कर्मयोगी कृष्ण के विविध स्वरूप

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
11-08-2020 09:54 AM
 कर्मयोगी कृष्ण के विविध स्वरूप

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।


अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच की फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं।

महाभारत के रण में अर्जुन को भगवान कृष्ण द्वारा दिया गया कर्म का यह सारगर्भित और व्यवहारिक संदेश पूरे ब्रह्मांड में सदियों से आंख खोलने का एक मंत्र बना हुआ है। दूसरी ओर यह भी एक रोचक तथ्य है कि एक समय के अंतराल पर देवी-देवताओं की मूर्तियों का स्वरूप बदलता रहता है। सभी प्राचीन पाठों में, यहां तक कि संस्कृत में भी कृष्ण का अर्थ ‘काला’ बताया गया है। पुरानी परिकल्पनाएं समय के साथ बदलती रहती हैं। आमतौर पर एक छोटे निर्वस्त्र बच्चे को, जिसके सर पर एक अद्भुत टोपी है तथा उसे 'माखन चोर' के नाम से जाना जाता है। लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता है, ढेर सारे आभूषणों से विभूषित, पीतांबर धारण किए भगवान कृष्ण का रूप सामने आता है। उनके सिर पर मोर पंख भी मुकुट में शामिल हो जाता है। कृष्ण का यही रूप आज भी सब जगह प्रचलित है। कृष्ण के इस रूप के विकास की भी एक कहानी है और कला के विभिन्न स्वरूप इससे प्रभावित हैं।

समय के साथ बदलते स्वरूप
सम्राट जैनुल आबिदीन (Zainul Abedin) ने हिंदू धर्म की पुस्तकों का फारसी भाषा में अनुवाद कराया। कई मुगल शासक हिंदू धर्म के बारे में जानने को उत्सुक थे। सम्राट अकबर ने भी कई हिंदू धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद करवाया। ब्राह्मणों ने इसका विरोध किया। मुगल शासक और उनकी हिंदू पत्नियां कृष्ण के निर्वस्त्र बालक के रूप को दिखाने के विरुद्ध थी। इस तरह से भगवान कृष्ण के चित्रों पर कपड़ों का समावेश हुआ।

भारतीय कला में कृष्ण

भारतीय कला में कृष्ण का आविर्भाव कब और कैसे हुआ, यह एक जटिल मिथक है। लगभग 1000 साल पहले कला के सारे प्रारूपों ने एकत्रित होकर सर्वाधिक बहुमुखी चरित्र कृष्ण की संरचना की। कृष्ण से जुड़े मिथक और किंवदंतियां भारतीय साहित्य, दृश्य और प्रदर्शन संबंधी कलाओं में व्याप्त हो गए। भागवत पुराण में कई मिथकों को जोड़कर आकर्षक कथा बनाई, जिसने कलाकारों और भक्तों की कल्पना को अनेक वर्षों तक बांधकर रखा। 12वीं शताब्दी में जयदेव ने 'गीत गोविंदम' की रचना की जिसमें उन्होंने कृष्ण की प्रिया के रूप में राधा के चरित्र को पहली बार प्रस्तुत किया। जयदेव ने ही कृष्ण और गोपियों की प्राचीन कथा को नया स्वरूप दिया। तब से ही कृष्ण की विष्णु और राधा की श्री लक्ष्मी और शक्ति के रूप में व्याख्या शुरू हुई।
वास्तु में कृष्ण कथा

