पक्षी कैसे इतनी मधुर आवाज़ में गाते हैं?

पंछीयाँ
05-04-2021 09:49 AM
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पक्षी कैसे इतनी मधुर आवाज़ में गाते हैं?


अमेरिकी अक्सर वैज्ञानिकों को निष्पक्ष, उद्देश्य पर्यवेक्षकों के रूप में आदर्श मानते हैं। लेकिन वैज्ञानिक चेतन और अचेतन पक्षपात से प्रभावित होते हैं, जैसे अन्य क्षेत्रों के लोग होते हैं। पक्षियों के मुखर व्यवहार का अध्ययन स्पष्ट रूप से दिखाता है कि अनुसंधान दृष्टिकोण कैसे काम करने वाले लोगों से प्रभावित हो सकते हैं। 150 से अधिक वर्षों में चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) ने लैंगिक चयन पर लिखा जिसमें सभी वैज्ञानिकों ने पक्षी गीत को नर पक्षी की विशेषता माना है और व्यापक रूप से स्वीकार किया गया, दृष्टिकोण यह था कि पक्षी गीत प्रजनन काल के दौरान नर द्वारा उच्चारित लंबे जटिल स्वर हैं, जबकि महिलाओं में इस तरह के स्वर आमतौर पर दुर्लभ या असामान्य होते हैं। लेकिन पिछले 20 वर्षों में, शोध से पता चला है कि कई पक्षी प्रजातियों में नर और मादा दोनों गाते हैं, खासकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में। वेनेजुएला में एक नर और मादा युगल (जो एक उष्णकटिबंधीय प्रजाति है) पर किए गए शोध से पता चला कि वे क्षेत्र का बचाव करने के लिए साल भर ये दोनों गाते हैं । पूर्वी ब्लूबर्ड्स , एक समशीतोष्ण प्रजाति में मादा गीत का अध्ययन किया गया जिसमें मादाएं प्रजनन के मौसम के दौरान अपने साथियों के साथ संवाद करने के लिए गाती हैं।
पक्षियों द्वारा उत्पन्न ध्वनियों को दो अलग-अलग वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है: कॉल (Calls) या आह्वान और गाने (Songs)। एक आह्वान आमतौर पर एक छोटी और सरल मुखरता है जो उड़ान या खतरे का संकेत देता है और पूरे वर्ष भर किया जाता है। एक गीत प्रजनन के मौसम के दौरान उत्पन्न होने वाला एक लंबा और जटिल स्वर है। गाने कई वाक्यांशों (या रूपांकनों) में व्यवस्थित होते हैं, इनके संगीत की कई धुन व्यवस्थित होती हैं जिनमें अक्षरों की श्रृंखला शामिल होती है। इनके स्‍वर, घुमाव में, एकल नोट्स (Notes) (या तत्वों) के संग्रह से बने होते हैं। प्रत्येक पक्षी व्‍यक्तिगत स्‍तर पर अपने गीत का प्रदर्शन करता है, जिसमें एक गीत के विभिन्न संस्करण होते हैं, जिसे गीत प्रकार कहा जाता है। विभिन्‍न प्रजातियों के बीच प्रदर्शनों की सूची में बड़े बदलाव होते हैं। लगभग सभी सॉंगबर्ड (songbird)प्रजातियों में से एक तिहाई में, पक्षियों के प्रदर्शनों की सूची में केवल एक ही प्रकार का गीत होता है, जबकि सभी प्रजातियों में से लगभग 20% में, प्रदर्शन सूची या रिपर्टोअर (repertoire) में पांच से अधिक गाने होते हैं (मैकडॉगल-शेकलटन (MacDougall-Shackleton)1997)। कुछ मामलों में, जैसे कि भूरे रंग के थ्रैशर (टोक्सोस्टोमा रुफ़म) (Brown Thrashers (Toxostoma Rufum)), गीत के प्रकार 2,000 से अधिक हो सकते हैं।

