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जानवर हमेशा से ही हम इंसानों के लिए जिज्ञासा का विषय रहे हैं, यह पारिवारिक मजबूती और प्रकर्ति का संतुलित उपभोग करने के आदर्श उदाहरण होते हैं। प्रत्येक जानवर का स्वभाव और प्रकर्ति एक दूजे से भिन्न तथा विशिष्ट होती है। नेवला भी एक ऐसा ही एक मांसाहारी जानवर होता है, जो गज़ब का रोमांच (Adventure) प्रेमी होता है। साथ ही प्रकृति को खोजने (Explore) करने में भी इसका दूसरा कोई शानी नहीं होता। विश्व भर में नेवलों की लगभग 33 प्रजातियां ज्ञात है, और आगे लेख में हम भारत में पाई जाने वाली इनकी एक बेहद चर्चित प्रजाति भूरे (ग्रे) नेवले (Herpestes edwardsii) के बारे में जानेंगे।
भारतीय ग्रे नेवला (हर्पेस्टेस एडवर्ड्सी) एक प्रसिद्ध नेवला प्रजाति है, जो मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप और पश्चिम एशिया में पाई जाती है। कई भारतीय क्षेत्रों में यह आमतौर पर पाई जाती है, साथ ही इसे IUCN रेड लिस्ट में कम चिंताजनक जानवरों की सूची में शामिल किया गया है। यह अपना बसेरा प्रायः पेड़ों के बीच, बुर्जों, बाड़ों और झाड़ियों में बनाता है, लेकिन कई बार यह चट्टानों या नालियों में भी अपना डेरा बना लेता है। आकार में दूसरे जानवरों से छोटा दिखाई देने वाला यह जीव, ज़बरदस्त साहसी और कुदरत को जानने की तीव्र इच्छा से भरा रहता है। लेकिन इन सभी गुणों में सबसे विशेष गुण, इस जीव का हमेशा सावधान रहने का व्यवहार है। इसकी यही खासियत इसे कई अन्य जीवों से ऊँचे स्तर की श्रेणी में रखती है। साथ ही यह एक कुशल पहाड़ चढ़ने वाला (Climber) जानवर भी है। यह नेवले आमतौर पर अकेले अथवा कभी-कभार जोड़े में भी दिखाई दे जाते हैं, यह प्रायः मांसहारी जीव होते , तथा भोजन में कृन्तकों, सांपों, पक्षियों के अंडों तथा हैचलिंग, छिपकलियों और और ढेरों प्रकार के अन्य जीवों को खाते हैं, यहाँ तक कि चंबल नदी के किनारे यह कभी-कभी घड़ियाल के अंडे का स्वाद लेते हुए भी दिखाई दे जाते हैं।
प्रजनन के परिपेक्ष्य में यह कुछ अन्य जानवरों के विपरीत वर्ष भर प्रजनन करते हैं। भारतीय ग्रे नेवला टैनी ग्रे (Tawny Grey) अथवा आयरन ग्रे (Iron gray) के बाहरी आवरण के साथ अपने साथी प्रजाति के नेवलों की तुलना में अधिक भूरा (मटमैला), ताकतवर और मोटा प्रतीत होता है। इसके पैर, थूथन और आँख के आसपास के बाल शेष शरीर की तुलना में अधिक गाढ़े भूरे होते हैं। इनकी झाड़ीदार पूंछ प्रायः लाल होती है जिसका सिरा कुछ मामलों में हल्का पीला अथवा सफ़ेद होता है। इनका शरीर 36 से 45 सेंटीमीटर तक लम्बा हो सकता है, साथ ही पूंछ की लंबाई शरीर की लंबाई के बराबर ही होती है। इस नन्हे से जीव का शरीर 0.9 से 1.7 किलो तक वजनी हो सकता है। नेवलों में नर, मादाओं की तुलना में अधिक बड़े होते हैं, और भारतीय ग्रे नेवले अपने सामान अन्य स्तनधारियों की तुलना में चार रंगो का अंतर कर सकते हैं। यदि आप जीव जंतुओं से अच्छा लगाव रखते हैं, तो इस नन्हे से जीव को आप पालतू तौर पर भी रख सकते हैं। जैसा की कई अन्य लोग भी करते हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में इन्हे घरों में चूहों, साँपों और अन्य कीटों से बचाव के लिए पालतू जानवर के रूप में रखा जाता है। इसकी शरारत भरी हरकतें तनाव मुक्ति में भी सहायक हो सकती है। इस जीव को पूर्णतया मांसाहारी कहना भी उचित न होगा, क्यों कि कई बार इसे पौंधों के हिस्से, फल:जामुन, और कंद मूल खाते हुए भी देखा जा सकता है। लेकिन यह एक निर्दयी शिकारी भी है, जो अपने शिकार के सिर को धड़ से अलग करके खा जाता है। इस प्रजाति के नेवलों के द्वारा ज़हरीले सांपो का शिकार करके खाने के किस्से भारत में बेहद आम हैं। एक शिकारी के तौर पर इसमें गज़ब की फुर्ती होती है, यह रोचक कलाबाज़ियां करते हुए जहरीले साँपों और बिच्छुओं को बुरी तरह थकाकर मारता है।
