विंध्याचल पर्वत और देवी विंध्यवासिनी

पर्वत, चोटी व पठार
18-02-2021 09:42 AM
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विंध्याचल पर्वत और देवी विंध्यवासिनी
विंध्याचल पर्वत श्रृंखला भारत के पश्चिम-मध्य में स्थित है। विंध्याचल शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है- विंध्य और अचल अर्थात विंध्य पर्वत। यह नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित एक विच्छिन्न श्रृंखला है जो गुजरात से ले कर मध्य प्रदेश तक फैली है। विंध्याचल का कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर तक जाता है।

विंध्य पर्वत श्रृंखला एक विरल पर्वत श्रृंखला है जो पर्वत श्रेणियों, पहाड़ियों और पठारी ढलान से बना है। इसके विस्तार को अलग-अलग समय पर अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया गया है। विंध्याचल का उल्लेख की पुराने ग्रंथों में मिलता है। कुछ पुराने ग्रंथों में ‘विंध्य’ नर्मदा और ताप्ती नदी के बीच की पर्वत श्रृंखला को कहा गया है जो कि आज ‘सतपुड़ा’ श्रृंखला के नाम से जानी जाती है। वराह पुराण में हालांकि सतपुड़ा के लिए ‘विंध्य पद’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था। कुछ ग्रंथ हिंदी शब्द से मध्य भारत की हर पहाड़ी को इंगित करते हैं। हालांकि आधुनिक भौगोलिक परिभाषा के अनुसार विंध्याचल पर्वत श्रृंखला नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश तक की पहाड़ियों को शामिल करती है। यह छोटा नागपुर पठार की दक्षिणी सीमा है और भारत को उत्तर व दक्षिण भारत में विभाजित करती है। इसके पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में मैकाल पहाड़ियां है।

सांस्कृतिक दृष्टि से भी विंध्या का काफी महत्व है। भारत के प्राचीन ग्रंथों में विंध्य पर्वत को आर्य और गैर आर्यों के क्षेत्र को विभाजित करने वाली प्राकृतिक सीमा की तरह वर्णित किया गया है। महाभारत में कहा गया है कि विंध्य के वनों में निषाद और म्लेच्छों का वास है। वही रामायण में इन वनों को राक्षसों और नरभक्षिओं का घर बताया गया है। हिंदू पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि मां काली राक्षसों के वध के पश्चात इन्हीं वनों में रहने लगी थी और उनका नाम पड़ गया विंध्यवासिनी।
काली या दुर्गा के इस ग्रुप के लिए उत्तर प्रदेश के विंध्याचल शहर में एक मंदिर बनवाया गया है जो कि बेहद प्रसिद्ध है। यह मंदिर मिर्जापुर जहां विंध्याचल श्रृंखला का आखिरी विस्तार है से सिर्फ 8 किलोमीटर दूर है। मां विंध्यवासिनी को मां दुर्गा का एक सौम्य तथा परोपकारी रूप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां सती के अंग जहां-जहां गिरे वही वही उनके शक्तिपीठ भी स्थापित कर दिए गए और उसी रूप में उनकी पूजा होने लगी। विंध्याचल का 100 शक्तिपीठों में उल्लेख होता है और यहां देवी ने पुनर्जन्म के बाद रहना चुना था। यह एक इकलौता शक्तिपीठ है जहां देवी के पूर्ण रूप में दर्शन होते हैं।

कृष्ण कथा के अनुसार कंस को मारने के लिए भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसका वध करेगा। गर्ग पुराण के अनुसार विंध्यवासिनी देवी ने योग माया बनकर यशोदा के गर्भ से जन्म लिया जिसे वासुदेव कृष्ण से बदलकर अपने साथ ले आए थे। जब कंस ने इस कन्या को देखा तो आश्चर्य चकित हुआ की भविष्यवाणी तो पुत्र की हुई थी फिर कन्या कैसे। परंतु इसे भगवान विष्णु की एक चतुराई मानकर वह इस कन्या को भी पत्थर पर पटक कर मारने चला। तब योग माया उसके हाथ से छूटकर आकाश में जाकर बोली “रे मूर्ख! तेरा वध करने वाला तो कब का जन्म ले चुका है, मुझे मारने से क्या होगा” और अंतर्धान हो गई। बाद में देवी देवता जाकर धरती पर ही विंध्याचल में विराजमान हो गए जहा शक्ति पीठ की स्थापना कर उनकी स्तुति की गई। श्रीमद्भागवत पुराण में योग माया को ही विंध्यवासिनी कहा गया है और शिव पुराण में भी सती का अंश बताई गई है। कृष्ण की छोटी बहन होने के कारण उन्हें कृष्णानुजा भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि विंध्याचल का अस्तित्व सृष्टि के पहले भी था और प्रलय के बाद भी रहेगा।

संदर्भ:
https://bit.ly/3bveQtl
https://en.wikipedia.org/wiki/Vindhya_Range
https://en.wikipedia.org/wiki/Vindhyavasini

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में विंध्य पर्वत श्रृंखला दिखाई देती है। (विकिमीडिया)
दूसरी तस्वीर में माँ विंध्यवासिनी को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में माँ विंध्यवासिनी मंदिर को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
आखिरी तस्वीर में भीमबेटका से देखी गई विंध्य पर्वत श्रृंखला को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
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