मनुष्यों और अन्य जीवों के शरीर में अंग पुनर्जनन की क्षमता में भिन्नता

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
09-04-2021 10:01 AM
Post Viewership from Post Date to 14- Apr-2021 (5th day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2088 96 0 0 2184
मनुष्यों और अन्य जीवों के शरीर में अंग पुनर्जनन की क्षमता में भिन्नता


सम्पूर्ण ब्रह्मांड में पृथ्वी ही मात्र एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन मौजूद है। यह जीवन एक दिन में बन कर तैयार नहीं हुआ बल्कि इसको बनने में लाखों-करोड़ों सालों का समय लगा। किसी ग्रह पर जीवन होने के लिए अनेकों कारक उत्तरदायी होते हैं। ग्रह की सूर्य से उपयुक्त दूरी, ग्रह का घूर्णन, वहाँ मौजूद वातावरण, जल, वायु इत्यादि। जब सभी तत्व आवश्यक और उचित स्थिति में कार्य करते हैं तब कहीं जाकर जीवन की उत्पत्ति होती है। इस प्रक्रिया में करोड़ों वर्षों का समय लगता है। यह तो हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर जीवन एक रूप में नहीं है बल्कि यहाँ अनेक जीवित प्राणी विद्यमान हैं। यही नहीं एक ही जीव की विभिन्न प्रजातियाँ यहाँ निवास करती हैं। हम मनुष्य आज जैसे दिखाई देते हैं शुरुआती समय में ऐसे नहीं हुआ करते थे। हममें और अन्य जीव-जंतुओं में इतनी असमानता नहीं थी। उस समय को हम आज पाषाण युग के नाम से जानते हैं। उस समय मनुष्य जंगलों में रहते थे, अन्य जीवों का शिकार करते थे। संक्षेप में जानें तो अन्य जानवरों की भाँति व्यवहार करते थे। पूंछ और सुरक्षा के लिए शरीर पर घने बाल होने के अलावा भी कई विशेषताएँ मानव में थीं। हमने चिड़ियाघरों या किसी पिक्चर में चिम्पैंज़ी या गोरिल्ला अवश्य देखा होगा मनुष्य भी काफी हद तक उसी की भाँति दिखाई देता था। इसलिए चिम्पैंज़ी (Chimpanzee) को मनुष्यों का पूर्वज माना जाता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि यदि हम मनुष्य बंदर या चिम्पैंज़ी के वंशज हैं और हम अन्य जानवरों की तरह हैं तो क्या हमारे अंदर आज भी जानवरों जैसी सभी विशेषताएँ मौजूद हैं? उदाहरण के लिए कुछ जानवर अपने शरीर के कुछ अंगों को शरीर से अलग करने और उन अंगों का पुन: निर्माण करने में सक्षम होते हैं जैसे छिपकली और मेढ़क। यह क्रिया कुछ जीवों जैसे पौधों, प्रोटिस्ट्स (Protists) - एककोशिकीय जीवों जैसे बैक्टीरिया, शैवाल, और कवक और कई जलीय जीवों जैसे केंचुआ और सितारामछली में विकसित होती है। घायल होने पर ये जीव नए सिर, पूंछ और शरीर के अन्य अंग विकसित कर सकते हैं। परंतु क्या हम मनुष्य अपने शरीर के किसी अंग को त्याग कर उस अंग का पुनर्जनन कर सकते हैं? उत्तर है नहीं। इसका कारण यह है कि मानव शरीर की कोशिकाएँ पहले से ही सुरक्षा तंत्र से ढ़की होती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि व्यक्तिगत कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से विकसित न हों। हालाँकि हमारे शरीर की आंतरिक या बाह्य त्वचा में कोई घाव हो जाने पर शरीर स्वत: ही नई त्वचा का निर्माण करता है परंतु हमारा शरीर अधिक जटिल भागों को पुन: उत्पन्न करने में सक्षम नहीं है। आज विज्ञान और तकनीक ने इतनी उन्नति कर ली है