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ईसाई धर्म, विश्व के मुख्य धर्मों में से एक है, जिसके अपने अनेकों संप्रदाय या शाखाएं हैं। 2015 में किये गये एक अनुमान के अनुसार, 242 या 230 करोड़ अनुयायियों के साथ ईसाई धर्म, विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समूह है। इसके मुख्य संप्रदाय पूर्वी कैथोलिक चर्च (Catholic Church) सहित कैथोलिक चर्च, सभी पूर्वी रूढ़िवादी या ओरिएंटल (Oriental) चर्च, 2 लाख लोगों के साथ प्रोटेस्टेंट (Protestant) समुदाय, रेस्टोरेशनिस्ट (Restorationist) और नॉनट्रिनिटेरियन (Nontrinitarianian) संप्रदाय, स्वतंत्र कैथोलिक संप्रदाय हैं। विश्व में कैथोलिक संप्रदाय का प्रतिशत 50.1, प्रोटेस्टेंट संप्रदाय का प्रतिशत 36.7, पूर्वी या ओरिएंटल रूढ़िवादी संप्रदाय का प्रतिशत 11.9, तथा अन्य ईसाई संप्रदाय का प्रतिशत 1.3 है। 132.9 करोड़ के साथ कैथोलिक धर्म, ईसाई धर्म की सबसे बड़ी शाखा है और कैथोलिक चर्च, सभी चर्चों में सबसे बड़ा है। इसकी अन्य शाखा 180 लाख लोगों के साथ स्वतंत्र कैथोलिक संप्रदाय है। 80 करोड़ अनुयायियों के साथ प्रोटेस्टेंट शाखा, ईसाई धर्म की दूसरी सबसे बड़ी शाखा है, जिसे ऐतिहासिक प्रोटेस्टेंटवाद और आधुनिक प्रोटेस्टेंटवाद में बांटा जा सकता है। 30 से 40 करोड़ की संख्या के साथ ऐतिहासिक प्रोटेस्टेंटवाद के प्रमुख संप्रदाय एंग्लिकनवाद (Anglicanism), बैपटिस्ट (Baptist) चर्च, लुथरनवाद (Lutheranism), केल्विनवाद (Calvinism), मेथोडिज्म (Methodism), रेस्टोरेशन आंदोलन, एनाबपतिज्म (Anabaptism) आदि हैं, जबकि 40 से 50 करोड़ की संख्या के साथ आधुनिक प्रोटेस्टेंटवाद के प्रमुख संप्रदाय पेंटेकोस्टलिज्म (Pentecostalism), अफ्रीकियों (African) द्वारा शुरू किये गए चर्च, चीनी देशभक्त (Chinese Patriotic) ईसाई चर्च, न्यू एपोस्टोलिक (New Apostolic) चर्च आदि हैं। ईसाई धर्म की अन्य शाखाएं, 22 करोड़ लोगों के साथ पूर्वी रूढ़िवादी, 620 लाख लोगों के साथ ओरिएंटल रूढ़िवादी, 350 लाख लोगों के साथ नॉनट्रिनिटेरियन रेस्टोरेशनिस्ट आदि हैं।
ईसाई धर्म के भीतर, विभिन्न संप्रदायों के विकास की बात करें, तो माना जाता है कि, यीशु की मृत्यु के बाद साइमन पीटर (Simon Peter), जो यीशु के प्रमुख शिष्यों में से एक थे, यहूदी ईसाई आंदोलन के एक मजबूत नेता बने। उनके बाद, यीशु के भाई जेम्स (James) ने यहूदी ईसाई आंदोलन का नेतृत्व किया। ईसा मसीह के इन अनुयायियों ने खुद को यहूदी धर्म के भीतर एक सुधार आंदोलन के रूप में देखा, लेकिन फिर भी वे कई यहूदी कानूनों का पालन करते रहे। सॉल (Saul), जिन्हें मूल रूप से प्रारंभिक यहूदी ईसाइयों के सबसे मजबूत उत्पीड़कों में से एक माना जाता था, ने ईसाई धर्म को अपनाया। पॉल (Paul) नाम को अपनाते हुए, वह प्रारंभिक ईसाई चर्च का सबसे बड़ा प्रचारक बन गया। पॉल मंत्रालय, जिसे पॉलिन (Pauline) ईसाई धर्म भी कहा जाता है, ने मुख्य रूप से यहूदियों के बजाय गैर-यहूदियों को निर्देशित किया। इस प्रकार सूक्ष्म तरीकों से, शुरुआती चर्च पहले से ही विभाजित होता जा रहा था। इस समय एक और विश्वास प्रणाली ग्नोस्टिक (Gnostic) ईसाई धर्म के रूप में सामने आयी, जो मानते थे कि, उन्होंने एक ‘उच्च ज्ञान’ प्राप्त किया है। वे यह मानते थे, कि यीशु, एक आत्मा थे, जिन्हें भगवान ने मनुष्यों को ज्ञान