बालों को बनाने के विभिन्न तरीकों को संदर्भित करता है, हेयर स्टाइल या केश विन्यास

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
09-02-2021 12:21 PM
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बालों को बनाने के विभिन्न तरीकों को संदर्भित करता है, हेयर स्टाइल या केश विन्यास
ऐतिहासिक रूप से, बाल आकर्षण और शक्ति से जुड़े होते हैं। हेयर स्टाइल (Hair style) या बालों को संवारने के लिए जिस प्रकार की कल्पना, विचार शक्ति और कलात्मकता का उपयोग भारत में किया गया है, उस प्रकार की कल्पना, विचार शक्ति और कलात्मकता शायद ही विश्व के किसी भाग में उपयोग की गयी है। यहां न केवल महिलाओं और पुरुषों को बल्कि देवताओं को भी उनके अनूठे केश श्रृंगार से पहचाना जाता है। जहां, भगवान शिव और माता पार्वती को उनकी जटाओं के साथ दिखाया गया है, वहीं शुरुआती कला में भगवान बुद्ध को घुंघराले बालों के साथ प्रदर्शित किया गया है। हेयर स्टाइल या केश विन्यास मानव के सिर पर बालों को संवारने या बनाने के विभिन्न तरीकों को संदर्भित करता है। किसी व्यक्ति का हेयर स्टाइल कई कारकों पर निर्भर हो सकता है। इन कारकों में भौतिक विशेषता, हेयर स्टाइल बनाने वाले की कलात्मक प्रवृत्ति आदि शामिल है। भौतिक कारकों में मुख्य रूप से बालों की प्रकृति, विकास पैटर्न (Pattern) आदि को सम्मिलित किया जाता है। इसके अलावा चिकित्सीय विचारों के आधार पर भी बालों का स्टाइल निर्धारित किया जा सकता है। केश विन्यास का सबसे पुराना ज्ञात चित्रण हेयर ब्रेडिंग (Hair braiding) है, जो लगभग 30,000 साल पुरानी है। इतिहास में, महिलाओं के बालों को अक्सर विस्तृत रूप से और सावधानीपूर्वक विशेष तरीके से बनाया जाता था। रोमन (Roman) साम्राज्य के समय से लेकर मध्य युग तक, ज्यादातर महिलाओं ने अपने बालों को लंबा रखा, क्यों कि, वे स्वाभाविक रूप से बढ़ते थे। 15 वीं शताब्दी के अंत और 16 वीं शताब्दी के बीच, माथे की लंबी मांग को बहुत आकर्षक माना जाता था। इसी अवधि के यूरोपीय (European) पुरुषों ने भी लंबे बाल रखे, लेकिन उन्हें अपने कंधों से नीचे नहीं आने दिया। 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में, पुरुषों के बीच भी लंबे, घुंघराले बालों का चलन बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ। भारत में बालों को विभिन्न तरीकों से सजाने या संवारने का इतिहास काफी पुराना है। पुरूषों और महिलाओं दोनों ने सामाजिक समारोहों और विशेष अवसरों में अपने बालों को विभिन्न तरीकों से बनाया। महिलाओं ने अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार बाल बनाने के तरीकों को अपनाया, जिसका उल्लेख ‘नाट्य शास्त्र’, प्रदर्शन कला पर आधारित एक प्राचीन भारतीय ग्रंथ में भी किया गया है। गौड़ा (Gauda) की महिलाओं ने अपने बालों को जहां सिर के शीर्ष भाग में बांधना पसंद किया, वहीं मालवा (Malwa) की महिलाओं ने अक्सर घुँघराले बाल रखे। कुछ विद्वानों का मानना है कि, बालों को संवारने या बनाने का तरीका आर्थिक स्थितियों के बीच अंतर करने का भी एक साधन था।
