ग्रामीण जीवन शैली में क्रांति ला सकता है. गोबर-आधारित स्थायी ऊर्जा स्रोत

नगरीकरण- शहर व शक्ति
02-07-2021 09:36 AM
ग्रामीण जीवन शैली में क्रांति ला सकता है. गोबर-आधारित स्थायी ऊर्जा स्रोत

अक्सर लोग पशुधन के गोबर को बेकार समझकर उसे फेंक देते हैं, किंतु इसकी क्षमता या विशेषता वास्तव में हैरान करने वाली है।पशुओं के इस अपशिष्ट का उपयोग ऊर्जा के एक ऐसे स्रोत के रूप में किया जा सकता है,जो बार–बार उपयोग किया जा सके।जैसा कि सब जानते ही हैं, कि बिजली जोकि औद्योगिक विकास के प्रमुख कारकों में से एक है, आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए रीढ़ की हड्डी की तरह कार्य करती है,अर्थात उसे संतुलन प्रदान करती है।भारत, बहुत सारे प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है और देश के भीतर अधिकांश बिजली थर्मल और हाइड्रो-इलेक्ट्रिक संयंत्रों से उत्पन्न होती है। कुछ परमाणु संयंत्र बिजली के लिए राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करते हैं, लेकिन अभी भी कई ग्रामीण क्षेत्र ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं पहुंची है। चूंकि, भारत में मुख्य रूप से ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था है, इसलिए देश के दूरस्थ, अविकसित क्षेत्रों में बिजली उपलब्ध कराना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। बिजली उत्पन्न करने के लिए एक महत्वपूर्ण और अप्रयुक्त स्रोत पशुधन से उत्पन्न बायोमास है।ग्रामीण विकास के लिए कुछ हद तक इसका उपयोग सरकार द्वारा छोटे पैमाने पर बायोगैस आधारित संयंत्रों में बिजली पैदा करने के लिए किया गया है। भारत में पशुधन की आबादी में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 2012 में 5120 लाख से बढ़कर 2019 में लगभग 5360 लाख हो गई थी। हालांकि, मवेशियों की कुल संख्या में यह वृद्धि मामूली है, लेकिन गाय, जो कुल पशुधन आबादी का एक चौथाई से भी अधिक हिस्सा बनाती है, ने 18% की प्रभावशाली वृद्धि दिखाई है। राज्यवार, अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक पशुधन आबादी दर्ज की गई है। इसलिए भारत की बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए विद्युत मंत्रालय ने एक महत्वाकांक्षी ढांचा तैयार किया है, जो कि स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा पर बहुत अधिक निर्भर है। दुनिया की एक तिहाई मवेशियां भारत में मौजूद हैं, इसलिए उसे गोबर या खाद की एक बड़ी मात्रा प्राप्त होती है, जिसमें मीथेन उच्च मात्रा में मौजूद होता है। इस मीथेन को आसानी से बायोगैस में परिवर्तित किया जा सकता है। यदि इस मीथेन (वातावरण के लिए हानिकारक) का उपयोग बायोगैस के निर्माण में किया जाता है, तो यह जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद कर सकता है। अर्थात यह पर्यावरण के भी अनुकूल है।
प्रति वर्ष उत्पन्न होने वाले 2600 मिलियन टन पशुधन गोबर से 263,702 मिलियन घन मीटर बायोगैस उत्पन्न की जा सकती है।यदि इस संसाधन का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग किया जाए, तो इसमें प्रति वर्ष 477 टेरावाट घंटा (TWh) विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता है।पशुधन और पॉल्टी गोबर एक महत्वपूर्ण बायोमास संसाधन है,जो काफी हद तक बर्बाद हो जाता है। लेकिन वर्तमान समय में इसका उपयोग पुनर्चक्रणकार्यों और आधुनिक बड़े पैमाने की डेयरियों में विद्युत ऊर्जा में रूपांतरण के माध्यम से बायोगैस के उत्पादन में किया जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, पशुओं के गोबर से बायोगैस के उत्पादन को अधिकतम करने के लिए अवायवीय पाचन (Anaerobic digestion) तकनीक का काफी उपयोग किया जा रहा है। इसका मतलब यह है,कि आधुनिक अवायवीय पाचन तकनीक बायोगैस, विशेष रूप से मीथेन की उच्च पैदावार में प्रभावी रूप से योगदान दे सकती है।