बौद्ध धर्म के ग्रंथों में मिलता है पृथ्वी के अंतिम दिनों का रहस्य

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
24-11-2020 09:02 AM
बौद्ध धर्म के ग्रंथों में मिलता है पृथ्वी के अंतिम दिनों का रहस्य

जैसा कि हम कहते हैं "इतिहास अपने आपको दोहराता है" उसी प्रकार समय चक्र भी पुनरावृत्ति करता है। जो चीज बनी है, वो एक दिन नष्ट हो जायेगी फिर चाहे वो मनुष्य हो या ब्रह्माण्ड, और इसके बाद एक बार फिर से उसका नवनिर्माण होगा। इसी विचार धारा से उदय हुआ है 'परलोक सिद्धांत' का। वैसे तो अधिकांश धर्मों में पुनर्जन्म एवं परलोक की मान्यता देखी जा सकती है, विभिन्न धर्मों में मृत्यु और उसके बाद के जीवन के यानि परलोक सिद्धांत के संदर्भ में अलग अलग मान्यताएं हैं। परंतु बौद्ध धर्म में यह माना जाता है कि ब्रह्मांड का कोई प्रारंभ या अंत नहीं है, यहां हर अस्तित्व शाश्वत है, इसका कोई भी रचनाकार नहीं है। बौद्ध धर्म में ब्रह्मांड को अविरल और हमेशा प्रवाहमान माना गया है। इसी ब्रह्माण्ड विज्ञान ने बौद्ध धर्म में संसार (Sansāra) (मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्रसिद्धांत) की नींव डाली। बौद्ध परलोक सिद्धांत (Buddhist Eschatology) यह बताता है कि सांसारिक अस्तित्व का पहिया या चक्र हमेशा चलता रहता है, पुनर्जन्म और पुनर्मृत्यु अंतहीन चक्रों में चलती ही रहती है, जिसमें जीव का बार-बार जन्म होता है और बार-बार मृत्यु भी। बौद्ध परलोक सिद्धांत के दो प्रमुख बिंदु हैं: मैत्रेय की उपस्थिति और सात सूर्यों का उपदेश। बौद्ध परम्पराओं के अनुसार, मैत्रेय एक बोधिसत्व है, जो पृथ्वी पर भविष्य में अवतरित होंगे। मैत्रेय को भविष्य का बुद्ध माना जाता है और इन्हें 'हंसता बुद्ध' के रूप में भी जाना जाता है। बौद्ध मान्यताओं के अनुसार मैत्रेय भविष्य के बुद्ध हैं, जो बुद्धत्व प्राप्त करेंगे तथा विशुद्ध धर्म की शिक्षा देंगे। मैत्रेय के आगमन की भविष्यवाणी एक ऐसे समय में इनके आने की बात कहती है, जब धरती के लोग धर्म को भूल चुके होंगे। बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं का वर्णन करते हुए कहा कि उनके निधन के पाँच हजार वर्ष बाद (लगभग 4600 ई.पू.) धर्म का ज्ञान विलुप्‍त हो जाएगा, उनके अंतिम अवशेषों को बोधगया में एकत्रित किया जाएगा और उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। तभी से एक नए युग की शुरूआत होगी, जिसमें एक बोधिसत्व मैत्रेय पृथ्वी पर मानव जाति के पतन से पूर्व जन्‍म लेंगे। यह लालच, वासना, गरीबी, बीमार इच्छा, हिंसा, हत्या, अशुद्धता, शारीरिक कमजोरी, लैंगिक दुर्बलता और सामाजिक पतन की अवधि होगी, यहां तक कि स्वयं बुद्ध को भी लोग भूल जाएंगे। इसके बाद एक नया स्वर्ण युग आएगा।