हमने भी अक्सर अपने आस पास पेड़ की डालियों पर बैठे पंक्षियों के मधुर गीत सुने ही होंगें परंतु क्या सोचा है कि कैसे ये पक्षी इतना मधुर गा लेते हैं। दरअसल पक्षी किसी भी अन्य जानवर की तुलना में अधिक जटिल ध्वनि उत्पन्न कर सकते हैं। पंक्षियों का शरीरिक विज्ञान और ध्वनिकी (vocalization) जंतु जगत में अद्वितीय मानी हैं। जब एक पक्षी अपनी चोंच (bill) के माध्यम से हवा में सांस लेता है, तो वह अपने गले में और अपने विंडपाइप (Windpipe) (या ट्रेकिआ (Trachea)) में हवा खींचता है। विंडपाइप फोर्क (Forks) प्रत्येक फेफड़े में हवा ले जाने का कार्य करता है। ये दोहरे मार्ग ब्रोन्कियल ट्यूब (Bronchial Tube) कहलाते हैं। वायु को फिर फेफड़ों में संसाधित किया जाता है और उसी मार्ग से वापस लाया जाता है। वायु मार्ग की यह प्रणाली ध्वनि उत्पादन के उद्देश्य के लिए भी अनुकूलित हो गई है (जैसा कि मनुष्यों में भी है)। उस बिंदु पर जहां विंडपाइप विभाजन होता है उस स्थान पर पंक्षियों का ध्वनि उत्पादन अंग या वॉइस बॉक्स (Voice Box) स्थित होता है जिसे सिरिंक्स (Syrinx) नाम से जाना जाता है। परन्तु मनुष्य के पास कोई सिरिंक्स नहीं है, बल्कि एक स्वरयंत्र या लेरिंक्स (Larynx) है। यह स्वरयंत्र गले में एक गुहा (Cavity) है और इसमें वॉकल कॉडस (Vocal Cords) उपस्थित होते हैं। एवियन सिरिंक्स (Avian Syrinx) को लोअर लेरिंक्स (Lower Larynx) कहा जाता है, जो विंडपाइप के छोर पर स्थित होता है। यह ऐसा है जैसे कि मानव लेरिंक्स छाती में स्थित हो। ये सिरिंक्स डबल-बैरेल्ड (Double-Barrelled) होता है। ब्रोन्कियल ट्यूब के एक तरफ टैंपेनम (Tympanum), एक गोलाकार लोचदार झिल्ली होती है, यह पंक्षियों की वॉकल कॉड होती है। जैसे ही ब्रोन्कियल ट्यूब से हवा गुजरती है टैंपेनम में कंपन होता है और ध्वनि पैदा होती है। इस कारण पक्षी गीत गाने में सक्षम होते है।
पक्षी भी अपने गायन में पिचों (Pitches), स्वरों (Tones) और तालों (Tempo) का इस्तेमाल बखूबी करते हैं, जिसे महसूस भी किया जा सकता है। इस ध्वनि की पिच (pitch) या फ्रीक्वेंसी (Frequency) को मॉड्यूलेट (Modulated) किया जा सकता है। ये ध्वनि 100 गज की दूरी तक भी आसानी से सुनाई दे सकती है। इसके अलावा अपने गीतों को याद रखने की क्षमता भी उनमें विद्यमान होती है। पक्षियों की एक निश्चित आवृत्ति पर गायन स्थलाकृति और ग्राउंड कवर (Topography and Ground Cover) के साथ बदलता रहता है। पक्षियों का चहचहाना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें निकालना यह भी संकेत देता है कि वे अपना घर कहाँ बनाते हैं। जैसे उल्लू की धीमी आवाज़ को घने जंगली आवास में गूंजने के लिए बनाया गया है। यदि पक्षी घने जंगलों में होते हैं, तो उनके गायन की आवृत्ति एक ही रहती है। जंगल की यह जटिलता उच्च-आवृत्ति ध्वनियों के कुशलता से पारित होने के लिए अवरोध पैदा करती है, जबकि कम आवृत्ति उस स्थिति में काम करती है। एक ही निवास स्थान को साझा करने वाली विभिन्न प्रजातियां अलग-अलग आवृत्तियों के गीतों का उपयोग करती हैं, ताकि उनके गायन में भेद किया जा सके। सुबह के समय, सूर्योदय से ठीक पहले पक्षियों की अपनी-अपनी गायन आवृत्तियां सुनायी देती हैं, क्योंकि दिन के इस समय की वायु अच्छे ध्वनि संचरण के लिए उत्तरदायी होती है और यदि पक्षी अपना प्रेम गीत गाने जा रहे हैं, तो सुबह का समय उपयुक्त होता है। वे अपने गायन के द्वारा एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा भी करते हैं। एक शोध में पाया गया है कि कुछ पक्षी प्रजातियां अधिक शोर वाले क्षेत्रों में निवास करते हैं जैसे कि एक व्यस्त कम्यूटर मार्ग, क्योंकि शोरगुल ज्यादा होने पर वे आपस में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। इसके अलावा ये पक्षी साँस छोड़ते समय नहीं गाते हैं।

