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भारत विशिष्ट कलाओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है तथा यहां कि मिट्टी के बर्तन बनाने की कला विश्व भर में प्रसिद्ध है। भारत में मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए अलग-अलग प्रकार की मिट्टी का उपयोग किया जाता है, जिससे विशिष्ट प्रकार के उत्पादों का निर्माण होता है। काली मिट्टी के बर्तन भी इन्हीं उत्पादों में से एक हैं। मुगल काल के समृद्ध काली मिट्टी के बर्तन बनाने की कला को आज भी निजामाबाद के लोगों द्वारा जीवित रखा गया है। निजामाबाद की इस कला को बढ़ाने में दिये गये अपने अप्रतिम प्रयास के लिए भारत सरकार द्वारा 2015 में इसे भौगोलिक चिन्ह (Geographical Indication) प्रदान किया गया और यह अभी भी शहर में कारीगरों के लिए रोजगार का एक प्राथमिक स्रोत बना हुआ है।
इसकी गिनती भारत की विशिष्ट कलाओं में होती है तथा यह व्यवसाय निजामाबाद, आजमगढ़ और इसके पास-पास रहने वाले लोगों के लिए आय का मुख्य स्त्रोत भी है। काली मिट्टी के बर्तन बनाने की कला का मूल गुजरात में माना जाता, जो 17वीं शताब्दी में मुगलों के हनुमंतगढ़ में हमले के बाद यहां आयी तथा इन्होंने ही इस क्षेत्र का नाम बदलकर निजामाबाद रख दिया। शहर चारों ओर से झील से घिरा होने के कारण यहां मुस्लिम महिलाओं के स्नान के लिए भूमिगत मार्ग बनाया गया तथा इनके स्नान हेतु मिट्टी के बर्तनों के निर्माण का जिम्मा गुजराती कुम्हारों को सौंपा गया। धीरे-धीरे इस कला में मुगल स्वरूप भी देखने को मिलने लगा। निजामाबाद के काली मिट्टी के बर्तन प्रायः स्थानीय महीन चिकनी मिट्टी से तैयार किये जाते हैं, जिसमें मिट्टी को विभिन्न आकृतियों (घरेलू उपयोग के बर्तन, धार्मिक मूर्तियां, सुराही, सजावटी सामग्री इत्यादि) में डालकर भट्टी में पकाया जाता है, चावल के भूसे की भट्टी का धुआं इन्हें एक विशिष्ट चमक प्रदान करता है। मिट्टी के उत्पादों को वनस्पति की सामग्री से धोकर सरसों के तेल से रगड़ा जाता है। इन बर्तनों को फूल पत्तियों के डिजाइन (Design), ज्यामितीय आकृति, चांदी के समान जिंक (Zinc) और मर्करी (Mercury) के पाउडर के डिजाइन से सजाया जाता है। कभी कभी इन्हें लाह से भी सजाया जाता है, जो गर्म करने पर इन्हें चमक प्रदान करती है।
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