सफर: सड़क और पर्यावरण का

नगरीकरण- शहर व शक्ति
30-07-2020 03:42 AM
सफर: सड़क और पर्यावरण का

विकासशील देशों में सड़कों का निर्माण विकास का दूसरा पहलू है। इसमें सबके लिए कुछ ना कुछ जरूर है- राजनीतिक दल कुछ लाभ उठाते हैं; एक युवा व्यक्ति अपने वाहन पर गति का मजा लेता है; ठेकेदार मुनाफे का आनंद लेते हैं; प्रशिक्षित- अप्रशिक्षित लोगों को रोजगार मिलता है और इसी तरह के कई और प्रसंग भी हैं। सोचने की बात यह है कि सड़कों, राजमार्गों के लिए क्या पारिस्थितिक कीमत अदा की जा रही है। संरक्षण के प्रयासों की दृष्टि से सड़क निर्माण और उसके पारिस्थितिक प्रभाव के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना बहुत जरूरी है।
पगडंडी पर पैदल चलते मनुष्य का सफर साइकिल, स्कूटर से होते हुए कार तक पहुंच गया है। जैसे जैसे सफर के साथी बदले, वैसे वैसे पैरों के नीचे के रास्ते भी। अमेरिका में 4 मिलियन मील से ज्यादा सड़के हैं और देश की जमीन का 20% सड़कों के नाम है। सारे परिदृश्य को नाटकीय ढंग से सड़कों के नेटवर्क ने बदल दिया है, साथ ही वन्य जीवन को भी हानि पहुंचाई है। सड़क हादसों से बढ़ती मृत्यु दर के अलावा, सड़के पर्यावरण संबंधी जनसंख्यकी को भी बदल सकती हैं और इस तरह के वातावरण में प्रदूषण का एक स्रोत बनती हैं।

सड़क हादसे और जनसंख्या पतन
जानवर सड़क पार करते हैं और अक्सर सड़क दुर्घटना का हिस्सा बन जाते हैं। सच तो यह है कि बहुत से वन्यजीवों की मृत्यु का कारण सड़क हादसे हैं और कुछ प्रजातियों की घटती जनसंख्या का प्रमुख कारण भी। जब सड़क जानवर के निवास के पास से गुजरती है, तो दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए हाईवे 27 फ्लोरिडा में एक ऐसी झील के ऊपर से गुजरता है, जिसमें बहुत से कछुए रहते हैं, वहां कछुओं की मृत्यु दर बहुत ऊंची है। देश के वन्य जीवो के लिए यह राजमार्ग बहुत खतरनाक साबित होता है। कुछ अभयचर जानवर समूह में नियमित रूप से एक से दूसरी जगह जाते रहते हैं तथा आये दिन इन दुर्घटनाओं का शिकार बनते हैं। कभी-कभी कुछ जानवर खतरा भापकर बचाव के लिए जो उपाय करते हैं, उनसे भी जीवन गंवा बैठते हैं जैसे कि कछुए कारों को खतरा मानते हुए अपने खोल में घुस जाते हैं। इस प्रक्रिया में ज्यादा देर तक सड़क पर रहने के कारण वे बचाव में सफल नहीं हो पाते। सांप भी कार को देख कर चलना भूल जाते हैं और कार गुजर जाने के एक मिनट बाद तक स्तब्ध रहते हैं। विषैले सांप भागने के बजाय बचने के लिए अपने विश का इस्तेमाल करते हैं।
रेड फॉक्स(रेड Fox) मादा बार-बार अपने बच्चों को देखने प्रजनन स्थल पर जाती है। कभी-कभी एक रात में 10 बार। इससे खतरा बढ़ जाता है। दुर्घटनाओं के बाद अक्सर जनसांख्यिकी बदलाव देखने में आते हैं। उदाहरण के लिए पानी में रहने वाली मादा कछुआ अंडे देते समय जगह बदल देती है, जबकि नर कछुआ ऐसा कुछ भी नहीं करता। इससे हुई मौतों से जानवरों की संख्या पर भी असर पड़ता है। कुछ प्रजातियों में सड़कों को, उनके कारण हुई वन्यजीवों की मृत्यु के कारण Extinction Vortex (विलुप्ति कारक) का दर्जा दिया जाता है।