जौनपुर में भी कई सुरीले पक्षी जैसे की कोयल, बुलबुल इत्यादि मौजूद है, जिनकी सुरीली आवाज़ गीतों के रूप में गूंजती है। इनके अलावा ब्लू थ्रोट (Blue Throat) नामक पक्षी भी जौनपुर का निवासी है। इसे अपनी विशिष्ट आवाज़ या गीतों के लिए जाना जाता है। वैज्ञानिक रूप से ल्यूसिनिया स्वेसिका (Luscinia svecica) के नाम से जाना जाने वाला यह पक्षी छोटे गौरैया के समान 13-14 सेमी तक होता है जिसे टर्डिडे (Turdidae) परिवार के सदस्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है। किंतु अब इसे ओल्ड वर्ल्ड फ्लाइकैचर (Old World Flycatcher) के रूप में मूसिकैपिडे (Muscicapidae) परिवार से सम्बंधित माना जाता है। ब्लू थ्रोट और इसी तरह की छोटी यूरोपीय प्रजातियों को अक्सर चैट (Chats) कहा जाता है। सर्दियों के मौसम में यह जीव प्रायः उत्तरी अफ्रीका (Africa) और भारतीय उपमहाद्वीप में निवास करता है। इसकी पूंछ को छोड़कर शरीर का ऊपरी भाग भूरे रंग का होता है। गले के हिस्से में प्रायः सफेद, नीली, नारंगी, काली आदि रंग की पट्टियों जैसी संरचना बनी होती है। इसकी नर प्रजाति को विविध और बहुत ही प्रभावशाली गीतों के लिए जाना जाता है। ब्लू थ्रोट के समान धरती पर अन्य पक्षी भी मौजूद हैं, जो अपने स्वरोच्चारण (Vocalization) के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके स्वरोच्चारण को उनकी आवाज़ तथा गीतों दोनों से संदर्भित किया जाता है।

संदर्भ:
https://go.nature.com/3fAdS2D
https://bit.ly/3w2cnzX
https://bit.ly/3wivxSi
https://www.bl.uk/the-language-of-birds/articles/how-birds-sing
https://blog.uvm.edu/fntrlst/2015/04/29/the-musicality-of-birdsong/
http://www.startribune.com/birds-have-perfect-pitch/115579384/

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में ब्लूथ्रोट पक्षी को गाते हुए दिखाया गया है। (फ़्लिकर)
दूसरे चित्र में एशियाई कोएल को दिखाया गया है। (विकिमेडिया)
तीसरे चित्र में नाइटिंगेल को दिखाया गया है। (विकिमेडिया)
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