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पुरातात्विक स्थलों की खुदाई में अक्सर ऐसी कलाकृतियां प्राप्त होती हैं, जिन पर किसी धर्म या संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखायी देता है। ऐसी ही एक कलाकृति पोम्पेई लक्ष्मी (Pompeii Lakshmi) की हाथीदांत की मूर्ति भी है। 79 ईस्वी में माउंट वेसुवियस (Mount Vesuvius) के विस्फोट में इटली (Italy) का एक छोटा शहर पोम्पेई पूरी तरह से नष्ट हो गया था तथा जब कई वर्षों बाद इस स्थान पर खुदाई की गयी तब, शहर के अनेकों ध्वंस अवशेष प्राप्त हुए, जिनमें से यह मूर्ति भी एक थी। इस मूर्ति की खोज सन् 1938 में एक इतालवी विद्वान एमेडियो मैयूरी (Amedeo Maiuri) ने की थी, जिसे अब नेपल्स नेशनल आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम (Naples National Archaeological Museum) के गुप्त संग्रहालय में रखा गया है। मूर्ति की आइकोनोग्राफी (Iconography) की बात करें तो, इसे नग्न रूप में बनाया गया है। गले, कमर, बाल इत्यादि भागों को भव्य और सुंदर रत्नों या आभूषणों के साथ उकेरा गया है। मूर्ति के दोनों किनारों पर अन्य दो छोटी मूर्तियां भी हैं, जिन्हें या तो सहायक सुंदरियों के रूप में या फिर दो छोटे बच्चों के रूप में दर्शाया गया है। इन दोनों छोटी मूर्तियों को हाथ में श्रृंगार-प्रसाधन पात्र लिए हुए उकेरा गया है। कुछ लेखकों का मानना है कि मूर्ति मूल रूप से किसी दर्पण का हत्था रही होगी, लेकिन वहीं कुछ अन्य लेखक मानते हैं कि, यह मूल रूप से किसी छोटे फर्नीचर (Furniture) के तीन पैरों में से एक पैर रहा होगा।
मूल रूप से यह माना गया था कि मूर्ति स्त्री-सौंदर्य, प्रजनन और धन की हिंदू देवी लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन मूर्ति में कमल, हाथी या उल्लू (जो कि, देवी लक्ष्मी के प्रतीक हैं) के अभाव के कारण यह भी माना जाता है, कि मूर्ति हिंदू देवता यक्ष का स्त्री रूप, ‘यक्षी’ का प्रतिनिधित्व करती है। यक्ष प्रकृति-आत्माओं का एक व्यापक वर्ग है, जो आमतौर पर उदार है, लेकिन कभी-कभी हानिप्रद भी होता है। इसका सम्बंध पानी, प्रजनन, पेड़, जंगल इत्यादि से है।
यक्ष के स्त्री रूप को ‘यक्षिणी’ या ‘यक्षी’ कहा जाता है, जिसे भारतीय लोक-कथाओं में एक पेड़ की आत्मा के रूप में उल्लेखित किया गया है। मूर्ति की आइकोनोग्राफी, रोम (Rome) की पौराणिक कथाओं में उल्लेखित देवी ‘वीनस’ (Venus) से भी मिलती-जुलती है, इसलिए मूर्ति को अब वीनस-श्री-लक्ष्मी का नाम भी दिया गया है। मूर्ति की उत्पत्ति का सटीक अनुमान अभी तक ज्ञात नहीं हुआ है, लेकिन पहले माना जाता था कि, मूर्ति मथुरा में निर्मित हुई होगी, हालांकि बाद में इस विचार को नकार दिया गया। अब अधिकतर लोग मानते हैं कि, मूर्ति महाराष्ट्र के भोकरदन (Bhokardan) में निर्मित हुयी होगी, जो कि, उस समय सतवाहना (Satavahana) क्षेत्र का हिस्सा था। ऐसा इसलिए माना गया, क्योंकि पुरातत्वविदों ने इस क्षेत्र के आस-पास पोम्पेई लक्ष्मी से मिलती-जुलती कई मूर्तियां प्राप्त की हैं। मूर्ति की उत्पत्ति के संदर्भ में यह अंतिम निष्कर्ष नहीं है, क्योंकि मूर्ति के आधार पर खरोष्ठी लिपि भी मौजूद है, जो यह सुझाव देती है कि, यह प्राचीन भारत के गांधार (वर्तमान पाकिस्तान में) में निर्मित की गयी होगी। इसके अलावा मूर्ति कुषाण काल की बेग्राम (Begram) हाथीदांत की मूर्तियों से भी मिलती-जुलती है, जिन्हें 1936 से 1940 के बीच बेग्राम, अफगानिस्तान (Afghanistan) में पाया गया था। मूर्ति के आधार पर मिली खरोष्ठी लिपि, भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में रहने वाले इंडो-यूनानियों (Indo-Greeks) द्वारा प्रयुक्त की जाती थी। यह मूर्ति सांची स्तूप पर पायी गयी मध्य भारतीय बौद्ध मूर्तियों से मिलती-जुलती है, जिसके कारण इतिहासकार मूर्ति की उत्पत्ति का एक अच्छा अनुमान लगा पाये हैं। इसे शायद मध्य भारत में उज्जैन के किसी स्थान के पास गांधार शासकों (जहां इंडो-यूनानियों ने शासन किया) के लिए बनाया गया होगा। ‘शाक’ (इंडो-सीथियन-Indo-Scythians) द्वारा किये गये हमलों के बाद भी यह मूर्ति अस्तित्व में थी। शायद इसने उत्तर पश्चिमी उपमहाद्वीप में यूनानी व्यापारियों या विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया होगा। हो सकता है, यह मूर्ति मिस्र (Egypt) में भी रही हो, क्योंकि, मिस्र में लाल सागर बंदरगाह भारतीयों के लिए नौकायन के माध्यम से रोम जाने का सबसे अच्छा तरीका था।
हालांकि इस समय मानसूनी हवाओं की घटना को समझा जाने लगा था, लेकिन इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि, मूर्ति इथियोपिया (Ethiopia), जहां मानसून शुरू होता है, में गयी होगी। इस विदेशी मूर्तिकला को शायद अंततः धनी अभिजात वर्ग ने खरीदा होगा। हम जानते हैं कि जिस प्रकार इस दौरान रोमन वस्तुएं भारतीय लोगों को आकर्षित करती थीं, ठीक उसी प्रकार से भारतीय वस्तुएं जैसे मसाले, रेशम आदि ने धनी रोमन अभिजात वर्ग को बहुत अधिक आकर्षित किया। मूर्ति का इस तरह से पोम्पेई पहुंचना रोम और भारत के बीच व्यापारिक सम्बंधों को चिन्हित करता है, जो यह बताता है कि, वैश्वीकरण की घटना आधुनिक नहीं, बल्कि, बहुत पुरानी है।
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