कि शरीर के किसी अंग की क्षति हो जाने पर हम कृत्रिम अंग अवश्य लगवा सकते हैं। परंतु अन्य जीवों की भाँति नए प्राकृतिक अंगों का निर्माण हमारे लिए संभव नहीं है। इस क्षेत्र में वैज्ञानिक निरंतर खोज में लगे हैं कि कोई जीव किस प्रकार अंगों का पुनर्जनन करने में सक्षम होता है और क्या हम मनुष्यों के लिए ऐसा करना भविष्य में कभी संभव हो सकेगा। मनुष्य के शरीर की कोशिकाएँ निर्माण की प्रक्रिया को संपन्न करती हैं। नाखूनों और त्वचा का बनना, हड्डियों का जुड़ना आदि इस बात के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। किंतु किसी अंग को पुनर्जीवित करने के लिए हड्डी, माँसपेशियों, रक्त वाहिकाओं और तंत्रिकाओं की आवश्यकता पड़ती है। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार भविष्य में अंग पुनर्जनन भी हमारी चिकित्सा का हिस्सा बनेगा। वर्तमान समय में शोधकर्ताओं के प्रयासों के फलस्वरूप हम कुछ अंग लैब (Lab) में पुन: निर्मित कर सकते हैं। उन अंगों में फैलोपियन ट्यूब (Fallopian Tubes), छोटा-मस्तिष्क, छोटा-हृदय, छोटे-गुर्दे, छोटे-फेफडे, छोटा-पेट, ग्रासनली, कान, यकृत कोशिकाएँ अड़ी सम्मलित हैं। गार्डिनर (Gardiner) कहते हैं कि मनुष्य गर्भ में संपूर्ण अंग प्रणालियों का निर्माण करते हैं। सिर्फ कुछ आनुवंशिक सूचनाओं से एक मानव भ्रूण नौ महीने में एक पूर्ण व्यक्ति के रूप में विकसित हो जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि मनुष्य में पुनर्जनन करने की क्षमता होती है।
वर्ष 2013 में, मोनाश विश्वविद्यालय (Monash University) में एक ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक (Australian scientist), जेम्स गॉडविन (James Godwin) ने पुनर्जनन के रहस्य के कुछ हिस्से को हल करने का सफल प्रयास किया था। उन्होंने पाया कि मैक्रोफेज (Macrophages) नामक कोशिकाएँ, सैलामैंडर (Salamanders) में घाव और निशान ऊतक के निर्माण को रोकती हैं। मैक्रोफेज मानव सहित अन्य जानवरों में भी मौजूद होते हैं, और प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा होते हैं और उनका कार्य संक्रमण को रोकना और सूजन उत्पन्न करना है, जो शरीर के बाकी हिस्सों को यह संकेत देता है कि शरीर के इस हिस्से में मरम्मत की आवश्यकता है। मैक्रोफेज की कमी वाले सैलामैंडर्स अपने अंगों को पुनर्जीवित नहीं कर पाते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार मेंढक के शरीर में मौजूद एक आणविक प्रोटीन रीढ़ की हड्डी की नसों को पुनर्जीवित करने के लिए कोशिकाओं को निर्देश देता है, जबकि मनुष्यों के शरीर में वही प्रोटीन कम निर्देशन करता है और इसके बजाय शरीर में निशान का गठन करता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3wxRIEc
https://bit.ly/2Q1mdBs
https://bit.ly/3cUrOCL
https://bit.ly/3fSFtfz

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र अंग पुनर्जनन को दर्शाता है। (the scorpion and the frog)
दूसरा चित्र छिपकली की पूंछ में पुनर्जनन को दर्शाता है। (फ़्लिकर)
तीसरा चित्र प्रोस्थेटिक्स पैर वाले व्यक्ति को दर्शाता है। (फ़्लिकर)
पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.