अपने अद्वितीय रंगों और डिजाइनों के लिए जाने जाते हैं, भारतीय कालीन

घर- आन्तरिक साज सज्जा, कुर्सियाँ तथा दरियाँ
01-05-2021 07:32 AM
अपने अद्वितीय रंगों और डिजाइनों के लिए जाने जाते हैं, भारतीय कालीन

कालीन, हर घर के सौंदर्य को बढ़ाने का एक विशेष साधन बन गया है, इसलिए कालीन उद्योग समय के साथ और भी अधिक फलता-फूलता जा रहा है।जौनपुर का कालीन उद्योग लगभग 3500 लोगों को रोजगार प्रदान करता है। इसके अलावा यह क्षेत्र से निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुओं में से एक है। एक अच्छे कालीन को इंटीरियर डिजाइन (Interior design) का मुख्य हिस्सा माना जाता है, क्यों कि यह घर के अंदरूनी हिस्से को सजाने के लिए सतत डिजाइन, पारंपरिक भारतीय शिल्प जैसी मुख्य आवश्यकताओं को पूरा करता है।घर को सजाने के अलावा कालीन के अन्य भी कई उपयोग हैं, जैसे यह ठंडी सतह में व्यक्ति के पैरों को गर्म रखता है,इसकी मदद से बच्चे फर्श पर बैठकर खेल सकते हैं, यह जमीन पर चलते समय आने वाली पैरों की आवाज को कम कर सकता है, आदि। कालीन के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें बुनी हुई कालीन (Woven), नीडल फेल्ट (Needle felt), ग्रंथिल (Knotted) कालीन,गुच्छेदार या ट्फ्टेड (Tufted) कालीन आदि शामिल हैं।भारत में कालीनों के इतिहास की बात करें तो, माना जाता है, कि जब मुग़ल सम्राट बाबर भारत आया, तो उसे यहां विलासिता की कमी महसूस हुई। वह फारस (Persia) की विलासिता से परिपूर्ण वस्तुओं की कमी का अनुभव करने लगा, जिनमें फ़ारसी कालीन भी शामिल थी। इस प्रकार, भारत में अकबर ने 1580 ईस्वी में आगरा के अपने महल में कालीन बुनाई परंपरा की नींव रखी। अकबर ने फारसी शैली के कालीनों के उत्पादन के लिए आगरा, दिल्ली और लाहौर में कालीन बुनाई केंद्र स्थापित किए।


भारत में सबसे शाही कालीनों में से कुछ कालीन मुग़ल काल के हैं, जो ईरान के शहर: किरमान (Kirman), कशान (Kashan), एसफहान (Esfahan) और हेरात (Herat) में बने कालीन के डिजाइनों से प्रेरित हैं। मुगलों ने कालीन बुनाई के लिए न केवल फारसी तकनीक का इस्तेमाल किया, बल्कि वे फारसियों के पारंपरिक डिजाइनों और विशेषताओं से भी प्रभावित थे। अकबर भारत में कुछ फारसी कालीन बुनकरों को लाया और उसने उन बुनकरों को यहां बसाया। इसके बाद यह कला भारत में फलने-फूलने लगी, जिसे शाही पसंद के अनुसार संशोधित भी किया गया।खास बात यह है, कि कालीन निर्माण में फारसी कला के साथ-साथ भारतीय कला को भी शामिल किया गया। धीरे-धीरे बुनकर कालीन कला में निपुण होने लगे, तथा कालीन और भी अधिक सौंदर्यपूर्ण बनते चले गये। भारत में कालीन उद्योग यहां के उत्तरी भाग में अधिक विकसित हुआ। इसलिए कालीन उद्योग के प्रमुख केंद्र कश्मीर, जयपुर, आगरा, भदोही और मिर्जापुर में स्थापित हैं। उत्तर प्रदेश के कालीन विशेष रूप से दुनिया भर में अपने अद्वितीय रंगों और डिजाइनों के लिए जाने जाते हैं। यहां स्थित आगरा मुगल भारत का पहला कालीन केंद्र था, तथा इसे कालीन में प्राकृतिक वनस्पति रंगों के उपयोग लिए जाना जाता है। चूंकि, यह अकबर के साम्राज्य का आधार था, इसलिए कलाकारों को पहली बार यहीं बसाया गया। यह स्थान फारसी शैली के कालीनों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।भारत में कई तरह के कालीन उपलब्ध हैं, जिन्हें समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा उपयोग में लाया जाता है।हाथ से बने कालीनों में मुख्य रूप से फूल, अरबस्क (Arabesques), रोम्बोइड्स (Rhomboids), पशुओं के डिजाइन वाले पैटर्न उपयोग किये जाते हैं। प्रत्येक डिजाइन का एक अनूठा अर्थ है, जैसे वृत्ताकार, टेढ़ी-मेढ़ी और पेड़ की आकृति क्रमशः अनंतता, प्रकाश और खुशी का प्रतिनिधित्व करती है।कालीनों को बनाने के लिए सामान्य तौर पर जो मुख्य सामग्री उपयोग में लायी जाती है, उनमें ऊन, कपास और रेशम शामिल है। ऊन से बने कालीनों के लिए भेड़, ऊंट आदि की ऊन का उपयोग किया जाता है। रेशम का प्रयोग सामान्य तौर पर बारीक कार्य वाले और हल्के कालीनों के लिए किया जाता है। एक अच्छे कालीन के निर्माण में रंगों की भी विशेष भूमिका होती है, इसलिए रंगों का चयन बहुत सावधानी से किया जाता है। कालीन निर्माण में रंग इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्यों कि विभिन्न रंगों का भी अपना अलग-अलग अर्थ होता है। अधिकांश रंगों को प्रायः प्राकृतिक रंजक से प्राप्त किया जाता है।