नेवलों में मादा की गर्भधारण अवधि 60 से 65 दिनों तक होती है, जहां इसके द्वारा एक बार में दो से चार बच्चों को जन्म दिया जाता है, तथा जंगली तौर पर जीवन व्यतीत करने पर यह बच्चे सात वर्ष और पालतू तौर पर रखे जाने पर इनका जीवनकाल बारह वर्ष तक हो जाता है। इस प्यारे से जीव की इंसानो के प्रति वफादारी जगजाहिर है भारत में इन नेवलों और इंसानो के बीच के रिश्ते को चरितार्थ करते हुए एक बेहद रोचक कहानी जगजाहिर है, जो शायद आपने भी सुनी हो। यह कहानी एक ब्राह्मण की पत्नी और उसके पालतू नेवले की है। "देवाशर्मा नामक एक प्राचीन शहर में "भगवान" नाम के एक प्रसिद्ध ब्राह्मण की पत्नी ने दो बच्चों को जन्म दिया, जिनमे से एक बच्चा नेवले के रूप में पैदा हुआ। वह स्त्री अपने इंसानी और नेवले बच्चे दोनों की सामान परवरिश कर रही थी। वह दोनों को स्तनपान कराती, नहलाती और लाड़-प्यार करती थी। परंतु उसके मन में नेवले की एक आक्रामक छवि थी, वह हमेशा इस भय में रहती कि, नेवला उसके बच्चे को हानि पहुंचा सकता है।
एक बार वह अपने दोनों बच्चों को घर में अकेला छोड़कर बाहर चली गयी और ब्राह्मण भी भीख मांगने हेतु घर से बाहर था। इसी बीच घर में एक जहरीला सांप घुस आया, नेवले ने जब उस सांप को अपने इंसानी भाई के करीब जाते देखा, वह उसपर ज़बरदस्त प्रहार करने लगा। नेवले ने सांप को दो हिस्सों में बाँट दिया। जब उनकी माँ घर में पहुंची तब उसने नेवले के मुँह में खून की बूंदे देखकर यह सोच लिया, की इस नेवले ने मेरे बच्चे को मारकर खा लिया, और क्रोध में आकर, असल सच जाने बिना उसने नेवले को तत्काल ही मार दिया"। ब्राह्मण की पत्नी और नेवले की इस विश्व प्रसिद्ध लोककथा की उत्पत्ति भारत में हुई थी। कहानी का अध्ययन पहली बार 1859 में तुलनात्मक साहित्य के अग्रदूत थियोडोर बेनफे द्वारा किया गया, और चार्ल्स बर्टन बार्बर (Charles Burton Barber) द्वारा 1845 से 1894 के बीच इस लोककथा को पश्चिमी देशों में प्रसारित किया गया। पंचतंत्र की अन्य कहानियों की भांति यह कथा भी संस्कृत से शुरू होकर पश्चिम की अन्य भाषाओँ अरबी (कलिला वा डिमना के रूप में), फारसी, हिब्रू, ग्रीक, लैटिन, पुरानी फ्रेंच, और अंततः यूरोप की सभी प्रमुख भाषाओं में भी अनुवादित की गई हैं जिसने लोकप्रियता के नए आयाम स्थपित किए।
जानवरों से इंसानो का रिश्ता प्राचीन समय से संतुलित चल रहा था, परन्तु यह संबंध कई बार यह इंसानी और प्राकृतिक कारकों से मानव प्रजाति के लिए हानिकारक साबित हुए हैं। उदाहरण के लिए विश्व व्याप्त कोरोना वायरस को जानवरों (चमकादड़) से फैली बीमारी बताया जा रहा है। COVID -19 एक मात्र महामारी नहीं है, जो जानवरों से इंसानों में फैली हो। साथ ही भविष्य में इस प्रकार की दूसरी महामारियां भी फ़ैल सकती है, जिसका सबसे प्रमुख कारण है, कि इंसान जानवरों के साथ अस्वीकार्य व्यवहार करने लगे हैं। जानवरों को बेहद असंतुलित ढंग से पाला जा रहा है, बिना उनके गुण और हानि जाने हुए उनका शिकार किया और उन्हें खाया जा रहा है। कोरोना महामारी मानवता के लिए मात्र एक प्रारंभिक चेतावनी भी हो सकती है, जो जानवरों के प्रति हमारा रवैया और नजरिया बदलने के लिए आई हो।
संदर्भ
https://n.pr/2SFiKKB
https://bit.ly/3cLVphi
https://bit.ly/2TCYN7i
https://bit.ly/3vtPSCx
चित्र सन्दर्भ:
1.भारतीय ग्रे नेवला(wikimedia)
2.भारतीय ग्रे नेवला का चित्रण(wikimedia)
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