जौनपुर के पास स्थित चोपनी मांडो से मिले विश्व के प्राचीनतम मृदभांड

ठहरावः 2000 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व तक
01-12-2020 09:29 AM
जौनपुर के पास स्थित चोपनी मांडो से मिले विश्व के प्राचीनतम मृदभांड

भारतीय सभ्यता प्राचीन से ही कृषि प्रधान रही है, यदि इसके इतिहास पर नजर डाले तो पता चलता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि के प्राचीनतम प्रमाण नवपाषाण काल में मिलते हैं। उत्खनन स्थल चोपनी मांडो (Chopani-Mando) से नव पाषाण काल के कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जो सिद्ध करते हैं कि मानव ने कृषि का शुभांरम इसी युग से किया। यहां पर मध्यपाषाण काल के अंतिम चरण या नवपाषाण काल में मिट्टी के बर्तनों का निर्माण शुरू हुआ। इससे पता चलता है कि मानवों ने इस काल से भोजन एकत्र करने के लिये मिट्टी के बर्तनों का निर्माण शुरू कर दिया था। वास्तव में चोपनी मांडो से संसार के सबसे पुराने मिट्टी के बर्तनों के अवशेष प्राप्त हुये हैं। खुदाई के दौरान इस काल की मिली झोपड़ियां गोलाकार और अण्डाकार थी। जो मृद्भाण्ड मिले हैं, वे अत्यंत भंगुर और अच्छी तरह से पके हुए नहीं हैं। बर्तनों की बाहरी सतह पर फूल-पत्ती तथा शंख जैसी छाप मिलती है। पुरातात्विक आधार पर मध्य पाषाण काल से नव पाषाण काल के बीच चोपनी-माण्डो के सम्पूर्ण सांस्कृतिक जमाव की तिथि आंकी गई है। यह उत्तर प्रदेश (प्रयागराज) के कुछ नवपाषाण स्थलों में से एक है।
इसके अतिरिक्त बेलन घाटी का एक अन्य प्रासंगिक उत्खनन स्थल कोल्डिहवा (Koldihawa) भी है। कोल्डिहवा एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, इस स्थान पर चावल की खेती करने के प्राचीनतम अवशेष मिले हैं, जिसका समय मध्य पाषाण या नव पाषाण काल का माना जाता है। यहां से मध्य पाषाण काल के मिट्टी की सतह पर बकरी, भेड़, घोड़े, हिरण और जंगली सुअर के खुर के निशान और हड्डियां मिली है। पुरातत्वविदों को यहां से पशुपालन के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। यह भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य नवपाषाण स्थलों जैसे कि बुर्जहोम (Burzahom), मेहरगढ़ (Mehrgarh), चिराँद (Chirand) से अलग है क्योंकि इन स्थानों में प्राप्त खेती के साक्ष्यों में गेंहू की फसलें शामिल थी और दक्षिण भारत के अन्य स्थलों जैसे हल्लूर और पय्यमपल्ली (Hallur and Paiyampalli) से बाजरे की खेती के प्रमाण मिले। कोल्डिहवा ही एकमात्र ऐसा उत्खनन स्थल है जहां चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए थे। यह जौनपुर से कुछ ही दूरी पर स्थित प्रयागराज जिले (Prayagraj) (उत्तर प्रदेश) में बेलन नदी घाटी में स्थित है।
इस काल का आधारभूत तत्व खाद्य उत्पादन तथा पशुओं को पालतू बनाये जाने की जानकारी का विकास है। यह काल पाषाण युग का अंतिम और तीसरा भाग था, इसकी अवधि 7,000 ईसा पूर्व से 1,000 ईसा पूर्व तक रही। नियोलिथिक (Neolithic) युग यानी की नवपाषाण युग का अंत ताम्र पाषाण युग या चाल्कोलिथिक (Chalcolithic) युग के आरंभ से हुआ। जिसमें तांबे का उपयोग देखा गया, यह नवपाषाण युग के अंत में उपयोग की जाने वाली पहली धातु थी। विश्वस्तरीय संदर्भ में नवपाषाण युग की शुरूआत लगभग 9000 ईसा पूर्व में मानी जाती है परन्तु भारत में जो कृषि के प्रारम्भिक साक्ष्य मिलते हैं वे लगभग 7000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व पुराने है। दक्षिण भारत (South India) में, नवपाषाण की बस्तियों के जो अवशेष प्राप्त हुये है, वो आमतौर पर लगभग 2500 ईसा पूर्व पुराने हैं जबकि विंध्य (Vindhya) के उत्तरी इलाकों पर खोजे गए नवपाषाण काल के स्थल 5000 ईसा पूर्व से पुराने नहीं हैं। पूर्वी और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में पाए जाने वाले नवपाषाण काल के स्थल केवल 1000 ईसा पूर्व पुराने हैं।
