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क्या आपके मन में कभी यह विचार आया है कि आधुनिक पक्षी अन्य कशेरुक से इतने अलग क्यों हैं? आखिर क्यों इनके भांति पंख, दांत रहित चोंच और खोखली हड्डियाँ अन्य जानवरों के पास नहीं हैं? कुछ समय तक तो इनकी उत्पति जीव-विज्ञान के रहस्यों में से एक थी, परंतु अब कहा जाता है कि पक्षी डायनासोर से संबंधित हैं, बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि आज के ये पक्षी ही डायनासोर हैं। आज से करोड़ों साल पहले पृथ्वी पर उल्का पिंड के टकराने से एक महाविनाश हुआ था, जिसमें सारे डायनासोर मारे गए परंतु डायनासोरों की उड़ने वाली प्रजातियों में से कुछ प्रजातियां बच गई और इन्हीं प्रजातियों से आगे चलकर पक्षियों का विकास हुआ।
वैज्ञानिकों के अनुसार आज के समय में पाए जाने वाले एवीज वर्ग (Aves Class or Reptiles) के ये पक्षी थेरोपोड्स (Theropods) प्रकार के डायनासोरों से उत्पन्न हुए हैं, जिसके अंर्तगत टिरानोसोरस (Tyrannosaurus) और छोटे वेलोसिरैप्टर (Velociraptors) डायनासोर आते हैं, हालांकि यह सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, परन्तु आज कई सारे पैलियोनटोलॉजिस्ट (Paleontologist) यह मानते हैं कि कई डायनासोर पंखों से ढके हुए थे तथा पक्षियों की तरह ही उनकी हड्डियां भी हल्की होती थी, वर्तमान समय के पक्षियों और डायनासोरों में काफी समानता पाई गयी हैं। आधुनिक पक्षियों की तुलना में आमतौर पर एवियन (Avians) से संबंधित थेरोपोड्स का वजन आमतौर पर 100 से 500 पाउंड के बीच था और उनमें एक बड़ा थूथन, बड़े दांत और छोटे कान मौजूद थे। उदाहरणतः एक वेलोसिरैप्टर (Velociraptor) की खोपड़ी कायोटी (Coyote) की तरह थी और लगभग एक कबूतर के आकार का मस्तिष्क था।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि डायनासोरों से पक्षियों का विकास करोड़ों सालों के दौरान हुआ, और इसका प्रमाण हमें जुरासिक काल (Jurassic Era) की एक प्रसिद्ध तथा अद्वितीय खोज “आर्कियोप्टेरिक्स” (Archeopteryx) में देखने को मिलता है। यह एकमात्र ऐसा जीवाश्म है, जो हमें बताता है कि डायनासोरों से ही पक्षियों का विकास हुआ है। इसमें पक्षियों और डायनासोर (सरीसृप) दोनों के लक्षणों को देखा जा सकता है जो यह प्रमाणित करता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है। इसकी संरचना पक्षियों की संरचना के साथ काफी मिलती है, इस जीवाश्म में पंखों के निशान काफी विकसित हैं और साथ ही इसमें दांत और एक बौनी पूंछ भी देखने को मिलती है।
पक्षियों का विकास करोड़ों साल में हुआ है और इस चमत्कारी रूपांतरण की व्याख्या करने के लिए, वैज्ञानिकों ने एक सिद्धांत को "आशावादी दैत्य" के रूप में संदर्भित किया। इस सिद्धांत के अनुसार, प्रमुख विकासवादी बदलावों के लिए बड़े पैमाने पर आनुवंशिक परिवर्तनों की आवश्यकता होती है, जो किसी प्रजाति में नियमित रूपांतरण से गुणात्मक रूप से भिन्न होते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार थोड़े समय के अंतराल में कुछ ऐसे परिवर्तन हुये हैं, जो 300 पाउंड के थेरोपोड्स से गौरैया के आकार के प्रागैतिहासिक पक्षी इबोरोमोर्निस (Iberomesornis) के विकास के लिये जिम्मेदार हो सकते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा की गई कुछ खोजों से पता चला है कि पक्षियों के विकास से बहुत पहले ही पंख जैसी विशिष्ट विशेषताएं विकसित होने लगी थीं, जोकि यह दर्शाता है कि पक्षियों में कई गुण पहले से मौजूद थे, जिन्होने उन्हें नये वातावरण के लिये अनुकूलित बनाया।
