समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 725
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
>हमारे घरों में प्रायः लोहे से निर्मित अनेक ऐसे उत्पाद, उपकरण मिल जायेगे, जिन्हें हम उनकी कई विशेषताओं के आधार पर उपयोग करते हैं। वर्तमान में हम सूचना युग में जी रहे हैं और हमारे लिए यह कल्पना करना बेहद रोमांचक होगा की एक ऐसा युग भी था जब लोहे की खोज ने इंसान को अचंभित कर दिया था। तब से लौह धातु से बने अनेक उपकरणों तथा उत्पादों ने हमारे जीवन को बेहद आसान कर दिया है।
दुनिया में लौह युग की शुरुआत रोम और ग्रीस में साम्राज्यों के विस्तार से एक हज़ार साल पहले से ही हो चुकी थी। लौह युग के पूर्व कांस्य युग के दौरान इंसान दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में फैला, और विकास किया परन्तु लौह अयस्क की खोज ने इंसान के दैनिक जीवन में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाये। इस खोज से लोगों की फसल उगाने की शैली से लेकर युद्ध के मैदानों तक भारी क्रांति आयी। लौह युग का आगमन दुनिया के अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर हुआ। औद्योगिक क्रांति के बलबूते लोहा 3,000 से अधिक वर्षों से सबसे आवश्यक तत्व बना हुआ है, जिसने ब्रिटेन को दुनिया की सबसे प्रमुख औद्योगिक शक्ति बनने में योगदान दिया।
इतिहासकारों का मानना है कि इस धातु की खोज संभवत: आकस्मिक हुई थी, जब धरती के कुछ अयस्कों को आग में गढ़ाकर ठंडा किया गया था। 1500 ईसा पूर्व के ज्ञात साक्ष्यों से पता चलता की पश्चिमी अफ्रीका और दक्षिण-पश्चिमी एशिया के बाशिंदों ने सबसे पहले यह अनुमान लगाया कि पृथ्वी से निकलने वाली काली-चांदी की चट्टानों का उपयोग अनेक प्रकार के उपकरण तथा हथियारों को बनाने में किया जा सकता है। खोज के लगभग 500 वर्षों पश्चात लोहा यूरोप पहुंचा, फिर ग्रीस, इटली, मध्य यूरोप और अंत में उत्तर और पश्चिम की यात्रा करते हुए ब्रिटिश द्वीपों तक लोकप्रिय होने लगा। अधिकांश महाद्वीपों में युद्ध के माध्यम से लोहे की तकनीक का प्रसार हुआ। जहां लोहे के हथियारों की ताकत जीत की गारंटी थी। लोहे ने तत्कालीन जीवन को बहुत आसान बना दिया। जहाँ लोग मिट्टी, कांस्य और पत्थर के औजारों से कमरतोड़ मेहनत कर रहे थे, वही खेती में लोहे के उपकरणों जैसे दरांती और हल की युक्तियों ने खेती की प्रक्रिया को और अधिक कुशल बना दिया। अब किसानों को कठिन मिट्टी का दोहन करने, नई फसलों के उद्पादन तथा अन्य गतिविधियों को करने के लिए अधिक समय मिलने लगा। कई परिवारों ने अपने खाली समय को नमक बनाने, कपड़े सिलने, गहने जैसी विलासिता की चीजें बनाने तथा व्यापार और यात्रा करने में बिताया।
लोहे के विस्तार की शुरुवात धीमी थी, परन्तु औद्योगिक क्रांति ने लगभग सब कुछ बदल कर रख दिया। लोहा नई फैक्ट्रियों और उनकी मशीनरी के लिए इतना महत्वपूर्ण था कि इसने ब्रिटेन को अपार प्रसिद्धि दिलाई, क्यों की उसके पास खनिज के अपारं भंडार थे। लेकिन अनुभवी उद्योगपतियों ने जल्दी ही यह अंदाज़ा लगा लिया कि बुनियादी गढ़ा लोहा इतना टिकाऊ नहीं था कि वह अपने उप-उत्पादों को झेल सके। जैसे कि रेल की पटरियों पर ट्रेनों का भार आदि। इसका समाधान निकला स्टील के रूप में यह एक मिश्र धातु है जो ज्यादातर लोहे और कुछ कार्बन या अन्य धातुओं से बनी होती है। 1800 के दशक के अंत में पहली बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन किया गया और वर्तमान में यह दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण निर्माण सामग्रियों में से एक है। 3,000 साल पहले लौह अयस्क को पहली बार जिज्ञासा के साथ जमीन से निकाला गया था। वही नयी खोजों में पुरातत्व विभाग के अनुसार “लौह युग किये गए अन्य दावों की तुलना से 400 साल पहले ही आ चुका था”। उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग के सूत्र 1980 के दशक से अनेक क्षेत्रों में व्यापक खोज कर रहे हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश राजा नल के टीले तथा चंदौली में जौनपुर के कुछ क्षेत्रों में खुदाई से 3200 ईसा पूर्व में लोहे की उपस्थिति का पता लगाया है, जो निर्णायक रूप से यह संकेत देता है कि लौह युग अब तक के विश्वास से तकरीबन 400 साल पहले ही शुरू हो चुका था। उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियोबोटनी द्वारा 3200 ईसा पूर्व का कार्बन दिनांकित एक नमूना प्राप्त किया है। सूत्रों ने कहा कि यह अंकित तारीख भारतीय उपमहाद्वीप में प्राप्त सबसे पुरानी तारीखों में से एक है। उत्तर प्रदेश राज्य के पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए कुछ हालिया उत्खनन के परिणाम स्वरूप 1400 और 800 ईसा पूर्व के बीच की लोहे की कलाकृतियां जैसे कि एक कील, तीर का सिरा, चाकू और एक छेनी रेडियो कार्बन तिथियां लोहे के असर जमा करने के लिए आकृतियां भी प्राप्त हुई हैं। और प्राप्त अवशेषों से यह भी स्पष्ट हुआ की तत्कालीन समय में लोहे के उपकरण आज की तुलना में बेहद कम विकसित थे। उदाहरणतः चाकू की धार से लकड़ी के रेशों को काटा जा सकता था और हड्डी या सींग को काट सकता था, लेकिन यह आरी की तरह सामग्री के छोटे टुकड़ों को नहीं काट सकता था दूसरी तरफ आरी, एक पूरी तरह से नया उपकरण था, जो केवल सतह को चीरने के बजाय लकड़ी को काटने में सक्षम था। आज लोहे की तकनीक बहुत विकसित हो चुकी है जहाँ केवल एक उपकरण से अनेक प्रकार के काम सिद्ध किये जा सकते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/2S6zgma
https://bit.ly/3osxtEd
https://bit.ly/3fpc0I6
https://bit.ly/2S76C4e
https://bit.ly/2S8VpjD
चित्र संदर्भ
1.लौह युग के सिक्कों का संग्रह (wikimedia)
2. प्राचीन काल में लौह पिघलाने का चित्रण(flickr)
3. लौह उत्पादन क्रूसिबल (crucible) तकनीक का एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.