इस्लाम धर्म में बसंत पंचमी के त्योहार का महत्व

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
16-02-2021 09:50 AM
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इस्लाम धर्म में बसंत पंचमी के त्योहार का महत्व
वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही प्रकृति खिल उठती है, जिसके स्वागत में बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। बसंत पंचमी के दिन हिन्दू धर्म में मुख्यतः स्वर की देवी मां सरस्वती की वंदना की जाती है। बसंत पंचमी का पर्व हिन्‍दू और सिख समुदायों द्वारा ही नहीं मनाया जाता है बल्कि सूफी मुस्लिम भी इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। हिंदू धर्म में गेरू रंग साधु-संतों की पहचान बन गया है। यह रंग धर्म से ज्यादा जीवन जीने के तरीके को इंगित करता है। सूफियों ने इस रंग को भारत में अपनाए गए रंग की तुलना में कुछ बदलाव कर अपनाया है। उनके लिए यह संदली रंग बन गया। उर्दू के पहले शायर अमीर खुसरो, बुल्लेशाह और तमाम सूफी संतों की कृतियों में इस रंग का खूब उल्लेख मिलता है।
बसंत पंचमी के दिन विभिन्न दरगाहों में बसंत पर कव्वाली और जलसे का आयोजन होता है। इस्लाम से जुड़े लोगों की इस पर अलग-अलग विचारधारा है। इसके समर्थक कहते हैं कि बसंत ऋतु और किसानों से जुड़ा त्योहार है, जिसका उल्‍लेख किसी भी धार्मिक ग्रन्‍थ में नहीं किया गया है अर्थात न कुरान और हदीस में और ना ही हिंदू धर्म ग्रंथों में। अत: इस दिन हर्षोल्‍लास के साथ त्‍योहार मनाना और किसी विशेष रंग के वस्‍त्र पहनना किसी धर्म विशेष को इंगित नहीं करता है। वहीं एक तबका ऐसा भी है जो स्‍वयं इस त्योहार को नहीं मनाता है किंतु इस उत्सव को मनाने वालों का विरोध नहीं करता है। वहीं कुछ विपक्षी भी हैं जो पूर्णत: इसे हिन्‍दू धर्म से जोड़कर देखते हैं और इसका विरोध करते हैं।
अब प्रश्‍न उठता है कि आखिर इस्लाम धर्म में वसंत पंचमी के त्यौहार की शुरूआत कैसे हुयी? इस्‍लाम में इसकी शुरूआत लगभग चौदहवीं शताब्‍दी में हुयी थी, जिसके पीछे एक रोचक कहानी जुड़ी हुयी है। इस्‍लाम में बसंत पंचमी के त्‍यौहार को अमीर खुसरो द्वारा लाया गया था, जिसे इन्‍होंने अपने गुरू निज़ामुद्दीन औलिया को प्रसन्‍न करने के लिए मनाया था। चिश्ती घराने के चौथे संत निज़ामुद्दीन औलिया अपने भांजे तकीउद्दीन नूह से बहुत स्नेह करते थे। किंतु उसकी असमय मृत्‍यु हो गयी जिस कारण वे बहुत उदास रहने लगे। अमीर खुसरो अपने गुरू को खुश करना चाहते थे। उस दौरान अमीर खुसरो ने उन्हें फिर से ठीक करने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन वे असफल रहे। इस बीच बसंत ऋतु आई, जिसमें खुसरो ने कुछ औरतों को पीले रंग की साड़ी पहने पीले फूलों के साथ बसंत पंचमी का त्योहार मनाते हुए देखा, वे सभी बहुत प्रसन्‍न लग रहीं थी। फिर खुसरो ने भी निज़ामुद्दीन को खुश करने के लिए पीले रंग का घाघरा पहनकर गले में दुपट्टा डाल लिया और साथ में ढोलक लेकर बसंत के गाने गाने लगे। खुसरो को महिलाओं की वेशभूषा में देख निज़ामुद्दीन सारे दुख-दर्द को भूलकर अपनी हंसी नहीं रोक पाए और ठहाके लगाकर हंसने लगे। तब से जब तक खुसरो जीवित रहे जीवन भर बसंत पंचमी का त्योहार मनाते रहे। खुसरो के बाद भी यह परंपरा चलती रही।
निज़ामुद्दीन की उसी खुशी को याद करते हुए हर साल उनकी दरगाह पर बसंत पंचमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल दरगाह पर खुसरो की रचनाओं को गाया जाता है। सरसों और गेंदे के फूलों से दरगाह सजाई जाती है। वैसे हिंदू पंचांग से अलग सूफी रवायत में बसंत का त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के पांचवें महीने, जूमादा अल अव्वल के तीसरे दिन मनाया जाता है। दिल्ली के निज़ामुद्दीन में दोनों की कब्र (निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की) आमने-सामने हैं। यहां हर साल मुस्लिम समुदाय के लोग बसंत पंचमी का त्योहार बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं। कहा जाता है कि मुस्लिम धर्म में सूफी को मानने वाले लोग बसंत पंचमी मनाते हैं। दरगाह में यूं तो बाकी दिन हरे रंग की चादर चढ़ाई जाती है पर बसंत पंचमी के दिन लोग यहां निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की दरगाह पर पीले फूलों की चादर चढ़ाते हैं। इतना ही नहीं सूफी प्रेमी लोग इनकी दरगाह पर बैठकर बसंती गाने भी गाते हैं। इसी तरह हर साल निज़ामुद्दीन की दरगाह पर बसंत पर जलसा होता है। लोग जमा होते हैं, नाचते हैं। पीले रंग के कपड़े, पीले फूल लाते हैं। बेहतरीन कव्वाली होती है।
निजामुद्दीन की दरगाह से शुरू हुई बसंत की ये परंपरा दूसरी दरगाहों में भी फैल गई। जानकार बताते हैं कि बाकी जगह ऐसा करने की कोई बाध्यता नहीं है मगर ज्यादातर दरगाहों में बसंत पर कव्वाली और जलसे का आयोजन होता है। बसंत उत्सव की ऋतु है। इसको लेकर तमाम कव्वालियां हैं, राग हैं, फिल्मी गाने हैं। बाकी जब दिल में उमंग जगने लगे तो समझें बसंत है। संदर्भ:
https://bit.ly/3tV0F9j
https://bit.ly/3qnF337
https://bit.ly/3jNrTKi
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में सूफी मुसलमानों को बसंत पंचमी मनाते हुए दिखाया गया है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर में सूफी मुसलमानों को मस्जिद के सामने बसंत पंचमी मनाते हुए दिखाया गया है। (प्रारंग)
तीसरी तस्वीर में सूफी मुस्लिमों के बसंत पंचमी कार्यक्रमों को दर्शाया गया है। (प्रारंग)
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