वर्तमान समय में कोरोना विषाणु अपने खतरनाक रूप में पूरे विश्व में फैल चुका है। इसके प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिले हैं, तथा उन्हीं में से एक कालीन उद्योग भी है। विभिन्न समस्याओं के चलते कालीन उद्योग को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, किंतु कोरोना महामारी और बढ़ती आर्थिक मंदी के बावजूद भी वैश्विक कालीन और दरी बाजार में 2027 तक लगभग 5.5 बिलियन अमेरिकी (American) डॉलर (4,09,29,57,00,000 रुपये) तक की वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है। कोरोना महामारी के फैलने के साथ कई प्रश्न उभरकर सामने आने लगे हैं, तथा उनमें से एक प्रश्न यह भी है, कि कोरोना विषाणु कालीन पर कितने समय तक जीवित रह सकता है? कोरोनो विषाणु का संक्रामक जीवनकाल नमी, तापमान और विषाणु को धारण करने वाली सतह की रंध्रता या छिद्रता पर निर्भर करता है। शुष्क और ठंडा वातावरण विषाणुओं के जीवनकाल में विस्तार करता है, जबकि गर्म वातावरण में यह विस्तार अपेक्षाकृत कम होता है। कोरोना विषाणु छिद्रपूर्ण सतहों की तुलना में ऐसी सतह पर दो गुना अधिक लंबे समय तक बना रह सकता है, जिसमें छिद्र नहीं होते हैं। चूंकि, कालीन को छिद्रपूर्ण सतह वाला माना जाता है, इसलिए बिना छिद्र वाली सतह की तुलना में इसमें विषाणु कम समय तक सक्रिय रहता है। फिर भी, कालीनों से सम्बंधित कुछ सावधानियां हमें अवश्य बरतनी चाहिए,जैसे कालीन को समय-समय पर प्रभावी चीजों से साफ करते रहें तथा सफाई के समय हाथों में दस्ताने अवश्य पहनें। सफाई के तुरंत बाद इन्हें उचित स्थान पर फेंक दें तथा हाथों को अच्छी तरह से पानी से साफ करें।

संदर्भ:
https://prn.to/3etR2Yg
https://bit.ly/3tV5yhV
https://bit.ly/3aCSKW8
https://bit.ly/3xoJTky
https://bit.ly/3nonGyr
https://bit.ly/32QJrxe

चित्र संदर्भ :-
1.कालीन संग महिलाओं का चित्रण (Youtube)
2.कालीनों के साथ महिला का एक चित्रण (Unsplash)
3.कालीनों का एक चित्रण (Unsplash)
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