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भारत में 1 वर्ष में 2 नवरात्रि उत्सव होते हैं। शाक्त और वैष्णव पुराणों के अनुसार 1 वर्ष में नवरात्रि दो या चार बार होती है। इनमें से शरद नवरात्रि जो कि शरद ऋतु( सितंबर- अक्टूबर) में मनाई जाती है, सबसे ज्यादा हर्षोल्लास के साथ संपन्न होती है। भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति के अनुसार वसंत ऋतु ( मार्च-अप्रैल) में आयोजित होने वाली नवरात्रि दूसरी प्रमुख नवरात्रि होती है। सभी नवरात्रि शुक्ल पक्ष में मनाई जाती हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में इनके मनाने का ढंग अलग-अलग होता है।
नवरात्रि के चार प्रकार
प्राचीन हिंदू ग्रंथ सप्त-सुधी के अनुसार, दो प्रमुख नवरात्रों- चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र के अलावा दो नवरात्रि और होती हैं -माघ गुप्त नवरात्रि माघ महीने में होती है, आषाढ़ गुप्त नवरात्रि जून-जुलाई में मानसून के मौसम में मनाई जाती है।
शरद नवरात्रि:
यह बहुत ही लोकप्रिय तथा सबसे प्रमुख नवरात्रि होती है। इसे महा नवरात्रि भी कहते हैं। यह अश्विन मास में जाड़े की शुरुआत में सितंबर अक्टूबर में मनाई जाती है। यह पूरे भारत में भारी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है। शरद नवरात्रि मां शक्ति के नौ रूपों- दुर्गा, भद्रकाली, जगदंबा, अन्नपूर्णा, सर्वमंगला, भैरवी, चंडिका, ललिता, भवानी और मूकंबिका के पूजन का अवसर होती है। नवरात्रि देवी दुर्गा द्वारा राक्षस महिषासुर के वध की याद में भी मनाई जाती है। 10वें दिन विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है। यह वह ऐतिहासिक दिन है, जब भगवान राम ने रावण के विरुद्ध युद्ध जीता और सीता को मुक्त कराया। दक्षिणी भागों में भारत में इस अवसर पर देवी लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा होती है। विशिष्ट यज्ञ किए जाते हैं, पूजा की जाती है और देवताओं को पुष्प अर्पित किए जाते हैं। इन दोनों त्योहारों के अवसर पर भक्त उपवास, ध्यान और पूजा के माध्यम से देवी के नौ रूपों की आराधना करते हैं। कुछ लोग पूरे 9 दिन व्रत रखते हैं, कुछ पहला और आखरी व्रत रखकर त्योहार के आरंभ और समापन में सम्मिलित होते हैं।
नवरात्रि के प्रमुख रीति रिवाज
नवरात्रि से पहले ही इसके आयोजन से संबंधित तैयारियां शुरू हो जाती हैं। इस उत्सव में मां दुर्गा की विभिन्न रूपों में पूजा की जाती है। प्रतिपदा तिथि के दिन कलश स्थापित किया जाता है। प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है कि कलश का मतलब होता है, 'प्रसन्नता, समृद्धि, पूर्णता और पवित्र इच्छाएं'। नवरात्रि पूजन के समय देवी मां की मूर्ति के सामने कलश होना जरूरी होता है। फिर 9 दिनों तक देवी मां की पूजा, आरती, भजन गायन के साथ-साथ उपवास भी रखे जाते हैं। विभिन्न प्रकार के भोग देवी मां को समर्पित किए जाते हैं। पूजा में प्रयोग की जाने वाली समस्त सामग्री बहुत महत्वपूर्ण होती है।
नवरात्रि के अवसर पर देवी मां की मूर्ति की स्थापना के समय उनके सामने जौ बोए जाते हैं, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है। इस जौ को मिट्टी के बर्तन में बोया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की स्थापना के समय जो पहली फसल तैयार हुई, वह जौ थी। यह भी मान्यता है कि बर्तन में जौ के उगने या ना उगने से भविष्य का पता चलता है। अगर जौ जल्दी उग जाती है, तो घर में खुशियां और समृद्धि आती है। अगर नहीं उगते तो यह अंदाजा लगाया जाता है कि भविष्य में कोई अनहोनी होने की संभावना है, जिसके प्रति सतर्कता बरतनी होगी।
मुख्य द्वार पर आम या अशोक के पेड़ के पत्तों के तोरण लगाकर देवी मां के घर में प्रवेश का स्वागत किया जाता है। वैदिक काल से यह परंपरा है कि तीज त्यौहार या पूजा के अवसर पर घर के मुख्य द्वार पर तोरण लगाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इससे सकारात्मक ऊर्जा का घर में प्रवेश होता है और नकारात्मकता घर से बाहर हो जाती है।
कोई भी धार्मिक अनुष्ठान दीए के बिना संभव नहीं होता है। नवरात्रि में 9 दिन दीपक जलाया जाता है, इससे रोशनी के साथ-साथ घर की नकारात्मक शक्तियों का भी नाश होता है। दीपक को पूजा स्थल की अग्नि दिशा यानी दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना शुभ माना जाता है। पूजा में लाल गुड़हल का फूल देवी को अर्पित किया जाता है। इससे भक्तों की सभी मनोकामनाएं देवी मां पूरी करती हैं। लाल कपड़े में नारियल लपेटकर मूर्ति स्थापना के समय पूजा स्थल पर रखा जाता है। पूजा की पूरी सामग्री में- देवी की मूर्ति, देसी घी, लाल चुनरी, लाल कपड़ा, श्रृंगार सामग्री, खुशबू और अगरबत्ती, अक्षत, कुमकुम, फूल और मालाएं, पान सुपारी, लोंग इलाइची, बताशे, कपूर, उपले, फल, मिठाई, कलावा, मेवे आदि शामिल होते हैं।
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