त्रिशूल का महत्त्व भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी संस्कृतियों में भी बहुत है

हथियार व खिलौने
04-01-2021 01:59 AM
त्रिशूल का महत्त्व भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी संस्कृतियों में भी बहुत है

हिंदू धर्म में त्रिशूल या ट्रिडेंट (trident) का बहुत महत्त्व है, एक हथियार के रूप में, त्रिशूल बुराई को नष्ट करने की शिव की क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। हिंदू धर्म में, त्रिशूल प्रतीक शुभता का प्रतिनिधित्व करता है। कहा जाता है कि इसके तीन बिंदु तीन गुणों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं, जो भौतिक दुनिया, राजस या रज (गतिशील ऊर्जावान), तमस या तम (नकारात्मक, निष्क्रिय, स्थिर) और सत्व (उत्थान, संतुलित, विचारशील) में प्रदर्शित होते हैं। इनके तीनों के बीच सह-संबंध बनाए बगैर सृष्टी का संचालन कठिन हैं इसलिए शिव ने त्रिशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण किया। भगवान शिव के त्रिशूल के बारें में कहा जाता है कि यह त्रिदेवों का सूचक है यानि ब्रम्हा, विष्णु, महेश और इसे रचना, पालक और विनाश के रूप में भी देखा जाता है। इसे भूत, वर्तमान तथा भविष्य के साथ धरती, स्वर्ग तथा पाताल का भी सूचक माना जाता हैं। त्रिशूल को आमतौर पर निर्माण, पालन, और विनाश, शरीर, मानसिक आनंद, मुक्ति, करुणा, प्रेम ज्ञान, स्वर्ग, मन, पृथ्वी, अग्नि, पुनरुत्थान और आध्यात्मिक आदि रूपों से संदर्भित किया जाता है। योगा विज्ञान में मानव शरीर में त्रिशूल उस स्थान का भी प्रतिनिधित्व करता है जहां तीन मुख्य धारायें या ऊर्जा प्रणाली मिलते हैं। यह शिव हथियार प्रतीकात्मक रूप से बहुल और समृद्ध है और इसे जौनपुर में त्रिलोचन महादेव मंदिर (Trilochan Mahadev Mandir) के शिखर पर भी देखा जा सकता है। भारत और थाईलैंड में, इस शब्द का अर्थ अक्सर एक हाथ वाले छोटे हथियार से सम्बंधित है जिसे एक डंडे पर लगाकर स्थापित किया जाता है। कहा जाता है कि शिवपुराण के अनुसार, शिव स्वयंभू हैं और उनका जन्म स्वयं की इच्छा अनुसार हुआ था। वे सदाशिव के प्रत्यक्ष अवतार के रूप में उभरे थे और शुरू से ही उनके पास त्रिशूल देखा गया था। विष्णु पुराण के अनुसार, विश्वकर्मा ने सूर्य से द्रव्य का उपयोग करके त्रिशूल बनाया और शिव को दिया था। त्रिशूल कभी-कभी त्रिरत्न के बौद्ध प्रतीक को भी वर्णित करता है। यह देवी दुर्गा द्वारा भी धारण किया जाता है। देवी दुर्गा के मंदिरो की प्रतिमा मे त्रिशूल सोने चाँदी या पीतल के देखे जा सकते है।
त्रिशूल के, भारतीय ही नहीं बल्कि भिन्न-भिन्न संस्कृतियों कई प्रतीकात्मक अर्थ हैं। ग्रीक किंवदंतियों के अनुसार, पोसिडॉन (Poseidon) (नेपच्यून-Neptune) के पास भी हथियार के रूप में एक त्रिशूल था, जिसमें जादुई गुण थे। क्रोधित होने पर वे अपने इसी दिव्य त्रिशूल से समुद्र में चक्रवात, तूफान, सुनामी और भूकंप ला सकते थे और इसके साथ वे चट्टानों को भी विभाजित कर सकते थे। पोसीडॉन इसका उपयोग समुद्रों को नियंत्रित करने के लिए करते थे, इसलिए यह प्राधिकरण का प्रतीक है। रोमन स्रोतों के अनुसार, नेप्च्यून