प्रदान करने के लिए धरती पर भेजा था, ताकि मनुष्य पृथ्वी पर जीवन के दुखों से बच सके। ग्नोस्टिक, यहूदी और पॉलीन ईसाई धर्म के अलावा, ईसाई धर्म के कई अन्य संस्करण पहले से ही मौजूद थे। रोमन (Roman) साम्राज्य ने 313 ईस्वी में पॉलिन ईसाई धर्म को एक वैध धर्म के रूप में मान्यता दी। बाद में, यह रोमन साम्राज्य का आधिकारिक धर्म बन गया। इसके बाद के एक हजार वर्षों के दौरान, केवल कैथोलिक लोगों को ही ईसाई के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। 1054 ईस्वी में रोमन कैथोलिक और पूर्वी रूढ़िवादी चर्चों के बीच एक औपचारिक विभाजन हुआ जो आज भी जारी है। 1054 ईस्वी का यह विभाजन, जिसे ‘ग्रेट ईस्ट-वेस्ट शिस्म’ (Great East-West Schism) के रूप में भी जाना जाता है, ईसाई धर्म का पहला प्रमुख विभाजन था तथा यह ईसाई संप्रदायों की शुरुआत को दर्शाता है। अगला प्रमुख विभाजन 16 वीं शताब्दी में प्रोटेस्टेंट सुधार के रूप में हुआ। इस सुधार ने संप्रदायवाद की शुरुआत को चिह्नित किया। 1980 तक ब्रिटिश (British) सांख्यिकीय शोधकर्ता डेविड बी बैरेट (David B Barrett) ने 20,800 ईसाई संप्रदायों की पहचान की और उन्हें 7 प्रमुख गठबंधनों और 156 ईसाई धर्म सम्बंधी परंपराओं में वर्गीकृत किया।
भारत में ईसाई धर्म की शुरूआत के बारे में बात की जाए, तो कुछ लोगों का मानना है, कि भारत में इसकी शुरूआत ईसा मसीह के प्रचारक या दूत संत थॉमस (Thomas), के भारत आने के साथ हुई। ऐसा माना जाता है, कि वे 52 ईस्वी में भारत के मालाबार तट पर क्रेनगेनोर (Cranganore) के पास मलियानकारा में पहुंचे, जहां से उन्होंने ईसा मसीह का संदेश फैलाना शुरू किया और अंततः दक्षिण भारत पहुंचे। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने अनेकों हिंदू लोगों का धर्मांतरण कराया। ऐसा माना जाता है कि, केरल और तमिलनाडु में अत्यधिक प्रचार करने के बाद, वे शहीद हो गये तथा उन्हें सैन थॉम कैथेड्रल (San Thomé Cathedral) के एक क्षेत्र में दफना दिया गया। ईसाई धर्म की शुरूआत के लिए केरल एक मुख्य केंद्र था तथा यहां इसकी शुरूआत सीरियाई व्यापारियों द्वारा की गयी थी। नेस्टोरियन (Nestorian) ईसाई धर्म को 6 वीं शताब्दी में मिशनरियों (Missionaries) द्वारा इसी क्षेत्र में प्रस्तुत किया गया। सीरियाई ईसाई, केरल में त्रावणकोर, कोचीन और मालाबार के उदार शासकों के तहत फले-फूले। इस समय शासकों द्वारा कई चर्चों को खोलने की अनुमति दी गयी और इससे सम्बंधित अनेकों सहायता भी प्रचारकों को प्रदान की गयी। भारत में कैथोलिक संप्रदाय की शुरूआत का श्रेय पुर्तगालियों को दिया जाता है। वे इस समय अपने साथ कई पुर्तगाली और इतालवी पुजारियों को भी भारत लाये तथा ईसाई धर्म का प्रचार जारी रखा। आज भारतीय आबादी का 2.3 प्रतिशत हिस्सा ईसाई आबादी के रूप में पहचाना जाता है। भारत में ईसाई आबादी की संख्या 2.78 करोड़ से भी अधिक है, जो 150 से भी अधिक ईसाई संप्रदायों में विभाजित है। लेकिन मुख्य रूप से भारतीय ईसाई समुदाय में लगभग 170 लाख कैथोलिक और 110 लाख प्रोटेस्टेंट शामिल हैं। भारत में लगभग 300 लाख ईसाई आबादी मौजूद है, जो भारतीय आबादी का लगभग तीन प्रतिशत हिस्सा बनाते हुए, हिंदुओं और मुसलमानों के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह है।
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