धनी महिलाएं खुद को अन्य वर्गों से अलग करने के लिए अपने बालों को विस्तृत रूप से संवारती थीं। प्राचीन भारत में पुरुष भी बालों को विभिन्न प्रकार से बनाने या संवारने में शर्म महसूस नहीं करते थे। प्राचीन काल में महिलाएं बालों को बनाने के लिए जिन तरीकों का उपयोग दैनिक रूप से करती थीं, आधुनिक युग में उनका उपयोग किसी विशेष अवसरों के लिए किया जाता है। प्राचीन ग्रंथों में हेयर स्टाइल के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, जिसके अनुसार, उस दौरान बालों को संवारने के लिए उनमें आभूषणों, सजावटी बैंड्स (Bands) आदि का भी उपयोग किया गया। विभिन्न अवधियों में विभिन्न प्रकार के केश विन्यासों को अपनाया गया था। उदाहरण के लिए प्रोटोहिस्टेरिक (Protohistoric) काल के दौरान हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने विभिन्न प्रकार के कंघों का उपयोग किया। कुछ टेराकोटा (Terracotta) की वस्तुओं से पता चलता है कि, उस समय महिलाओं ने अपने बालों को घुंघराला रूप देकर पीछे की ओर बांधा तथा उन्हें फूलों या गहनों से सजाया। इसी प्रकार से पुरुषों को भी उनके बालों में कंघी करते हुए दिखाया गया। मौर्य काल में बनायी गयी ‘यक्षी’ (Yakshi) की मूर्ति में एक सुंदर केश विन्यास देखने को मिलता है। उसके बालों को कंघी किया गया है तथा एक लूप (Loop) की मदद से पीछे की ओर बांधा गया है। कुषाण काल की मूर्तियों से भी पता चलता है कि, उस समय महिलाएं अपने बालों को प्रायः पीछे की ओर ढ़ीली गाँठों में बांधती थी। गुप्ता काल के दौरान निर्मित की गयी माता पार्वती की मूर्ति को उनको घुँघराले बालों के साथ प्रदर्शित किया गया है, इस मूर्ति में उनके बालों को पीछे की ओर बांधा गया है, तथा गोलाकार आभूषण के साथ सजाया गया है। मध्यकालीन युग में निर्मित की गयी मूर्तियां यह सुझाव देती हैं कि, उस दौरान, महिलाएं अपने बालों को जुड़े और चिगन्स (Chignons) के साथ बनाना पसंद करती थीं। कई मामलों में, महिलाओं को ढ़ीली चोटी के साथ भी दिखाया गया है।
कोरोना महामारी के कारण हुई तालाबंदी के चलते क्यों कि, बाल काटने की सभी दुकानें या सैलून (Salon) बंद थे, इसलिए लोगों ने अपने बालों को घर पर ही काटना उचित समझा। इसी बीच कोरोना महामारी के प्रति जागरूकता फैलाने हेतु एक विशिष्ट प्रकार का हेयर स्टाइल भी नजर आया। कोरोनो विषाणु ने पूर्वी अफ्रीका (Africa) के उस हेयर स्टाइल को पुनर्जीवित किया, जो काफी हद तक विषाणु की संरचना को प्रदर्शित करता है। कोरोना महामारी को रोकने के लिए लगे प्रतिबंधों के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक समस्याओं के बीच यह हेयर स्टाइल लोगों के लिए काफी किफायती साबित हुआ है, जो यह दर्शाता है कि, कोरोना महामारी की समस्या वास्तव में कितनी गम्भीर है। कोरोना महामारी ने जहां विभिन्न व्यवसायों को प्रभावित किया है, वहीं सैलून व्यवसाय भी इससे बच नहीं पाया है। अन्य व्यवसायों की तरह इस व्यवसाय में भी सुधार आने में काफी समय लग सकता है।
संदर्भ:
http://bitly.ws/bCLd
http://bitly.ws/bCLf
http://bitly.ws/bCLg
http://bitly.ws/bCLj
http://bitly.ws/bCLk
http://bitly.ws/bCLm
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर पुराने समय में विभिन्न प्रकार के हेयर-स्टाइल दिखाती है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर में विस्तृत हेयर-स्टाइल के साथ चीनी महिला को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में प्राचीन भारतीय हेयर-स्टाइल को दिखाया गया है। (प्रारंग)
आखिरी तस्वीर में कोरोना वायरस हेयर-स्टाइल दिखाया गया है। (प्रारंग)
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