समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 725
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
Post Viewership from Post Date to 26- Dec-2020 (5th Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1543 | 246 | 1789 |
कोविड-19 (Covid-19) विषाणु के कारण वर्तमान जगत बहुत ही संकटग्रस्त स्थिति में है। लंबे समय के प्रयासों के बाद विभिन्न देशों में वैज्ञानिकों ने वैक्सीन (Vaccine) तैयार कर ली है, जिसे संचालित करने का कार्य शुरू हो चुका है। कुछ दिनों पूर्व नियामकों द्वारा फाइजर (Pfizer) वैक्सीन को मंजूरी देने के बाद ब्रिटेन (Britain) इस वैक्सीन का उपयोग करने वाला पहला देश बन गया है। सामूहिक टीका करण कार्यक्रम के तहत यहां एक बुजुर्ग महिला को फाइजर वैक्सीन दी गयी है। इसके कुछ दिनों बाद न्यूयॉर्क (New York) में भी एक नर्स को फाइजर-बायोटेक (BioNTech) वैक्सीन दी गयी। उनका कहना है कि, यह वैक्सीन ठीक वैसी है, जैसी अन्य वैक्सीन होती हैं, अर्थात कोई भी बदलाव उन्होंने अपने अंदर महसूस नहीं किया। हालांकि, कोविड-19 विषाणु मानव के लिए घातक सिद्ध हुआ है, लेकिन सभी विषाणु एक समान नहीं होते हैं। मानव शरीर की बात करें तो, मानव जीनोम (Genome) विषाणुओं से भरा हुआ है, जो कि एक प्रकार की अद्भुत आणविक मशीनें हैं तथा बहुत छोटी दिखने वाली कोशिकाओं से भी बहुत छोटे हैं। जितना हम विषाणुओं के बारे में जानते हैं, वे उससे कई अधिक स्वाभाविक रूप से मानव जीवन से जुड़े होते हैं। मानव जीनोम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अंतर्जातीय रेट्रोवायरस (Endogenous Retroviruses) से बना है। अन्तर्जातीय रेट्रोवायरस एक प्रकार के वायरल जीन अनुक्रम (Viral Gene Sequences) हैं, जो हमारे प्राचीन पूर्वजों को संक्रमित करने के बाद आज मानव वंश का एक स्थायी हिस्सा बन गए हैं। इन अंतर्जातीय रेट्रोवायरस की जीनोम में उपस्थिति शांत नहीं होती, ये ऑटोइम्यून (Autoimmune) विकारों और स्तन कैंसर (Cancer) जैसी बीमारियों के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। विषाणु को जीवित रहने के लिए हमेशा अपने शरीर की आवश्यकता नहीं होती है। सभी जीवित चीजों की तरह उनके पास भी सर्कैडियन लय (Circadian Rhythm) होती है, जो, संक्रमण के दौर के बीच सुप्तावधि के रूप में होती है। इस प्रकार जब वे निष्क्रिय होते हैं तब, उन्हें शरीर की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन, जैसे ही वे सक्रिय होते हैं, भौतिक शरीर को शुद्ध आनुवंशिक रूप से फिर से बना लेते हैं। कुछ प्रकार के विषाणुओं को भौतिक रूप की भी आवश्यकता नहीं होती और उन्हें ट्रांस्पोसेबल तत्व (Transposable Elements) या ट्रांसपोज़न (Transposons) कहा जाता है। ट्रांसपोज़न आसानी से खुद को महत्वपूर्ण और कार्यात्मक जीन में सम्मिलित कर लेते हैं। मानव जीनोम का लगभग 50% हिस्सा ट्रांसपोजन से बना है।
ऐसे विषाणु जिन्होंने प्राचीन समय में हमारे पूर्वजों को संक्रमित किया, हमारे डीएनए (Deoxyribonucleic Acid - DNA) में आज भी मौजूद हैं। 2017 में, वैज्ञानिकों ने बताया कि गर्भवती महिलाओं की नसों में एक अजीब प्रकार का प्रोटीन (Protein) विचरण करता है। किसी को भी यह पता नहीं है कि, यह यहां किस लिए है? हीमो (Hemo) नामक यह प्रोटीन मां द्वारा नहीं बनाया गया है। इसकी बजाय यह माता के गर्भ (Fetus) और गर्भनाल (Placenta) में उस जीन के कारण बना है, जो मुख्य तौर पर एक विषाणु से आया है, जिसने 1000 लाख से भी अधिक साल पहले हमारे स्तनधारी पूर्वजों को संक्रमित किया था। हीमो, विदेशी मूल वाला एकमात्र प्रोटीन नहीं है। हमारे