मैत्रेय का सबसे पहला उल्लेख पाली कैनन (Pali Canon) के दीघनिकाय 26 के काकवत्ती (सिहानदा) (Cakavatti (Sihanada) ) सुत्त से मिलता है। वहीं मैत्रेय बुद्ध के जन्म की पहले से ही भविष्यवाणी की गई है, जिसके मुताबिक मैत्रेय बुद्ध का जन्म केतुमती (Ketumatī) शहर में (तत्कालीन बनारस (Benares)) होना कहा गया है, जिसके राजा कक्कवत्ति संख (Cakkavattī Sankha) होंगे। संख राजा महाजपनद के पूर्व महल में रहेंगे, लेकिन बाद में मैत्रेय के अनुयायी बनने के लिए महल से दूर चले जाएंगे। बुद्ध का कहना था मैत्रेय नाम का एक महान दुनिया में प्रकट होगा, जो पूरी तरह से जागृत होगा। ज्ञान और भलाई के नेतृत्व के लिए तैयार होगा। शिक्षकों का मार्गदर्शक बनेगा, जैसा कि मैं अभी हूं। महायान (Mahayana) बौद्ध धर्म में, मैत्रेयी सात दिनों में बोधि प्राप्त कर लेंगे और बुद्ध बनने के बाद वह केतुमती की भूमि पर शासन करेंगे, जो उत्तर प्रदेश में वाराणसी या बनारस से जुड़ा एक सांसारिक स्वर्ग होगा। महायान बौद्ध धर्म में, बुद्ध एक पवित्र भूमि पर शासन करेंगे। वहीं इस अवधि में वे दस पापों (हत्या, चोरी, लैंगिक दुराचार, झूठ, विभाजनकारी भाषण, अपमानजनक भाषण, निष्क्रिय भाषण, लोभ, हानिकारक इरादे और गलत विचारों) और दस पुण्यों के विषय में मानव जाति को बताएंगे। बौद्ध धर्म में कहा गया है कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद पुनः जन्म लेना और संसारचक्र में बने रहना सबसे बड़ा दुःख है। यह चक्र तभी टूटता है, जब ज्ञान प्राप्त होता है और इच्छाओं का अन्त हो जाता है। कर्म, निर्वाण और मोक्ष की भांति पुनर्जन्म भी बौद्ध धर्म का एक मूल सिद्धान्त है। इस संदर्भ में बुद्ध का कहना था "मैत्रेय, श्रेष्ठ पुरुष, तब तुषित (Tuṣita) स्वर्ग छोड़ देंगे, और अपना अंतिम पुनर्जन्म लेंगे। जैसे ही वह पैदा होंगे, वे सात कदम आगे चलेंगे, जहां वह अपने कदम रखेंगे वहां एक कमल उगेगा। वह अपनी आँखों को दस दिशाओं की ओर घुमाते हुए कहेंगे: "यह मेरा अंतिम जन्म है। इसके बाद कोई पुनर्जन्म नहीं होगा। कभी भी मैं यहां वापस नहीं आऊंगा, मैं निर्वाण प्राप्त कर लूंगा।" वहीं दूसरी ओर पाली कैनन (Pali Canon) के अंगुत्तरनिकाय (Aṅguttara Nikāya ) में सत्तसूर्य सुत्त (Sattasūriya Sutta) ("सात सूर्य" का उपदेश)(sermon of the "Seven Suns) में, बुद्ध एक सर्वनाश (जो आकाश में सात सूर्यों के फलस्वरूप होगा) और दुनिया के अंतिम दिन का वर्णन करते हैं, जिसमें पृथ्वी के नष्ट होने का संदर्भ दिया गया है। बौद्ध धर्म के अनुसार बुद्ध कहते हैं कि “हे भिक्षुओं! सैकड़ों हजारों वर्षों के बाद, बारिश बंद हो जाएगी। सभी अंकुर, सभी वनस्पति, सभी पौधे, घास और पेड़ सूख जाएंगे और खत्म हो जाएंगे ... इस मौसम के बाद एक और मौसम आयेगा जब एक दूसरा सूरज दिखाई देगा। तब सभी कुएँ और तालाब सूख जाएंगे, लुप्त हो जाएंगे।” कैनन प्रत्येक सूरज के प्रगतिशील विनाश का वर्णन करते हुए बताते है कि तीसरा सूर्य शक्तिशाली गंगा और अन्य महान नदियों को सुखा देगा। जबकि चौथा सूरज महान झीलों को लुप्त कर देगा, और पांचवा सूरज महासागरों को सुखा देगा। फिर से एक लंबे समय के बाद एक छठा सूरज दिखाई देगा, और यह पृथ्वी को तब तक सेकेगा, जब तक कि वह कुम्हार द्वारा पकाये बर्तन के समान नहीं हो जाती, तब सभी पहाड़ फिर से धू-धू कर जल उठेंगे। एक और महान अंतराल के बाद एक सातवां सूरज दिखाई देगा और पृथ्वी आग से तब तक झुलसती रहेगी, जब तक कि यह समान द्रव्यमान की ज्वाला