हालाँकि, ऐसी तकनीकों को शुरू करने और वास्तव में उपयोग करने में बहुत सारी अड़चनें हैं। इन बाधाओं में बुनियादी ढांचे के निर्माण में आर्थिक समस्याएं,अपशिष्ट निपटान, संग्रह और प्रबंधन के पुराने और अक्षम तंत्र, अपशिष्ट निपटान के लिए नए विचारों की स्वीकार्यता की कमी आदि शामिल हैं। किंतु बाधाओं के बावजूद,अगर विवेकपूर्ण तरीके से इस गोबर-आधारित स्थायी ऊर्जा स्रोत के एक अंश का भी उपयोग किया जाता है, तो यह ग्रामीण जीवन शैली में क्रांति ला सकता है और ग्रामीण क्षेत्र में बिजली की आवश्यकता वाले आधुनिक उद्योगों की स्थापना में सहायक हो सकता है। इसके अलावा, चूंकि अपशिष्ट निपटान के पारंपरिक तंत्र पहले से ही कार्य कर रहे हैं, इसलिए यह नया उद्यम वर्तमान ग्रामीण जीवन शैली में कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।बायोगैस संयंत्र को आदर्श माना जा सकता है,क्योंकि वे स्वच्छ होते हैं और उन्हें संचालित करने के लिए बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता नहीं होती है। भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता का विस्तार करने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के साथ-साथ बायोगैस भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यदि भारत खाद का पूरी तरह से उपयोग करने में सक्षम है, तो देश 8.75 अरब क्यूबिक मीटर बायोगैस का उत्पादन कर पाएगा, जो कि 11.67 GWh या भारत के 2022 के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य के लगभग 7% हिस्से का उत्पादन करने में सक्षम है। ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो कुछ किसान गोबर का उपयोग खाद के रूप में करते हैं। कई जगहों पर इसे सुखाकर ईंधन के रूप में जलाया भी जाता है, लेकिन फिर भी, इसकी कीमत न्यूनतम है। सरकार ने गुजरात के कई गांवों में बायोगैस प्लांट बनाए हैं, जिनकी मदद से वे खाना पका रहे हैं, और घरेलू वायु प्रदूषण कमहो रहा है। किसान 1 से 2 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से स्लरी (Slurry - जानवरों के अपशिष्ट और पानी को एक साथ मिलाकर बनाया गया एक गाढ़ा तरल) को बेचते हैं,जो खाद के काम आती है।
इस प्रकार यह उनकी आय का स्रोत भी बन जाता है, विशेषकर तब, जब उनकी गाय-भैसें दूध नहीं देती हैं। यह महिलाओं को भी रोजगार प्रदान करने में मदद कर रहा है।संरचनात्मक खामियां और इस पर अधिक ध्यान न देना बायोगैस के तीव्र विस्तार को रोक रहे हैं। अतः इसके लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय को एक ठोस नीतिगत प्रयास की आवश्यकता होगी।पशुधन के अपशिष्ट से बायोगैस प्राप्त करने की पायलट परियोजनाएं पहले से ही शुरू हो चुकी हैं और ऊर्जा के इस हरित और टिकाऊ स्रोत का दोहन करने के लिए इसे और मजबूत करने की आवश्यकता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3jmC4Y8
https://bit.ly/3queuKm
https://bit.ly/3dnZBnv
https://bit.ly/2UciZwU
https://bit.ly/3dkiDeo

चित्र संदर्भ
1. गोबर गैस से भोजन निर्माण करती युवती का एक चित्रण (flickr)
2. बायोगैस सिस्टमगोबर को सस्ती, स्वच्छ शक्ति में बदल देता है जिसका एक चित्रण (flickr)
3. बायोगैस सिस्टम का एक चित्रण (Quora)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.