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फसलों की सिंचाई करते समय पानी का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए ड्रिप इरिगेशन (Drip
irrigation) प्रणाली का आविष्कार हुआ। ड्रिप इरिगेशन एक प्रकार की सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली है, जिसके
माध्यम से पानी के अनावश्यक उपयोग को कम किया जाता है। पाइप, वाल्व (Valves) और एमिटर
(Emitter) की व्यवस्था के माध्यम से पौधों की जड़ों को इस प्रकार पानी दिया जाता है, कि पानी कहीं
और गिरे बिना धीरे-धीरे पौधों की जड़ों में टपकता है। इसका उद्देश्य पानी को सीधे जड़ क्षेत्र में उपलब्ध
करवाना और वाष्पीकरण को कम करना है। अगर इसे अच्छी तरह से डिजाइन, स्थापित, रखरखाव और
संचालित किया जाता है, तो यह सिंचाई प्रणाली, अन्य प्रकार की सिंचाई प्रणालियों जैसे, सतही सिंचाई
या स्प्रिंकलर (Sprinkler) सिंचाई की तुलना में अधिक कुशल हो सकती है।
आधुनिक ड्रिप इरिगेशन, के
विकास के साथ उपसतह पाइप (Subsurface), छिद्रित पाइप (Perforated pipe), प्लास्टिक एमिटर
(Plastic emitter) आदि का भी विकास हुआ।ड्रिप इरिगेशन या सिंचाई में प्लास्टिक एमिटर के उपयोग
को सिम्चा ब्लास (Simcha Blass) और उनके बेटे यशायाहू (Yeshayahu) द्वारा इज़राइल (Israel) में
विकसित किया गया था। उन्होंने मिलकर 1959 में पहला व्यावहारिक सतह ड्रिप सिंचाई एमिटर
विकसित किया और उसे पेटेंट कराया। इसने दुनिया भर में कृषि में क्रांति उत्पन्न की। 1950 के दशक
के उत्तरार्ध में आधुनिक प्लास्टिक के आगमन के साथ, ब्लास ने अपने बेटे, यशायाहू के साथ अपना
निजी इंजीनियरिंग कार्यालय फिर से खोल दिया, और वाणिज्यिक ड्रिप इरिगेशन के विचार को आगे
बढ़ाया।
जबकि यह तकनीक आज जौनपुर में भी आसानी से उपलब्ध है, लेकिन सरकारी प्रोत्साहनों के बावजूद
भी, अभी तक उच्च निवेश लागत के कारण इस प्रौद्योगिकी का पर्याप्त उपयोग नहीं हो पाया है।चूंकि,
दुनिया की आबादी और पानी की जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है, इसलिए आने वाले दशकों में विश्व
के कई क्षेत्रों में पानी की भारी कमी होने की संभावना है। भारत की यदि हम बात करें, तो यहां
जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि पर दबाव बढ़ता जा रहा है, तथा स्वतंत्रता के अनेकों सालों बाद भी कृषि
मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है। सिंचाई के लिए पानी की अंधाधुंध निकासी के गंभीर परिणाम हुए हैं,
जिससे जल स्तर नीचे चला गया है और शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई के विस्तार ने लवणता
और जल जमाव की समस्या को पैदा कर दिया है। सीमित भूमि और दुर्लभ जल संसाधनों के कारण
कृषि उत्पादन को बढ़ाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए जहां दुनिया भर में
बीजों की नई किस्मों और उनके निहितार्थों पर शोध चल रहा है, वहीं जल दक्षता बढ़ाने के लिए नई
सिंचाई पद्धतियां भी अपनाई जा रही हैं।भारत में किसान कुशल सिंचाई पद्धतियों को अपनाकर पानी
की बर्बादी को काफी हद तक कम करने में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। सिंचाई पद्धति में नवाचार
का उपयोग करने के लिए भारत में विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में 70 के दशक की शुरुआत
में सिंचाई की ड्रिप पद्धति शुरू की गई थी, जिसके सफल परिणाम मिलने के कारण 80 के दशक में
इसे अपनाने की दिशा में गंभीर प्रयास किए जाने लगे।इज़राइल एक ऐसा देश है,जिसने इस तकनीक को