नहीं बन जाती। पहाड़ों को भस्म कर दिया जाएगा.... इस प्रकार, हे भिक्षुओं! सभी चीजें जल जाएंगी, नष्ट हो जाएंगी और उन लोगों के अलावा और कोई नहीं होगा, जिन्होंने ज्ञान का मार्ग देखा है। दुनिया में बौद्ध धर्म के पतन और परलोक सिद्धांत की धारणा ने बुद्ध के समय से बौद्ध धर्म के विकास में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। मुख्य रूप से चीन (China), जापान (Japan) में और पूर्व एशियाई बौद्ध संरचनाओं ने, धर्म की प्रतिरूपिका के आधार पर अपने स्वयं के परलोक सिद्धांत को विकसित कर लिया। चीनी बौद्ध धर्म में बहुत सारी ताओवादी और विभिन्न सांस्कृतिक चीनी परम्पराएँ मिश्रित हैं, यहां मैत्रेय की संदेशात्मक विशेषताओं पर व्यापक रूप से जोर दिया गया है। चीन में विद्वानों ने आमतौर पर अंतिम धर्म की शुरुआत 552 ईसवीं में होने की बात को स्वीकार किया है। तिब्बती (Tibet) बौद्ध साहित्य के अनुसार, पहले बुद्ध 1,000,000 वर्ष जीवित रहे, जबकि 28वें बुद्ध, सिद्धार्थ गौतम (563 ईसवीं -483 ईसवीं) 80 वर्ष तक ही जीवित रहे। जापानी लेखकों के अनुसार, कई बौद्धों का मानना था कि वे नारा और हीयन (Nara and Heian) (आठवीं-बारहवीं शताब्दी के अंत तक) के समय में रह रहे थे, जिसमें उन्हें बौद्ध परलोक सिद्धांत का ज्ञान था। यद्यपि सभी देशों की बौद्ध संस्कृतियों ने बौद्ध धर्मग्रंथों की अपनी समझ के सापेक्ष अंतिम धर्म परलोक सिद्धांत की इस भावना को साझा किया, लेकिन इस तरह के पतनशील ब्रह्मांड संबंधी परिस्थितियों में बौद्ध धर्म का अभ्यास कैसे किया जाए, इसकी प्रक्रिया काफी अलग है।
अंगुत्तरनिकाय और काकवत्ती (सिहानदा) (Cakavatti (Sihanada)) सुत्त एक महान विश्वदृष्टि और राजनीतिक व्यवस्था की समझ प्रस्तुत करते हैं। ये दक्षिण एशियाई बौद्ध संस्कृति और साहित्य में पालि और संस्कृत दोनों भाषाओं में हैं। इसके अलावा बुद्ध द्वारा दिये गये परलोक सिद्धांत पर आधारित धर्मग्रंथों को बौद्ध समुदाय द्वारा और भी भाषाओं में अनुवादित किया गया है। बौद्ध मत में कर्म के सिद्धांत पर बल दिया जाता है। मनुष्य को अपने कर्मों का भोगना ही होता है, आपके वर्तमान का निर्णय भूतकाल के कार्य पर निर्भर करता है। अपने कर्मों को भोगने के लिए हम बार-बार जन्म लेते हैं, और यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरह का पाप नहीं करता है तो उसका पुनर्जन्म नहीं होगा, वह ‘निर्वाण’ प्राप्त कर लेगा। इस प्रकार, वैदिक धर्म में होने वाले अनुष्ठानों एवं यज्ञों के विपरित बुद्ध ने व्यक्तिगत नैतिकता पर बल दिया।

संदर्भ:
https://bit.ly/32WMkNH
https://www.academia.edu/2243893/Eschatology_and_World_Order_in_Buddhist_Formations
https://en.wikipedia.org/wiki/Buddhist_eschatology
चित्र सन्दर्भ:
प्रथम चित्र में महात्मा बुद्ध की प्राचीन प्रतिमा चित्रित है। (Flickr)
दूसरे चित्र में बोधिसत्व मैत्रेय का चित्रण है। (Prarang)
तीसरा चित्र भवचक्र का है, चक्र के केंद्र में तीन जहरों के साथ पुनर्जन्म के चक्र का एक चित्रण है। (Wikimedia)
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