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ज्वालामुखियों पर नजर रखने के लिए, वैज्ञानिक सिस्मोग्राफिक डिटेक्सन (Seismographic Detection) सहित अनेकों तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं जो, विस्फोट से पहले होने वाली भूकंपीय कंपनों की पहचान करता है। ये तकनीकें भूमि विरूपण, जिसके साथ मैग्मा (Magma) का विकास, ज्वालामुखी गैस उत्सर्जन में परिवर्तन और गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्रों में परिवर्तन होता है, का भी सटीक मापन करती हैं। इन सभी घटनाओं की पहचान अलग-अलग नहीं की जा सकती है, लेकिन जब ज्वालामुखी पहचान वाले क्षेत्रों में इन तकनीकों का उपयोग एक साथ किया जाता है, तब विस्फोट की सफल भविष्यवाणी की जा सकती है। दरसल पृथ्वी के अंदर गहरे, पिघले हुए लोहे के आन्तरक और सतह पर पतली पपड़ी के बीच, चट्टान का एक ठोस पिंड होता है, जिसे मैंटल (Mantle) कहा जाता है। जब मैंटल से चट्टान पिघलती (अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव के कारण चट्टान पिघल कर तरल चट्टान या द्रुतपुंज बन जाता है।) जब द्रुतपुंज का एक बड़ा पिंड बनने लगता है, तो यह पृथ्वी की सतह की ओर सघन चट्टान की परतों को काटता है। सतह पर पहुंचने वाले द्रुतपुंज को लावा (Lava) कहा जाता है, वह पपड़ी के माध्यम से सतह पर जाती है, और उस से निकलने वाली गैसों का निवारण करती है, जिससे ज्वालामुखी फट जाती है।
अंडमान और निकोबार द्वीप (Andaman and Nicobar Islands) समूह में बेरन द्वीप (Barren Island) ज्वालामुखी, भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है, जो 2018 में आखिरी बार फटा था। भूवैज्ञानिकों के अनुसार यह विस्फोट हाल ही में इंडोनेशिया (Indonesia) में आए भूकंप से भी संबंधित था, जिसने उस समय इंडोनेशिया को पूरी तरह से हिला दिया था। वैसे तो भारत में पाए जाने वाले प्रमुख सक्रिय, सुप्त / मृत ज्वालामुखी बैरन आइलैंड, नारकोंडाम, डेक्कन ट्रेप्स (Deccan Traps), बारातांग, धिनोधार पहाडियां, धोसी (Dhosi) पहाडियां आदि हैं। सक्रिय ज्वालामुखी वे ज्वालामुखी होते हैं जिनके वर्तमान में या जल्द ही फटने की आशंका या सम्भावना होती है या फिर उसमें गैस रिसने, धुआँ या लावा उगलने, या भूकम्प आने जैसे सक्रियता के चिह्न दिखाई देते हों तो उसे सक्रिय माना जाता है। वहीं दूसरी ओर मृत ज्वालामुखी वे ज्वालामुखी हैं, जिनके भविष्य में फटने की सम्भावना नहीं होती है। इनके अन्दर लावा व द्रुतपुंज ख़त्म हो चुका होता है, जिस कारण इनके फटने की सम्भावना प्रायः नहीं होती है। फिलीपीन (Philippine) सागर में क्यूशू-पलाऊ रिज (Kyushu-Palau Ridge), पेरू (Peru) में हुआस्करन (Huascarán) तथा ऑस्ट्रेलिया (Australia) में माउंट ब्यूनिन्यौन्ग (Mount Buninyong) मृत ज्वालामुखी के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
ज्वालामुखी को आपदा की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि इनके फटने के साथ ही अपार जान-माल का नुकसान होता है। इसका लावा किसी भी प्राणी को खत्म करने के लिए पर्याप्त होता है। अतः इसके आस-पास रहने वाले लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है जोकि निम्नलिखित हैं:
• अधिकारियों द्वारा जारी किए गए निकासी आदेश का पालन करें और उड़ते मलबे, गर्म गैसों, पार्श्व विस्फोट और लावा के प्रवाह से बचने के लिए ज्वालामुखी क्षेत्र से तुरंत बाहर निकल जाएं।
• लावा के कीचड़ से सावधान रहें, ये कीचड़ हमारे चलने और दौड़ने की गति से भी तेज बढ़ सकते हैं। पुल पार करने से पहले ऊपर की ओर देखें और यदि पुल से मिट्टी का बहाव हो रहा हो तो पुल को पार न करें।
• नदी घाटियों और निचले इलाकों से बचें।
• यदि किसी कारणवश आप स्थान को खाली नहीं कर सकते हैं तो अपने आप को ज्वालामुखी की राख और लावे से बचाने के लिए दरवाज़े, खिड़कियां बंद रखें और घर के अंदर ही रहें।
• यदि किसी को श्वसन संबंधी बीमारी है, तो ज्वालामुखी की राख या लावे के संपर्क में आने से बचें।
• लंबी बाजू की शर्ट और लंबी पैंट पहनें।
• कॉन्टेक्ट लेंस (Contact lenses) के बजाय चश्में का इस्तेमाल करें।
• धूल से बचने के लिए मास्क (Mask) का उपयोग करें या अपने चेहरे पर एक नम कपड़ा रखें।
• ज्वालामुखी की राख से बचने के लिए ज्वालामुखी से नीचे के क्षेत्रों से दूर रहें।
• जब तक राख स्थिर नहीं होती तब तक घर के अंदर रहें सिवाय जब तक छत के ढहने का खतरा न हो।
• घर में दरवाजे, खिड़कियां और सभी वायु-संचालन (चिमनी निकासी, भट्टियां, वातानुकूलक, प्रशंसक और अन्य निकासी) बंद करें।
• सपाट या कम ऊंचाई वाली छतों और बारिश के नाली से भारी राख साफ़ करें।
• जब तक बिल्कुल आवश्यक न हो, तब तक भारी राख गिरने के समय गाड़ी चलाने से बचें। यदि आवश्यक है तो 35 एमपीएच (MPH) या धीमी गति पर चलाएं।
बड़े पैमाने पर ज्वालामुखीय गतिविधि केवल कुछ दिनों तक रह सकती है, लेकिन गैसों और राख के बड़े पैमाने पर फैलाव जलवायु प्रतिरूप को वर्षों तक प्रभावित कर सकते हैं। सल्फ्यूरिक (Sulfuric) गैसें सल्फेट एरोसोल (Sulfate aerosols) में परिवर्तित हो जाती हैं, जो सब-माइक्रोन (Sub-micron) बूंदों में लगभग 75% सल्फ्यूरिक अम्ल (Sulfuric Acid) होता है। विस्फोट के बाद, ये एरोसोल कण (Aerosol Particle) तीन से चार साल तक लंबे समय तक रह सकते हैं। प्रमुख विस्फोट पृथ्वी के विकिरण संतुलन को बदल देते हैं क्योंकि ज्वालामुखीय एरोसोल बादल स्थलीय विकिरण को अवशोषित करते हैं, और आने वाले सौर विकिरण की एक महत्वपूर्ण मात्रा को इधर उधर कर देते हैं, इस प्रभाव को "विकिरण" के रूप में जाना जाता है जो ज्वालामुखी विस्फोट के बाद दो से तीन साल तक रह सकता है।
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