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अगर आपसे यह पूछा जाए कि ‘आपकी मृत्यु कैसे हुई’? तो आप कैसा महसूस करेंगे? आप थोड़ी देर असहज महसूस करेंगे तथा फिर सोचेंगे कि जिसने आप से यह प्रश्न पूछा है उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है। लेकिन जब यही प्रश्न कृष्ण द्वैपायन व्यास द्वारा नारद मुनि से पूछा गया तो उन्हें आश्चर्य नहीं हुआ और न ही उन्होंने असहज महसूस किया। इसके बजाय, उनका चेहरा एक उज्ज्वल मुस्कान के साथ इस प्रकार प्रज्ज्वलित हो गया कि ऐसा प्रतीत हुआ कि वे इस अजीब प्रश्न का उत्तर देने वाले हैं। नारद मुनि ब्रह्मा के मानसपुत्र (जो पुत्र मस्तिष्क से उत्पन्न हुआ, संयोजन से नहीं) हैं, जो कि वेदों के दर्शन और यज्ञों से परिचित थे। उन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी कहा जाता है। नारद मुनि को देवताओं का शुभचिंतक और दयालु माना जाता है और सम्मानपूर्वक 'देवर्षि' कहा जाता है। ऋग्वेद के निर्माण में भी वे बहुत प्रभावशाली माने जाते हैं। नारद एक वैदिक ऋषि हैं, जो हिंदू परंपराओं में एक स्थान से दूसरे स्थान घूमने वाले संगीतकार और कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे लोगों को समाचार और ज्ञान भी प्रदान करते हैं। वे कई हिंदू ग्रंथों में दिखाई देते हैं, विशेष रूप से महाभारत में युधिष्ठिर को प्रह्लाद की कहानी सुनाते हुए, पुराणों के अनुसार रामायण में रावण को चेतावनी देते हुए आदि। जब भगवान ने पृथ्वी पर होने वाली घटनाओं को सही करने के लिए पृथ्वी पर आने का निश्चय किया, तब उनके साथ कुछ देवता भी किसी न किसी के रूप में धरती पर आये ताकि वे पृथ्वी पर हो रही घटनाओं को सही करने में भगवान की सहायता कर सकें तथा इन दृश्यों का आनंद ले सकें। नारद मुनि भी उन्हीं में से एक हैं, जिन्हें ऋषिराज भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है सभी ऋषियों या संतों का राजा। उन्हें भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञान का वरदान भी प्राप्त था। एक बार उनका ज्ञान भगवान के द्वारा बनायी गयी संरचनाओं में बाधा बन गया और इसलिए उन्हें श्राप दिया गया कि यद्यपि वह सच्चाई बताएंगे और लोगों को चेतावनी देंगे, तो भी लोग कभी उस पर विश्वास नहीं करेंगे। भारतीय ग्रंथों में, नारद दूर देशों और लोकों की यात्रा करते हैं। उनका चित्रण अक्सर महाथली नाम के खरताल (संगीत वाद्य यंत्र) और तानपुरा के साथ किया जाता है और उन्हें आमतौर पर प्राचीन संगीत वाद्ययंत्र के महान आचार्यों में से एक माना जाता है। अपने इन वाद्य यंत्रों का प्रयोग वे अपने भजन,, प्रार्थना और मंत्रों के गायन के साथ करते हैं। हिंदू धर्म की वैष्णववाद परंपरा में, उन्हें भगवान विष्णु की भक्ति के साथ एक ऋषि के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्हें कुछ हास्य कहानियों में बुद्धिमान और शरारती दोनों रूप में वर्णित किया गया है। वैष्णव भक्त उन्हें एक शुद्ध, उन्नत आत्मा के रूप में चित्रित करते हैं, जो अपने भक्ति गीतों के माध्यम से भगवान