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स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा शुरू किया गया था | अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के आने के बाद उन्होंने ब्रिटेन और यूरोपीय देश के तरीके अपनाने शुरू किये जिसके लिए उन्होंने "राज्य स्वास्थ्य सेवा चलाएं" की शुरुवात की | विकसित देशों ने स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण को ना अपनाते हुए 15 साल पहले ही यह निर्णय ले लिया था की स्वस्थ्य सेवाएं सरकार के द्वारा चलायी जांयेंगी | भारत स्वस्थ्य सेवाओं के निजिकरण के क्षेत्र में काफी तेज़ी से बढ़ रहा है | भारत में सभी सरकारें इसको बढ़ावा दे रही है, यहाँ तक की राजनितिक दल भी | विकसित देशों की तरह भारत में केंद्र और राज्य सरकार को मूल स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी लेने की दिशा में समान रूप(एक ही मूल्य और मानक पर) से कदम बढ़ाने की आवश्यकता है | भारत में बड़े स्तर पर स्वस्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ अस्पतालों में वृद्धि करने की आवश्यकता है जिसका लाभ भारत के प्रत्येक नागरिक को सभी 725 जिलों, 9000 शहरों और 600000 गाँव तक मिले |
नव स्वतंत्र भारतीय राज्य ने स्वास्थ्य को एक अधिकार के रूप में माना था जो सभी नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सरकारी भागीदारी के माध्यम से प्रदान किया जाएगा, यह 1946 में भोरे समिति की रिपोर्ट में व्यक्त किया गया था | जिसने अपनी प्रस्तावना की शुरुआत में ही घोषित कर दिया था कि 'कोई भी व्यक्ति भुगतान करने में असमर्थता के कारण पर्याप्त चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने में विफल नहीं होना चाहिए। लेकिन, 1990 के दशक के बाद अर्थव्यवस्था में शुरू किए गए सुधारों की लहरों ने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्थित उपेक्षा को तेज और वैध कर दिया। सुधारों की पहली लहर को 1990 के दशक में भारत में संरचनात्मक समायोजन के हिस्से के रूप में पेश किया गया था। यह स्वास्थ्य क्षेत्र में सीमित राज्य हस्तक्षेप के विश्व बैंक द्वारा प्रचारित मॉडल पर आधारित था। राज्य की भूमिका को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन में निवेश के रूप में परिभाषित किया गया था, केवल उन स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया था, जिन्हें गैर-बहिष्कृत और गैर-प्रतिद्वंद्वी के रूप में चिह्नित किया गया था, जहां बाजारों को कुशल संसाधन आवंटन में विफल माना जाता है। बड़े स्तर स्वास्थय सुविधा मुहैया का परिणाम निजीकरण था और इसके वजह से लोगो के स्वास्थ्य के क्षेत्र में लागत में वृद्धि हुयी | वैश्विक स्तर पर पहले के सुधारों के खिलाफ बढ़ती आलोचनाओं के कारण इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता थी। सुधारों की इस दूसरी लहर को आमतौर पर "सार्वभौमिक स्वास्थ्य व्याप्ति" कहा जाता है। इस दृष्टिकोण में स्वास्थ्य देखभाल में सरकारी हस्तक्षेप व्यक्तियों के लिए चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करने के लिए व्यापक पहल की गयी |कोविड -19(covid -19 ) महामारी ने हमारे दरवाजे पर दस्तक दी जब भारत अपने स्वास्थ्य क्षेत्र के सुधारों के तीसरे दशक में था। इस महामारी के वजह से भारत की आबादी और अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव पड़े |
स्वास्थ्य सेवा किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण घटक है। इस क्षेत्र में संसाधनों का बजट और आवंटन अत्यधिक विचार के साथ किया जाना चाहिए क्योंकि यह व्यावसायिकता और देश में बुनियादी ढांचे के विकास का आधार है। लोग तब तक काम नहीं कर सकते हैं जब वे बीमार हैं या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं | स्वास्थ्य सेवा एक संवेदनशील मुद्दा है जिसे कुछ देश सरकार के विनियमन और प्रबंधन के लिए छोड़ना पसंद करते हैं, जो कर द्वारा वित्त पोषित है | देश के नागरिक पूर्णतः स्वतंत्र है अपने इलाज के लिए अस्पताल का चयन करने लिए |
स्वस्थ्य सेवाओं के निजीकरण से लाभ:
1. गुणवत्ता- निजी अस्पतालों में चिकित्सक और मरीज़ का अनुपात सरकारी अस्पतालों की तुलना में काफी काम है, जिससे वहां चिकित्सक मरीज़ के साथ ज्यादा समय देता है और अगर कोई मरीज़ भर्ती है तो उसका ध्यान रखा जाता है | साथ ही साफ सफाई की गुणवत्ता भी सरकारी चिकित्सा केन्द्रो से बेहतर होती है |
2. समय पर उपचार- सार्वजनिक संस्थाओं में लंबी कतारें होती हैं और भारी मांग के कारण चिकित्सक से परामर्श करने की अनिश्चितता होती है। एक निजी अस्पताल एक मरीज की सुविधा के आधार पर चिकित्सक की नियुक्तियों को निर्धारित करने का प्रयास करता है | निजी अस्पताल में व्यक्ति चिकित्सक के साथ अपना मिलने का समय ठीक कर सकता है, जबकि सरकारी संस्थाओ में ऐसा नहीं है |
3. दीर्घकालिक दृष्टिकोण और शेयरधारकों का होना - निजी अस्पतालों के द्वारा कोई भी कार्य दूर दृष्टि के सोच पर आधारित होती है और उनमें शेयर धारक होने से सभी का ये प्रयास होता है की अच्छी गुणवत्तावाली चिकित्सा प्रदान की जाये |
स्वस्थ्य सेवाओं के निजीकरण से हानि :
1. खर्च या लागत - निजी क्षेत्र में स्वस्थ्य सेवाएं का लाभ लेने पर अत्यधिक लागत आती है जोकि सभी के लिए वहन कर पाना संभव नहीं है मुख्यतः व्यक्ति पैसे के आभाव में स्वस्थ्य सेवाओं का लाभ लेने के लिए निजी अस्पतालों या चिकित्सा केन्द्र में नहीं जा पता है |
2. भेदभाव-निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को समान सेवा प्रदान करनी चाहिए और समान स्तर पर सुविधा दिया जाना चाहिए। निजी स्वस्थ्य केंद्रों पर संपन्न परिवार वाले रोगियों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया जाता है |
3. अविश्वसनीयता- अधिकांश निजी केंद्र समुदाय की सेवा के बजाय लाभ कमाने से प्रेरित होती हैं, वे प्रबंधन के अनुकूल किसी भी दिन बंद करने का विकल्प चुन सकती हैं। संचालन के संबंध में प्रबंधन एक सरकारी नियामक बोर्ड के प्रति जवाबदेह नहीं है जब तक कि यह अवैध नहीं है। इससे रोगियों को असुविधा हो सकती है या स्वास्थ्य संबंधी अधिक जटिलताएं हो सकती हैं |
संदर्भ
https://bit.ly/3u3uWl9
https://bit.ly/3oyLiAM
https://bit.ly/3yngKql
https://bit.ly/3hDqYNg
https://bit.ly/3eYZPTo
https://bit.ly/3wxMyHx
https://bit.ly/3hD6BzZ
चित्र संदर्भ
1. डॉक्टर का एक चित्रण (unsplash)
2. एक शिशु के मेडिकल चेकअप (flickr)
3.मास्क का एक चित्रण (unsplash)
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