कुषाण काल में पहली बार वास्तुकला में कृष्ण का प्रवेश हुआ, जिसमें कृष्ण वासुदेव की कहानी है, कृष्ण गोपाल कि नहीं। इसका मथुरा म्यूजियम (Mathura Museum) में एक उदाहरण है, जिसमें वासुदेव यमुना नदी पार करते हुए, शिशु कृष्ण के साथ गोकुल जाते दिखाए गए हैं। चौथी से छठी शताब्दी, 320 से 530 AD के गुप्त काल में कृष्ण की काफी मूर्तियां मिलती हैं, खास तौर पर ब्रिज के कृष्ण गोपाल की। दक्षिण की बादामी शैली में भी कृष्ण के जीवन के प्रसंग मिलते हैं। यह पांचवीं से सातवीं शताब्दी के हैं। 10वीं शताब्दी से भारतीय वास्तुकला का मध्ययुगीन दौर शुरू हुआ। इसमें चारों दिशाओं में अनेक मंदिर स्थापित हुए। इन में अलग-अलग रूपों में पत्थर और पीतल धातु में कृष्ण की अकेली मूर्तियों की स्थापना हुई। बंगाल में टेराकोटा मूर्तियां भी निर्मित हुई।


भारतीय चित्रकला में कृष्ण

भागवत पुराण से प्रेरणा लेकर अनेक भारतीय भाषाओं में धार्मिक कविताओं का सृजन हुआ। जिनके चित्रकला, संगीत, नृत्य और रंगमंच के दृश्य, श्रव्य और गतिज पूरक अंग थे। भारतीय चित्रकला में कृष्ण संबंधी चित्रकला का सीधा संबंध वैष्णव विचारधारा के विकास, लोकप्रिय भक्ति आंदोलन और भक्ति काल के संत कवियों की रचनाओं के समाज पर पड़े प्रभाव से होता था। 15, 16 और 17वीं शताब्दी में भागवत पुराण और गीत गोविंदम पर आधारित लघु चित्रों को काफी लोकप्रियता मिली। बाद में सूरदास, केशवदास, बिहारी और अन्य कवियों की रचनाओं पर आधारित चित्र बनाए गए। राजस्थानी चित्रकला ने कृष्ण पर दुर्लभ रचनाएं दी। मेवाड़ स्कूल ने 17 से 18वीं शताब्दी में कृष्ण के मुख्य रूप से कृषि संबंधी चित्र बनाए।

कृष्ण संबंधी चित्रों की चर्चा, देश की विभिन्न लोक शैलियों में कृष्ण के चित्रों के उल्लेख के बिना पूरी नहीं हो सकती। बिहार के मिथिला क्षेत्र में महिलाएं घर की बाहरी और भीतरी मिट्टी की दीवारों पर तीन त्योहारों पर चित्र बनाती हैं। बंगाल में कालीघाट पेंटिंग, दक्षिण में राजा रवि वर्मा की पेंटिंग, यूरोपियन प्रकृतिवाद से प्रभावित है। वैसे इस माध्यम से कृष्ण कथा पर काम निरंतर जारी है।
कृष्ण और कला प्रदर्शन
मध्य युग में पेंटिंग, थिएटर, संगीत और नृत्य में कृष्ण हमेशा से प्रमुख रहे हैं। ब्रज क्षेत्र में रासलीला का खास अवसरों पर प्रदर्शन होता है। कृष्ण से जुड़ी अन्य लीलाओं में नाटकीय तत्व प्रमुख होते हैं। रात का अंत ही लीला की शुरुआत होता है। इसमें कृष्ण के बचपन के प्रसंग नाटक की शैली में प्रस्तुत किए जाते हैं। इसमें सारे चरित्र शामिल होते हैं और धरती और आकाश के मिलन के प्रतीक के रूप में श्याम वर्णीय कृष्ण और श्वेत वर्णीय राधा के मिलन को दर्शाया जाता है।

सन्दर्भ:
https://www.exoticindiaart.com/article/krishnaimage/
http://blog.chughtaimuseum.com/?p=3732
https://www.encyclopedia.com/international/encyclopedias-almanacs-transcripts-and-maps/krishna-indian-art
https://en.wikipedia.org/wiki/Krishna#Iconography

चित्र सन्दर्भ:
पहला चित्र तंजौर के नृत्य करते कृष्ण की प्रतिमा का है। (wikimedia)
दूसरा चित्र सैन फ्रांसिस्को(San Francisco) में 15वीं शताब्दी की कृष्ण प्रतिमा का है। (wikimedia)
तीसरा चित्र बालक कृष्ण का है। (wikimedia)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.