नवपाषाण काल की अग्रलिखित महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं- कृषि कार्य का प्रारम्भ, पशुपालन का विकास, पॉलिश (Polish) किए गए पत्थरों से बने उपकरणों और हथियारों के उपयोग तथा ग्राम समुदाय का प्रारम्भ आदि। इस अवधि में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें रागी, कपास, चावल, गेहूं और जौ थीं। इस युग में लोग झील के पास रहते थे तथा आस पास के स्थानों में शिकार और मछली पकड़ने जाया करते थे। पत्थरों से बने हथियारों के अलावा उन्होंने माइक्रोलिथिक ब्लेड (Microlithic Blades) का इस्तेमाल भी किया। वे कुल्हाड़ियां (Axes), छेनी (Chisels) और सील्ट (Celts) का इस्तेमाल करते थे। प्राय: ऐसा माना जाता था कि चोपनी मांडो से मिले नव पाषाण काल के हस्त निर्मित मृदभांडों की उपस्थिति सर्वप्रथम खाद्य उत्पादक बस्तियों का अनिवार्य लक्षण थी। यह युग मेगालिथिक (Megalithic) वास्तुकला के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस काल के लोग गोलाकार या आयताकार घरों में रहते थे जो मिट्टी और ईख से बनाए जाते थे। कुछ स्थानों पर मिट्टी-ईंट के घरों के भी प्रमाण पाये गये। प्रौद्योगिकी के संदर्भ में नवपाषाण युग में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी। लोगों ने खेती करने और जानवर पालने के साथ साथ घर बनाने, मिट्टी के बर्तन बनाने, बुनाई और लिखने की प्रथाओं को विकसित किया। इसने मनुष्य के जीवन में क्रांति ला दी और सभ्यता की शुरुआत का मार्ग प्रशस्त किया। नियोलिथिक लोग (Neolithic people) पहाड़ी इलाकों से ज्यादा दूर नहीं रहते थे। वे मुख्य रूप से पहाड़ियों या ढलानों, नदीयों के किनारे और घाटियों में रहते थे, क्योंकि वे पूरी तरह से पत्थरों से बने हथियारों और उपकरणों पर निर्भर थे। उन्होंने उत्तरी भारत, दक्षिण भारत और पूर्वी भारत के कई स्थानों पर निवास किया। जारफ अल अहमर (Jarf Al Ahmar) और टेल अबू हुरैरह (Tell Abu Hureyra) सीरिया (Syria)) एशिया के प्रमुख नियोलिथिक स्थल थे। भारतीय नियोलिथिक बस्तियों में से कुछ के नाम और स्थान निम्न तालिका में दिये हुये हैं: महाराष्ट्र क्षेत्र के चंदौली, कृष्णा की एक सहायक नदी और नेवसा और दैमाबाद आदि स्थलों से मिले प्रमाण बताते है कि नवपाषाणकालीन किसान अब ताम्रपाषाण काल के प्रथम चरण में चले गए थे। ताम्रपाषाण काल में कृषि कार्य पूर्णत: स्थापित हो गया। ताम्रपाषाण एवं सिन्धु घाटी सभ्यता दोनों में पत्थर के उपकरणों का ही अधिक प्रयोग हुआ। यदि विश्व स्तर पर कृषि का इतिहास देखा जाये तो लगभग 10,000 से 15,000 साल पहले, मानव ने प्रकृति को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढालना शुरू किया और कृषि का उजागर चारों ओर कई स्थानों पर हुआ। माना जाता है कि कृषि नवपाषाण काल में उभरी और मेसोपोटामिया (Mesopotamia), चीन (China), दक्षिण अमेरिका (South America) तथा उप-सहारा अफ्रीका (Sub-saharan Africa) के विभिन्न स्थानों में फैल गयी। जंगली अनाज कम से कम 105,000 साल पहले खाया जाता था। हालाँकि, बाद में जंगली अनाज खाना बंद हो गया और लगभग 9500 ई.पू. नवपाषाण काल में गेहूं, इंकॉर्न (Einkorn) गेहूं, पतले जौ, मटर, मसूर, करेला, और चने की खेती होने लगी। चीन में 6200 ईसा पूर्व में 5700 ईसा पूर्व से ज्ञात खेती के तरीकों से चावल का घरेलू उत्पादन किया गया था, इसके बाद मूंग, सोया और अजुकी फलियों (Azuki Beans) का उत्पादन किया गया। कृषि के अलावा इस युग में पशुधन का भी विकास हुआ। 11,000 ईसा पूर्व के आसपास मेसोपोटामिया में सूअरों को पालतू बनाया गया था, इसके बाद 11,000 ईसा पूर्व और 9000 ईसा पूर्व के बीच भेड़ों का पालन किया गया। आधुनिक तुर्की (Turkey) और भारत (India) के क्षेत्रों में 8500 ईसा पूर्व के आसपास मवेशियों को पालतू बनाया गया था। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मनुष्य पौधों और पशुधन के प्रजनन में और अधिक परिष्कृत होते गए, जो हमारी जरूरतों को पूरा करते थे। कांस्य युग के आते आते मेसोपोटामिया सुमेर (Mesopotamian Sumer), प्राचीन मिस्र (Ancient Egypt), भारतीय उपमहाद्वीप की सिंधु घाटी (Indus Valley) सभ्यता, प्राचीन चीन (Ancient China) और प्राचीन ग्रीस (Ancient Greece) जैसी सभ्यताऐं कृषि के गहनता की गवाह बन गई।

संदर्भ:
https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/the-neolithic-age-1430564528-1
https://en.wikipedia.org/wiki/Chopani_Mando
https://upsctreedotcom.wordpress.com/tag/chopani-mando/
https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_agriculture
https://bit.ly/2kQnFra
https://en.wikipedia.org/wiki/Koldihwa
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में नवपाषाणकालीन किसान का सांकेतिक चित्रण दिखाया गया है। (Publicdomainpictures)
दूसरे चित्र में कोल्डिहवा उत्खनन स्थल को दिखाया गया है। (Needpix)
तीसरे चित्र में भारतीय नियोलिथिक बस्तियों में से कुछ के नाम और स्थान की तालिका दिखाई गई है। (Prarang)
अंतिम चित्र में खेती, मृदभांड, और औजारों का चित्र दिखाया गया है। (Prarang)
पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.