सिक्के का प्रयोग आज पूरी दुनिया में होता है पर ये आया कहाँ से इसका इतिहास क्या है? यह जानने के लिये हमें हजारो साल पीछे जाना पड़ेगा जब मानव ने बसना शुरू ही किया था और वह कई नये प्रयोगो से गुजर रहा था। सिक्के या मुद्रा के खोज के पहले लोग वस्तु विनिमय (अदला-बदली) में विश्वास करते थे परन्तु धीरे धीरे वह प्रथा खत्म हो गयी तथा उसका स्थान सिक्कों ने ले लिया। जैसा की नव पाषाणकाल से ही वस्तु विनिमय परम्परा का सूत्रपात हो चुका था परन्तु सिक्के जैसे किसी वस्तु का सूत्रपात सिंधु सभ्यता से ही हो गया था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, राखीगढी आदि पुरास्थलों से प्राप्त सेलखड़ी की सील व वजन के मापों से यह पता चल जाता है कि इस काल में मुद्रा के रूप का आगमन हो चुका था। हड़प्पा काल से महाजनपद काल के बीच मुद्रा के विकास की गति का पता नही चल पाया है। महाजनपद काल के शुरू होने के साथ ही जैसे मुद्रा कला में एक पर लग गया हो। यही काल है जब आहत प्रकार के सिक्के मिलना या बनना शुरू हुये थे। आहत प्रकार के सिक्कों को पंच मार्क सिक्कों के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल में सिक्कों को रत्ती या माशा से तौला जाता तथा आज वर्तमान काल में भी स्वर्णकार इस शब्द का प्रयोग करते हैं तथा रत्ती के बीज का प्रयोग करते हैं। यह प्रदर्शित करता है की प्राचीनकाल में तौल व गणित की उत्तम जानकारी लोगों के पास था। हिंदी फिल्मों में भी माशा शब्द का प्रयोग एक गाने में किया गया है-
पल में तोला पल मे माशा कितने रंग बदलती है
आहत सिक्कों के बाद भारतीय सिक्कों में बड़ा बदलाव कुषाण, शक, छत्रपों के आगमन के बाद हुआ जब उन्होंने सिक्कों पर लिखना व मुख को छापना शुरू किया। सिक्के इतिहास के कई बिंदुओं को प्रदर्शित करते हैं जैसे कि किस राजा का शासनकाल कहाँ तक फैला था तथा राज्य की आर्थिक स्थिति का भी पता चलता है। विश्व के सबसे खूबसूरत वस्तुओं के लिये ब्रिटिश संग्रहालय ने एक किताब जारी की जिसमें उन्होने गुप्तकाल के स्वर्ण सिक्के को रखा है। गुप्तकाल सिक्कों के लिए स्वर्णिम काल था। गुप्तकाल के समापन के बाद मुगल काल भारतीय सिक्कों के लिये पुनः एक स्वर्णकाल साबित हुआ। अंग्रेजों के आगमन के बाद भारत भर में फैले हजारों प्रकार के सिक्कों को बंद करने के बाद एक प्रकार का सिक्का चलवाया गया था। भारत में सिक्के के इतने प्रकार पाये जाते हैं जितने दुनिया भर में कहीं नहीं पाये जाते है, तथा भारत में दिल्ली ऐसा स्थान है जहाँ सबसे अलग-अलग प्रकार के सिक्के पाये जाते हैं। जौनपुर जो कि सल्तनत काल से ही सम्बन्ध रखता है के अंदर सल्तनत काल से भी पहले के सिक्के पाये गये हैं जो यहाँ के इतिहास को और पीछे ढकेलते हैं। भारत भर में इतने प्रकार के सिक्के पाये गये जिसका सीधा सम्बन्ध है कि यहाँ पर कई टकसालों का भी निर्माण हुआ होगा। प्रत्येक सिक्कों पर हम प्रत्येक टकसाल का निशान देख सकते हैं यह व्यवस्था वर्तमान में भी कार्यरत है।