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किसी भी भाषा को लिखने के लिए एक लिपि की आवश्यकता होती है, इसलिए पूरे विश्व में मानव-सभ्यता के विकास के साथ-साथ अनेकों लिपियों का भी जन्म होता गया। भारत में प्राचीन काल से ही अनेकों लिपियां विकसित हुई हैं, जिनमें से देवनागरी भी एक है। शब्द ‘देवनागरी’ विद्वानों के लिए रहस्य रहा है, तथा यह परिकल्पना की गयी है कि, यह शब्द दो संस्कृत शब्दों, ‘देव’ (भगवान या राजा) और नागरी’ (शहर) के संयोजन से बना है, जिसका अर्थ है, देवों का शहर या देवों की लिपि। यह लिपि पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी में प्राचीन भारत में विकसित हुई और 7 वीं शताब्दी ईस्वी तक नियमित रूप से उपयोग की जाने लगी। देवनागरी लिपि, 14 स्वर और 33 व्यंजन सहित 47 प्राथमिक वर्णों से मिलकर बनी है, तथा दुनिया में सबसे व्यापक रूप से अपनायी गयी चौथी लेखन प्रणाली है, जिसका इस्तेमाल 120 से अधिक भाषाओं में किया जा रहा है। इस लिपि की ऑर्थोग्राफी (Orthography) भाषा के उच्चारण को दर्शाती है। इसका उपयोग करने वाली भाषाओं में मराठी, पाली, संस्कृत, हिंदी, नेपाली, शेरपा, प्राकृत, अवधी, भोजपुरी, ब्रजभाषा, छत्तीसगढ़ी, हरियाणवी, नागपुरी, राजस्थानी, भीली, डोगरी, मैथिली, कश्मीरी, कोंकणी, सिंधी, संताली आदि हैं। यह लिपि नंदीनगरी लिपि से निकटता से संबंधित है, जो आमतौर पर दक्षिण भारत की कई प्राचीन पांडुलिपियों में पाई जाती है।
देवनागरी लिपि के विकास को देंखे तो, यह लिपि दो हजार से अधिक वर्षों में विकसित हुई है, जिसका उपयोग संस्कृत, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को लिखने में किया जाने लगा। इसके शुरूआत की कोई सटीक जानकारी निश्चित रूप से उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि, इसका विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ, जिसका इस्तेमाल 300 ईसा पूर्व सम्राट अशोक के शिलालेखों या अभिलेखों में किया गया था। इसके लेखन के संदर्भ भारत के प्राचीन धर्मग्रंथों में भी देखने को मिलते हैं, और इसलिए इसके प्रारम्भ की सटीक तारीख को बता पाना मुश्किल है। लगभग 200 ईसा पूर्व भारत पर अनेकों हिंदू राजाओं ने शासन किया तथा सूचनाओं का प्रसार पत्थर में मौजूद अभिलेखों के माध्यम से जारी रहा। ज्यादातर मामलों में, ये अभिलेख प्राकृत भाषा में नहीं बल्कि, संस्कृत भाषा में लिखे गये थे, जो यह इंगित करते हैं कि, उस समय हिंदू धर्म फिर से स्थापित हो रहा था। 300 ईसा पूर्व से 800 ईसा पूर्व तक ब्राह्मी लिपि में कई परिवर्तन हुए, जिसने वर्तमान नागरी लिपि को जन्म दिया। इसके बाद 1500 ईस्वी तक विभिन्न परिवर्तनों के फलस्वरूप आधुनिक देवनागरी का विकास हुआ। इस विकास क्रम को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:
300 ईसा पूर्व : इस काल में मौर्य साम्राज्य के तहत प्रारंभिक ब्राह्मी का विकास हुआ। कुछ विद्वानों का मानना है कि, ब्राह्मी स्वयं खरोष्ठी लिपि से विकसित हुई, जिसे दाएं से बाएं ओर लिखा जाता था।
200 ईस्वी : यह काल कुषाण या सतवाहन राजवंश का था तथा इस दौरान, ब्राह्मी लिपि में अनेक भिन्नताएँ (300 ईसा पूर्व की तुलना में) उत्पन्न हुईं। इस समय ब्राह्मी लिपि का लेखन घुमावों या वक्रों के साथ अधिक सजावटी हो गया। यह सजावटी रूप इस काल में स्पष्ट रूप से दिखायी दिया। हालांकि, अक्षरों का समूह पहले के समान ही रहा।
400 ईस्वी : गुप्त वंश के तहत भी ब्राह्मी लिपि अनेकों परिवर्तनों से गुजरी। इस काल की लिपि, अंतिम ब्राह्मी लिपि के रूप में भी जानी जाती है।
600 ईस्वी : इस समय यशोधर्मन राजवंश स्थापित था तथा इसके तहत भी ब्राह्मी लिपि में स्पष्ट परिवर्तन हुए।
800 ईस्वी : 800 ईस्वी के दौरान उत्तरी भारत में वर्धन राजवंश और दक्षिण भारत में पल्लव राजवंश का शासन था तथा वर्तमान नागरी लिपि इसी काल में अस्तित्व में आयी।
900 ईस्वी, 1100 ईस्वी, 1300 ईस्वी, तथा 1500 ईस्वी में क्रमशः चालुक्य और राष्ट्रकूट, चालुक्य (पुनः शासन), यादव और काकतीय, विजयनगर राजवंश स्थापित हुए, जिनके तहत वर्तमान नागरी लिपि विकसित होकर आधुनिक देवनागरी लिपि में परिवर्तित हुई। प्राचीन भारत में विकासशील संस्कृत नागरी लिपि से जुड़े कुछ प्रारंभिक युगीन साक्ष्य गुजरात में खोजे गए शिलालेख हैं, जो पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी के हैं। देवनागरी से सम्बंधित लिपि, नागरी के साक्ष्य, संस्कृत में रुद्रदमन शिलालेख से प्राप्त होते हैं, जो पहली शताब्दी ईस्वी के हैं, जबकि देवनागरी का आधुनिक मानकीकृत रूप लगभग 1000 ईस्वी में उपयोग में था। देवनागरी का शुरुआती संस्करण बरेली के कुटील अभिलेख में दिखाई देता है, जो 992 ईस्वी का है।
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