विष्णु की महिमा करते हैं। वे हरि और नारायण नाम गाते हैं, और भक्ति योग का प्रदर्शन करते हैं। नारद के नाम पर लिखे गए अन्य ग्रंथों में नारद पुराण और नारदस्मृति शामिल हैं। नारद नाम, कई अलग-अलग व्यक्तियों का उल्लेख करते हुए, हिंदू धर्म के कई पौराणिक कथाओं में प्रकट होता है। साथ ही बौद्ध धर्म की जातक कथाओं में सारिपुत्त के पूर्व जन्म के साथ-साथ मध्यकालीन बौद्ध विद्वानों के नाम। महाभारत में, नारद को वेदों और उपनिषदों का ज्ञाता होने और इतिहास एवं पुराणों के साथ परिचित होने के रूप में चित्रित किया गया है। उन्हें छह अंग की महारत हासिल है- उच्चारण, व्याकरण, भोग, पद, धार्मिक संस्कार और खगोल। सभी खगोलीय प्राणी उनके ज्ञान के लिए उनकी पूजा करते हैं। माना जाता है कि वे प्राचीन कल्पों (समय चक्रों) में होने वाली सभी घटनाओं, न्याय (तर्क) और नैतिक विज्ञान के अच्छे जानकार हैं। वे वाक्पटु, संकल्पवान, बुद्धिमान और शक्तिशाली स्मृति के स्वामी हैं, जो नैतिकता, राजनीति विज्ञान, दर्शन सांख्य और योग प्रणालियों के ज्ञाता हैं। वह साक्ष्यों से निष्कर्ष निकालने में कुशल हैं तथा धर्म, धन, सुख और मोक्ष के बारे में भी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने में सक्षम है।
एक कहानी के अनुसार, वह पहले एक गंधर्व (राक्षस) थे। नारद को स्वर्गलोक, मृत्युलोक, और पाताललोक तीनों लोकों में कहीं भी घूमने का वरदान मिला था। वह नाट्य योग का अभ्यास करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिन्हें ‘कलहप्रिय’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि वे देवताओं, देवी-देवताओं और लोगों के बीच झगड़े का कारण बनते हैं। महाभारत में नारद द्वारा वर्णित विभिन्न राजाओं की कहानियां मिलती हैं। देवकी के 8वें बच्चे के द्वारा अपनी मृत्यु के बारे में आकाशवाणी को सुनने के बाद मथुरा राजा उग्रसेन के पुत्र कंस ने अपनी बहन देवकी और उसके पति को जेल में डाल दिया। नारद ने देवकी के सभी बच्चों को मारने के लिए कंस को उकसाया। नारद की मंशा यह थी कि कंस को और अधिक पाप करने दिया जाए, ताकि उसके पापों का फल उसे जल्द ही मिले। दार्शनिक नारद एक बार इस तथ्य के बारे में अहंकारी हो गए थे कि उन्होंने 'काम' (इच्छाओं) पर जीत हासिल कर ली है। अपने पसंदीदा भक्त के अहंकार को तोड़ने के लिए, भगवान विष्णु ने एक शहर बनाया जिसमें एक सुंदर राजकुमारी का एक स्वयंवर चल रहा था। राजकुमारी की सुंदरता और गुण के बारे में सुनकर, नारद मुनि उससे शादी करने के लिए उत्सुक थे। उन्होंने भगवान विष्णु से हरि (भगवान) की तरह अपना चेहरा बहुत आकर्षक बनाने की प्रार्थना की ताकि राजकुमारी उनका चयन करें। हरि का मतलब बंदर भी होता है, इसलिए विष्णु ने नारद के चेहरे को बंदर के चेहरे में बदल दिया। नारद उपहास का पात्र बन गये तथा राजकुमारी भी उन पर हंसने लगी। वास्तव में, यह राजकुमारी लक्ष्मी जी थीं, जिन्होंने भगवान विष्णु को वर माला पहनाई। नारद उस समय क्रोधित हो गए, जब उन्होंने तालाब के प्रतिबिंब में अपना चेहरा देखा और विष्णु को श्राप दिया कि वह उनकी पत्नी से अलग हो जायेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वानर रूप, जिसके कारण वह अपमानित थे, ही केवल भगवान विष्णु की मदद करेगा जब वह मुसीबत में होंगे। इसके बाद बाली और सुग्रीव की वानर सेना ने सीता को खोजने में श्री राम की मदद की।