ने पृथ्वी पर त्रिशूल के साथ पहला युद्ध-अश्व (war-horse) उत्पन्न किया। त्रिशूल को कभी-कभी ग्रीक तथा रोमन कला और साहित्य में, ट्राइटन(Triton) तथा अन्य समुद्री देवताओं और उनके परिचारकों द्वारा पकड़े हुए भी चित्रण किया गया है। इसी तरह, ओल्ड मैन ऑफ द सी (हेलियस गेरोन) (Old Man of the Sea (halios geron) ) और देव नेरेस (Nereus) को भी त्रिशूल पकड़े हुए दिखाया गया हैं। कुछ अमोरिनी (amorini) को भी अक्सर छोटे त्रिशूलों को पकड़े हुए चित्रित किया जाता है।
जापानी पौराणिक कथाओं में, त्रिशूल के आकार के एक शानदार यंत्र “कोंगो (कोन्गोज़)” (Kongo (kongose)) का वर्णन मिलता है, जो अंधेरे में उज्ज्वल प्रकाश का उत्सर्जन करता है। कोंगो ज्ञान और अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, और इसे एक हथियार नहीं माना जाता है, बल्कि यह एक प्रकार के अनुष्ठान वस्तु है, जिसे कोंगो वज्र कहा जाता है। जापानी किंवदंतियों में, कोंगो वज्र एक दुर्जेय हथियार था जो मूल रूप से जापानी पर्वत देवता कोया-नो-मायोजिन (Koya-no-Myojin) से संबंधित है। कांगो वज्र के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि यह बादलों में तूफान, बिजली और गरजन के साथ जुड़े देवताओं द्वारा उपयोग किया जाता था। त्रिशूल का एक और धारक महान चंगेज खान (Great Genghis Khan), मंगोलिया (Mongolia) का महान सरदार भी था। त्रिशूल उनका व्यक्तिगत संकेत (तमगा- तमगा मंगोलिया की एक पारम्परिक सील है जो वास्तविकता में धातुओ से मंगोल सामराज्य में बनाई जाती थी) था। इस चिन्ह को पवित्र बैनर-सुलेडे (सुल्दे) (Sulede (sulde) के साथ पहनाया जाता था। एक किंवदंती यह भी है कि चंगेज ने भगवान से शक्ति और मदद मांगी थी और अचानक आसमान में एक चकाचौंध रोशनी बिखरी और त्रिशूल जैसा हथियार उसकी सेना के सिर पर घुमने लगा, तभी से उसमें त्रिशूल को अपना तमगा चिन्ह बना लिया। प्राचीन काल से आधुनिक समय में त्रिशूल का उपयोग विभिन्न रूप से किया जाता है। जैसे कि मछली पकड़ने वाले भाले के रूप में, कृषि में, और मार्शल आर्ट में आदि। आधुनिक कांटेदार भाला मछली पकड़ने में इस्तेमाल किया जाता है, इसमें आमतौर पर कांटेदार दांत होते हैं, जिसमें मछली मजबूती से फंस जाती हैं। कृषि में इसका उपयोग किसानों द्वारा छोटे और सन जैसे पौधों के डंठल, पत्तों, बीजों और कलियों को हटाने के लिए एक परिशोधन के रूप में किया जाता है। मार्शल आर्ट में ट्रिडेंट को डोंगपा (Dangpa) के रूप में जाना जाता है, इस त्रिशूल का उपयोग 17 वीं व 18 वीं शताब्दी में कोरियाई मार्शल आर्ट (Korean martial arts) की प्रणाली में एक हथियार के रूप में किया जाता था।

संदर्भ:
https://bit.ly/3rIT7VQ
https://en.wikipedia.org/wiki/Trishula
https://en.wikipedia.org/wiki/Trident
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में भगवान शिव के त्रिशूल को दिखाया गया है। (Wikimedia)
दूसरी तस्वीर में पोसिडॉन के ट्राइडेंट को दिखाया गया है। (Wikimedia)
तीसरी तस्वीर में त्रिशूल और भगवान शिव को दिखाया गया है। (Wikimedia)
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