अपनाने के मामले में तीव्र प्रगति की है, यह इस तकनीक का निर्यात भी करता है और इसे वाणिज्यिक
दृष्टि से एक लाभदायक उद्यम बना देता है।
भारत में ड्रिप इरिगेशन को बड़े पैमाने पर अपनाने का लक्ष्य जितना आसान लगता है, उतना आसान
नहीं है। विभिन्न कारकों की वजह से यह बाधाओं और चुनौतियों से भरा है। जनसंख्या का आकार,
आर्थिक रूप से कमजोर किसान और उगाई जाने वाली फसलों का प्रकार आदि कारक इस तकनीक के
तीव्र प्रसार को सीमित करते हैं,और देश में इसकी क्षमता का शत-प्रतिशत उपयोग प्राप्त करने में बाधा
उत्पन्न करते हैं। यदि किसी देश की क्षमता का उचित मूल्यांकन और पहचान की जाती है, तथा
चुनौतियों को सफलतापूर्वक संबोधित किया जाता है, तो ड्रिप इरिगेशन के माध्यम से कृषि उत्पादन में
वृद्धि के साथ-साथ हर साल 50 प्रतिशत से अधिक पानी की बर्बादी को कम कर सिंचाई अभ्यास में
क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। ड्रिप इरिगेशन तकनीक का उद्देश्य वाष्पीकरण या रिसाव के
कारण होने वाली पानी की बर्बादी को खत्म करना है और इससे अधिकतम लाभ प्राप्त करना है।
चूंकि,इस तकनीक का उद्देश्य पानी को बचाना है,इसलिए इसे अपनाना विशेष रूप से भारत के लिए
अपरिहार्य हो जाता है,क्यों कि कई क्षेत्र पानी की भारी कमी का सामना करते हैं, तथा हमें अपनी कृषि
उत्पादकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है।शहरीकरण, औद्योगीकरण और जल स्रोतों का प्रदूषण जैसे
कारक सीमित और दुर्लभ जल संसाधनों पर भारी दबाव डालेंगे। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण
जल संसाधन की उपलब्धता और गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।इसलिए क्षेत्रीय और
मौसमी रूप से होने वाली पानी की कमी को कम करने,खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने और
किसानों की आय बढ़ाने के लिए, ड्रिप इरिगेशन तकनीक का इस्तेमाल अत्यधिक लाभदायक है।किसानों
द्वारा इस तकनीक को अपनाने में मदद करने के लिए भारत सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम
से निरंतर प्रयास किया है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में वर्ष 2015 तक लगभग 33 लाख हेक्टेयर
भूमि को ड्रिप इरिगेशन तकनीक के माध्यम से सींचा गया। किंतु यदि देश के कुल शुद्ध सिंचित क्षेत्र को
देखा जाए, तो यह उपलब्धि बहुत कम है। इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में जहां इसका 90 प्रतिशत तक
उपयोग किया जा रहा है,वहीं कुछ में यह प्रतिशत नगण्य है।इस तकनीक को अपनाने में एक बड़ी बाधा
इसकी उच्च प्रारंभिक लागत है,जो छोटे और मध्यम किसानों को इसे अपनाने से हतोत्साहित करती है।
प्रोत्साहन योजनाओं,मीडिया, प्रशिक्षण कार्यशालाओं आदि के माध्यम से इस तकनीक के लाभों का प्रचार-
प्रसार करके तथा कुछ मौलिक नीतिगत सुधारों के साथ भारत में ड्रिप इरिगेशन तकनीक का विस्तार
किया जा सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3q2eAJ0
https://bit.ly/3gI0Pe2
Drip Irrigation in India - Journal of Geography, Environment ...
https://www.journaljgeesi.com› article › download
https://bit.ly/3vzAZhX
चित्र संदर्भ
1. अद्भुत ड्रिप सिंचाई तकनीक का एक चित्रण (youtube)
2. ओपन प्रेशर मुआवजा ड्रिपर का एक चित्रण (wikimedia)
3. ऑनलाइन ड्रिपर्स द्वारा गमले की सिंचाई का एक चित्रण (wikimedia)
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