नारद मुनि ने हमेशा एक शिक्षक की भांति कार्य किया और अपने ज्ञान के माध्यम से अनेकों शिक्षाएं दी। वे महर्षि वेद्व्यास के विलाप के समय उनके परामर्शदाता बने। उन्होंने महर्षि वेद्व्यास को बताया कि क्योंकि उन्होंने अपने कार्यों में सर्वोच्च प्रभु की निष्कलंक महिमा का पर्याप्त वर्णन नहीं किया है इसलिए उनका ज्ञान अधूरा है। उन्होंने व्यास को सभी सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए भगवान के दिव्य लीलाओं या अभिनयों को याद करने (और इसका वर्णन करने) की सलाह दी। वे आत्म-ज्ञान के साधक भी हैं। नारद के जीवन के लौकिक आयामों ने हमें उनके जीवन इतिहास को फिर से संगठित करने के लिए बहुत भिन्नता प्रदान की है। छांदोग्य उपनिषद के अनुसार, नारद मुनि आध्यात्मिक शिक्षा के लिए ऋषि सनतकुमार के पास गये। सनतकुमार, पहले चार संन्यासियों में से एक हैं, जो ब्रह्मा से पैदा हुए तथा नारद मुनि के भाई भी हैं। जब नारद ने सनतकुमार को उन्हें पढ़ाने का अनुरोध किया, तो सनतकुमार ने कहा कि आप मुझे ये बताएं कि आप पहले से क्या जानते हैं? ताकि मैं आपको उसके आगे की शिक्षा दे संकू। नारद ने एक लंबी सूची के साथ उत्तर दिया कि मैंने ऋग्वेद, यजुर वेद, सामवेद, अथर्ववेद का अध्ययन किया है। इतिहास, पुराण (जो पांचवा वेद है), व्याकरण (जिसके अर्थ से वेदों का अर्थ समझा जाता है), गणित, प्राकृतिक विज्ञान, खनिज विज्ञान, तर्क, नैतिकता, व्युत्पत्ति विज्ञान, कर्मकांड विज्ञान, भौतिक विज्ञान, युद्ध विज्ञान, ज्योतिष, विज्ञान, और ललित कला आदि का अध्ययन किया है, लेकिन इस विशाल अध्ययन के बाद भी मुझे आत्म ज्ञान नहीं है। इस प्रकार वे बताते हैं कि आत्म ज्ञान ही दुख के सागर को पार कर सकता है। तीनों लोकों में कुछ भी नारद के ज्ञान से परे नहीं है। वैदिक अवतरण में, हम उन्हें राजाओं की ओर से यज्ञ करते हुए देखते हैं। एक बार वाल्मीकि ने नारद से पूछा कि क्या वह किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जानते हैं जो मानवीय रूप से हर लिहाज से परिपूर्ण हो। नारद ने उन्हें रामचंद्र के बारे में बताया और उनके पूरे जीवन की कहानी भी सुनाई। इससे वाल्मीकि को महाकाव्य रामायण लिखने में मदद मिली। इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के दरबार में भी नारद मौजूद थे, जो भयानक राक्षसों हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु के जन्म के पीछे के रहस्य का वर्णन करते हैं। इस रहस्य को जान पाना देवताओं के लिए भी 'असंभव' था। वे युधिष्ठिर और कृष्ण के परामर्शदाता भी बने। युधिष्ठिर के अनुरोध पर, नारद ने उन्हें राजनीति, प्रशासन, कूटनीति और युद्ध विज्ञान के संदर्भ में अनेकों सलाह दी।
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