परंतु हाल के शोध से पता चलता है कि वयस्कता के समय में सिर का आकार छोटा होने से पक्षियों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसके साथ ही यह भी पता चलता है कि पक्षी अपने पूर्वजों की तुलना में बहुत छोटे होते हैं, वे डायनासोर भ्रूण के समान हैं। इन्हीं छोटे विकासवादी परिवर्तनों की एक श्रृंखला से बड़े विकासवादी परिवर्तन उत्पन्न हुये, जिन्होंने आधुनिक पक्षी को जन्म दिया। 1990 के दशक में चीन के क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवाश्मों से नए मध्यस्थ प्रजातियों की खोज हुई, जिस कारण पक्षियों के विकास के इतिहास का अध्ययन करने में रुचि की एक नई लहर पैदा हो गई। हालांकि इन जीवाश्मों में से कईयों में पूर्ण पंख विकसित नहीं थे, लेकिन ये कहा जा सकता है कि उस समय में पंख विकसित होना शुरू हो गये थे। इन जीवाश्मों के विश्लेषण से ज्ञात पक्षी रातों-रात विकसित नहीं हुये बल्कि पक्षियों के ये गुण एक-एक करके विकसित हुये, पहले डायनासोर ने दो पैरो पर चलना सीखा, फिर पिच्छ विकसित हुये और फिर अंतत: पंख विकसित हुये। अध्ययन में यह भी पाया गया कि आर्कियोप्टेरिक्स और अन्य प्राचीन पक्षी अन्य डायनासोरों की तुलना में बहुत तेजी से विकसित हुये थे।
डायनासोरों से पक्षियों के विकास में उनके छोटे आकार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, नए शोध से पता चलता है कि डायनासोर तेजी से आकार में छोटे होने लगे थे जोकि एक लाभप्रद गुण साबित हुआ क्योंकि यह आकार उनको जीवित रहने में लाभकारी साबित हुआ और छोटे कद के कारण पक्षियों की भांति उड़ान भर पाये। 2008 में, हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के एक जीवविज्ञानी अरखट अबझानोव (Arkhat Abzhanov) मगरमच्छों पर अध्ययन कर रहे थे, तभी उन्होने देखा कि मगरमच्छ का भ्रूण मुर्गियों के समान दिखता है। फिर उन्होने देखा कि बेबी डायनासोर की खोपड़ी के जीवाश्म का पैटर्न वयस्क पक्षियों से मिलता जुलता है। इस सिद्धांत का परीक्षण करने के लिए, न्यूयॉर्क में अबझानोव और अन्य सहयोगियों के साथ मार्क नोरेल (Mark Norell) (अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री (American Museum of Natural History) के एक जीवाश्म विज्ञानी) ने दुनिया भर के प्राचीन पक्षियों के जीवाश्मों पर डेटा एकत्र किया। फिर उन्होंने यह पता लगाया कि डायनासोर की खोपड़ी की आकृति कैसे बदल गई और वे पक्षियों में परिवर्तित हो गए। उन्होंने खोज की, समय के साथ चेहरा ढह गया और आँखें, मस्तिष्क तथा चोंच बढ़ गई। अबझानोव ने कहा कि पक्षी छोटे शिशु डायनासोर के समान होते हैं जो प्रजनन कर सकते हैं।
जुरासिक अवधि के दौरान विकसित हुए इन पक्षियों का अध्ययन ऑर्निथोलॉजी (Ornithology) अर्थात पक्षीविज्ञान के अंतगर्त किया जाता है। यह उन लोगों द्वारा प्रचलित विज्ञान है जो पक्षियों से प्यार करते हैं। यदि आप ऑर्निथोलॉजी में दिलचस्पी रखते हैं तो विभिन्न प्रकार के महाविद्यालय आपको इस क्षेत्र में कैरियर बनाने का अवसर प्रदान करते हैं और पक्षीविज्ञान पर एक अलग दृष्टिकोण देते हैं। भारत में पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास से सम्बन्धित कई केंद्र हैं, जो इस क्षेत्र में कैरियर बनाने का अवसर प्रदान करते हैं, जैसे कि सलीम अली पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक विज्ञान केंद्र। यह तमिलनाडु के कोयंबटूर (Coimbatore) नगर में स्थित है।
