा निकलता है। सुई अनिवार्य रूप से पत्ती की
नोक का अंतिम सिरा होती है। एक बार रेशे सूख जाने के बाद‚ रेशों और सुई का उपयोग
वस्तुओं को एक साथ सिलने के लिए किया जा सकता है। सिलाई सुई तार बनाने की तकनीक
का एक अनुप्रयोग है‚ जो दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में दिखाई देने लगी थी। कांस्य युग के सोने
के टोक़ के कुछ बेहतरीन उदाहरण हैं‚ जो बहुत ही सुसंगत सोने के तार से बने होते थे‚ जो
कांस्य की तुलना में अधिक लचीला होता है। हालांकि‚ तांबे और कांसे की सुइयों को लंबा रखने
की आवश्यकता नहीं होती है‚ तार को वापस खुद पर घुमाकर और डाई के माध्यम से इसे फिर
से खींचकर आंख बनाई जा सकती है। सुई बनाने में अगला प्रमुख बदलाव दसवीं शताब्दी में
चीन (China) से उच्च गुणवत्ता वाली स्टील बनाने की तकनीक के आगमन से आया‚ मुख्यतः
स्पेन (Spain) में कैटलन फर्नेस (Catalan furnace) के रूप में‚ जो जल्द ही महत्वपूर्ण रूप से
उच्च गुणवत्ता वाले स्टील का उत्पादन करने के लिए विस्तारित हुआ। यह तकनीक बाद में
जर्मनी (Germany) और फ्रांस (France) तक फैल गई‚ हालांकि इंग्लैंड (England) में
महत्वपूर्ण रूप से इसका विस्तार नहीं हुआ। इंग्लैंड ने 1639 में रेडडिच (Redditch) में सुइयों
का निर्माण शुरू किया गया‚ जिससे ड्रॉ-वायर (draw-wire) तकनीक का निर्माण आज भी आम
उपयोग में है। 1655 के आसपास‚ सुई निर्माताओं ने लंदन (London) में एक गिल्ड ऑफ
नीडल मेकर(Guild of Needle Maker) स्थापित किया‚ हालांकि रेडडिच (redditch) निर्माण का
प्रमुख स्थान बना रहा। जापान (Japan) में‚ हरि-कुयो‚ टूटी हुई सुइयों का त्योहार‚ 1600 के
दशक का है।सुई इस प्रकार मानवता के नए कल्पनात्मक और अभिव्यक्तियों के साथ निकटता
से जुड़ी हुई थी‚ जिसमें फैशन भी शामिल था।
संदर्भ:
https://bit.ly/3Dp6kZR
https://bit.ly/2UWOOLa
https://bit.ly/3BoN6ln
https://bit.ly/3mBGkEF
चित्र संदर्भ
1. प्राचीन और आधुनिक सिलाई की सुइयों का एक चित्रण (flickr)
2. सिलाई के लिए प्रयुक्त सुई का एक चित्रण (flickr)
3. लियो लेममर्ट (LeoLammertz) द्वारा खोजी गई सुइयों का एक चित्रण (wikimedia)
4. एगेव प्लांट (agave plant), जो सुई और धागा दोनों प्रदान
करता है जिसका एक चित्रण (wikimedia)
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