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भारत एक कृषि प्रधान देश है। शिक्षा के क्षेत्र में कृषि संबंधी शिक्षा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। हालांकि देश में कई जाने-माने कृषि विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से एक जौनपुर में भी हैं, लेकिन समाज में कृषि संबंधी शिक्षा की उपयोगिता को अभी भी पूरी तरह समझना बाकी है।
भारत में कृषि शिक्षा की जरूरत:
आधुनिक कृषि का रूप लगातार तकनीक आधारित होता जा रहा है, इनसे पूरा लाभ उठाने में हमारे ग्रामीण किसान सक्षम नहीं है। उनके लिए यह बहुत कठिन है। भारत में हर स्तर पर शिक्षा की जरूरत है ताकि भारतीय किसान वैश्विक चुनौतियों का सामना कर सकें। भारत में कृषि क्षेत्र में सीधे विदेशी निवेश की अपेक्षाओं पर भारतीय किसान पूरी तरह साबित नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे दौर में कृषि शिक्षक को प्रमुखता देना आज के समय की मांग है, कृषि क्षेत्र में काफी तरक्की के बावजूद कुछ अंधेरे पहलू भी हैं, जिनके कारण पिछले कुछ सालों में आंध्रप्रदेश (Andhra Pradesh) और महाराष्ट्र (Maharashtra) में काफी किसानों ने आत्महत्या कर ली। इन के प्रमुख कारण थे लगातार खराब फसल होना और भारी कर्ज़। हमारे कृषि वैज्ञानिक अधिक उर्वरता और उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अथक शोध कर रहे हैं।
इसमें सरकार भी किसानों के पक्ष में सुविधाएं लेकर आगे आए हैं जिनमें प्रमुख हैं-
• कृषि में निजी क्षेत्रों के निवेश के बारे में शिक्षा देना
• सही जगह से किसानों के लिए शिक्षा और जागरूकता उपलब्ध करना
• जल संसाधन के उपयोग के विषय में शिक्षा देना
• अपनी उपज की सही कीमत पाने के लिए बाजार की मजबूत संरचना को समझना
• प्रभावी कृषि प्रसंस्करण (एग्रो प्रोसेसिंग (Agro processing)) तकनीकी जानकारी देना
• बाढ़ और सूखे की आपदा के विषय में जागरूक करना
• मृदा और जल परीक्षण प्रयोगशालाओं की उपयोगिता समझना
• कृषि से जुड़े कानूनों के बारे में जानकारी देना
• सही कृषि मूल्य कैसे प्राप्त करें, इसकी जानकारी देना
क्या है कृषि संबंधी शिक्षा:
कृषि संबंधी शिक्षा का मतलब है कृषि, प्राकृतिक स्रोतों और भूमि सुधारों के बारे में शिक्षा देना। आमतौर पर कृषि शिक्षा से मतलब विद्यार्थियों का कृषि क्षेत्र में रोजगार ढूंढने से जोड़ दिया जाता है। कृषि संबंधित शिक्षा से नजदीकी से जुड़े क्षेत्रों में कृषि संबंधी संपर्क, नेतृत्व क्षमता और विस्तृत शिक्षा शामिल है।
भारत के प्रमुख कृषि विश्वविद्यालय
इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) ,दिल्ली ( इसे पूसा इंस्टीट्यूट (Pusa Institute) के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना 1950 में हुई थी।)
नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI ), करनाल ( 1923 में हरियाणा (Haryana) में इसकी स्थापना हुई थी, यहां डेयरी व्यवसाय के विषय में विशेष शिक्षण प्रशिक्षण की सुविधा है।)
आचार्य एनजी रंगा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (ANGRAU) हैदराबाद (Hyderabad) (स्थापना 12 जून 1964 में हुई थी। कृषि, कृषि संबंधी इंजीनियरिंग, तकनीक और गृह विज्ञान की यहां शिक्षा दी जाती है।)
यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसेज (UAS) बैंगलोर (Bangalore) (1963 में स्थापित प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में कृषि संबंधी स्नातक, परास्नातक डिग्री के साथ 7 डिग्री कोर्स संचालित किए जाते हैं।
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (CCSHAU), हिसार (बहुत ही विकसित और साधन संपन्न विश्वविद्यालय में अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और पीएचडी कोर्स मुख्य रूप से कृषि, गृह विज्ञान, खाद्य विज्ञान, मूल विज्ञान आदि की शिक्षा दी जाती है।)
जड़ों की ओर से वापसी: कृषि शिक्षा
STEM ( साइंस, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित) और उद्यमशीलता संबंधी पाठ्यक्रमों को विश्व स्तर पर काफी बढ़ावा दिया जाता है, लेकिन क्या कृषि संबंधी शिक्षा को भी प्रमुखता दी जानी चाहिए? यह ठीक है कि बच्चे को दी जा रही सामान्य शिक्षा उसके भविष्य की नींव रखती है, लेकिन संबंधी शिक्षा विद्यार्थी को जीवन के व्यवहारिक कौशल से जोड़ती है जो उनके निजी और व्यवसायिक भविष्य में सहायक होता है।
1990 के बाद से जलवायु और पर्यावरण संबंधी जबरदस्त परिवर्तन जिसमें शामिल है- बेहद गर्मी, सूखा, बाढ़ और तूफान पहले के मुकाबले दोगुने हो गए हैं। कृषि उत्पादकता मुख्य रूप से गेहूं, धान और मक्के की फसलों को हानि पहुंचाते हैं जिससे खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ जाती हैं ,आमदनी घट जाती है और अनाज का संकट खड़ा हो जाता है।
इसलिए कृषि के क्षेत्र में हो रहे नए शोधों, मिल रही सुविधाओं और बेहतर फसल सुरक्षा के उपायों से परिचित होने के लिए आज पर्दा के वैश्विक दौर में जबकि तकनीकों का आदान-प्रदान और निवेश की सुविधाएं दरवाजे पर खड़ी हैं, सिर्फ कृषि शिक्षा के जरिए ही किसान अपनी जिंदगी बेहतर और सुरक्षित बना सकते हैं।
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