इस केंद्र में निम्न कुछ कार्यक्रमों के माध्यम से आपको कई कैरियर बनाने के मौके मिल सकते हैं:
1. गैर-लाभकारी संगठन (उर्फ एनजीओ NGO): ये ऐसे संगठन होते हैं, जो सरकार द्वारा वित्त पोषित नहीं होते। कई गैर-लाभकारी संगठनों में एक पूरी टीम होती है, जिसमें अनुसंधान वैज्ञानिक, वेब डेवलपर्स, विज्ञान लेखक, मल्टीमीडिया विशेषज्ञ, आदि शामिल होते हैं। आप चाहें तो इनमें से किसी भी पद के किये अपनी योग्यता के अनुसार आवेदन दे सकते हैं और धन भी अर्जित कर सकते हैं। ये संगठन विभिन्न लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं।
2. सरकारी संगठन: कई सरकारी संगठन हैं, जो पक्षी प्रेमियों को राष्ट्रीय से लेकर राज्य और स्थानीय स्तर पर रोजगार देते हैं। ये संगठन मुख्य रूप से प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और संरक्षण पर केंद्रित होते हैं।
3. पर्यावरण परामर्श: पर्यावरणीय प्रभावों के कारण बढ़ते हानिकारक प्रभावों को देखते हुये पर्यावरण परामर्शदाता बनने का विकल्प भी इन रोजगार विकल्पों में शामिल हैं। अपनी खुद की फर्म का नेतृत्व करना या पर्यावरण इंजीनियर बनना भी इस क्षेत्र में शामिल हैं।
4. बर्डिंग इंडस्ट्री (Birding Industry): जैसे-जैसे दुनिया भर में बर्डवॉचर्स की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे बर्डिंग-संबंधित उत्पादों को बनाने या बेचने के अवसरों की संख्या भी बढ़ रही है। साथ ही साथ दूरबीन, किताबें, ऐप्स, बर्ड फीडर और सीड्स आदि के क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं।
5. कंप्यूटर प्रोग्रामिंग: कई पक्षी संगठन ऑनलाइन टूल विकसित करने के लिए प्रोग्रामर की तलाश करते रहते हैं।
6. कला और चित्रण: वैज्ञानिक चित्रण और ग्राफिक डिजाइन इस श्रेणी में सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। वेब और ग्राफिक डिजाइनरों के लिए नौकरियां विशेष रूप से तेजी से बढ़ रही हैं।
7. मल्टीमीडिया: फोटोग्राफी, ऑडियो रिकॉर्डिंग और फिल्मोग्राफी में भी रोजगार प्राप्ति के कई अवसर मिलते हैं।
संदर्भ:
https://www.scientificamerican.com/article/how-dinosaurs-shrank-and-became-birds/
https://www.nationalgeographic.com/magazine/2018/05/dinosaurs-survivors-birds-fossils/
https://ebird.org/india/about/colleges-careers
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में डायनासोर से पक्षियों के विकास की कलात्मक अभिव्यक्ति है। (Prarang)
दूसरे चित्र में एक डायनासोर (शिकार करते हुए) से विकसित पक्षी (शिकार करते हुए) को क्रमवार दिखाया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में “आर्कियोप्टेरिक्स” (Archeopteryx) जीवाश्म और उसका कम्प्यूटरजनित चित्र दिखाया गया है। (Prarang)
चौथे चित्र में डायनासोर से पक्षी का विकास अभिव्यक्त किया गया है। (Youtube)
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