डीएनए में वायरल डीएनए के लगभग 100,000 टुकड़े हैं और कुल मिलाकर, वे मानव जीनोम का लगभग 8 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं। वैज्ञानिक यही पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि, आखिर वायरल डीएनए हमारे लिए क्या कर रहा है? वायरल जीन जो कि, हीमो की तरह प्रोटीन का उत्पादन करते हैं, विभिन्न प्रकार के अप्रत्याशित तरीकों से हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि, विषाणु, मानव के साथ एक जटिल संबंध सांझा करता है, जो हानिकारक भी है और फायदेमंद भी। जब विषाणु हमें संक्रमित करते हैं, तब वे अपने आनुवंशिक पदार्थों की छोटी सी मात्रा को हमारे डीएनए में भी जोड़ देते हैं। यह प्रक्रिया लाखों वर्षों से होती आ रही है, जिसके परिणामस्वरूप, विषाणु आनुवंशिक पदार्थ में आधुनिक मानव जीनोम का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा ही शामिल है। समय के साथ, हमारे जीनोम में स्थापित होने वाली विषाणुओं की एक बड़ी आबादी में इतने उत्परिवर्तन हुए हैं कि, अब वे सक्रिय संक्रमण नहीं कर सकते। हालांकि, वे पूरी तरह से निष्क्रिय भी नहीं हुए हैं। उदाहरण के लिए कुछ अंतर्जातीय रेट्रोवायरस, जो कैंसर जैसे रोगों की शुरुआत का कारण बन सकते हैं। वे अपने मेजबान को अतिसंवेदनशील भी बना सकते हैं, जिससे अन्य विषाणुओं का प्रवेश शरीर में आसानी से हो सकता है। इसके अलावा हमारे जीनोम में दफन प्राचीन विषाणु मल्टीपल स्केलेरोसिस (Multiple Sclerosis), मधुमेह और सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) जैसी कुछ बीमारियों का कारण भी बन सकते हैं। हालांकि, वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, विषाणु हमेशा हानिकारक हो, ऐसा आवश्यक नहीं है। यह मानव मेजबान की रोगों से सुरक्षा करने और स्टार्च (Starch) को पचाने जैसी प्रक्रियाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए अंतर्जातीय रेट्रोवायरस। इसे मेजबान की कोशिका में अपनी प्रतियां सफलतापूर्वक बनाने के लिए आणविक उपकरणों की आवश्यकता होती है, ठीक वैसे ही, जैसे इसके मेजबान या मानव को जीन को प्रोटीन में अनुवादित करने के लिए आणविक उपकरणों की आवश्यकता होती है।
नतीजतन, विषाणुओं के पास मानव कोशिकाओं के प्रोटीन-निर्माण तंत्र को निर्देशित करने के लिए उपकरण होते हैं। चूंकि, विषाणु की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करने की प्रवृत्ति होती है, इसलिए, ये प्रतिरक्षा प्रणाली जीन में आसानी से हेरफेर कर सकते हैं। इस प्रतिक्रया के फलस्वरूप ही शायद प्राचीन मानव जीनोम विकसित हुआ है। हो सकता है कि, मनुष्यों (या हमारे प्राचीन पूर्वजों) के जीनोम ने विषाणु और अन्य विदेशी तत्वों के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रेरित करने के लिए विषाणु डीएनए का उपयोग किया हो तथा अपने स्वयं के बचाव के लिए इसे फिर से बनाया हो। विषाणु, मनुष्यों की स्टार्च पचाने की क्षमता के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। एमाइलेज (Amylase - एक प्रोटीन जो कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) को पचाने में मदद करती है) बनाने के लिए मानव अग्नाशय जीन के पास एक रेट्रोवायरस का प्रवेश लार में एमाइलेज उत्पन्न होने का कारण बना है। इसके परिणामस्वरूप स्टार्च को पचाने की शुरूआत मुंह से होने लगी तथा मानव के लिए चावल और गेहूं जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन संभव हो पाया। इस प्रकार, विषाणु जहां मानव के लिए नुकसानदायक है, वहीं फायदेमंद भी है।
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.