वास विखंडन और संशोधन
सड़क दुर्घटना में मौत के अलावा भी कई और तरह के नुकसान होते हैं जैसे कि जानवरों के रहने की जगह का नष्ट हो जाना। उदाहरण के लिए टिम्बर रैटल स्नेक(Timber Rattlesnake) के शीतावास (Hibernacula) के समय अनुवांशिकी अध्ययन से पता चला कि शीतावास में जब वे सड़कों द्वारा बंद कर दिए गए, तो उनमें अनुवांशिकी विभिन्नता उनसे कम थी जो खुले स्थानों पर रह रहे थे। सड़के उन बिलों को मिटा देती है और सांपों का मिलना मुश्किल हो जाता है। इसी प्रकार कुछ नर नाग जमीन पर रेंगते हुए अपनी मादा नागिन को सूंघते हुए ढूंढते हैं। कभी-कभी जानवर अपने निवास को नहीं ढूंढ पाते। एक अध्ययन के अनुसार सड़कें गर्भवती मादा कछुओं को उनके निवास तक पहुंचने में बाधा बनती हैं। उन्हें दूसरी जगह गुजारा करना पड़ता है, जहां उनके काफी अंडे नष्ट हो जाते हैं।

सड़कें और प्रदूषण
सड़कें वातावरण में प्रदूषण फैलाने का काम भी करती हैं। सड़क पर टायर के मलबे से जंगल के मेढको के कायांतरण का समय कम हो जाता है। सड़क से उत्पन्न हुए विभिन्न प्रदूषित तत्व जब तालाबों में गिरते हैं, उससे जंगली मेंढकों और चित्तीदार सालामैंडर (Salamander) के जीवन संकट में पड़ जाते हैं। सड़क के किनारे के प्रदूषण के कारण मेढको में कंकाल संबंधी असमानता पैदा हो जाती है। यह उनकी शिकार पकड़ने के सामर्थ्य को कमजोर करती है। सड़कों पर गाड़ियों से तेल भी टपकता है, जिससे वन्यजीवों को नुकसान पहुंचता है। सिर्फ रसायनों का ही नहीं, सड़कों से रोशनी और ध्वनि का प्रदूषण भी नुकसानदेह होता है। गाड़ियों की आवाज चिड़ियों के ध्वन्यात्मक संवाद में बाधा डालती है और धीरे-धीरे करके सड़क के किनारे की चिड़ियों की संख्या कम होती चली जाती है। जिन चिड़ियों की आवाज की तीव्रता कार की आवाज की तीव्रता से कम होती है, क्षेत्र से गायब हो जाती हैं। रात में गाड़ियों की कृत्रिम रोशनी से अंडे सेते समय समुद्री कछुए (जो रोशनी का इस्तेमाल समुद्र की दिशा पता करने के लिए करते हैं) भ्रमित होकर पानी के बजाय सड़क की तरफ चले जाते हैं। अक्सर ऐसे में पानी की कमी से मौत का शिकार हो जाते हैं या गाड़ी की टक्कर से समाप्त हो जाते हैं और कभी समुद्र तक नहीं पहुंच पाते।

समाधान के प्रयास
इस दिशा में काफी प्रयास किए जा रहे हैं कि कैसे सड़कों के हानिकारक प्रभावों से वन्यजीव की रक्षा की जा सके। ऐसे मामले जिनमें वन्यजीवों की एक खास समय सीमा में ज्यादा मृत्युदर पता चलती है, तो ऐसी सड़कों को बंद करके या गाड़ियों की गति सीमा घटाकर मृत्युदर को घटाया जा सकता है। वन्यजीवों के प्रजनन काल में सड़कों को बंद करने से सकारात्मक परिणाम आए हैं। कृत्रिम बोतलों के निर्माण द्वारा गर्भवती सरीसृपों को सुरक्षा देने के प्रयास किए गए हैं। सांपों के लिए कृत्रिम शीतावास बनाकर, उन्हें ज्यादा घूमने से रोका जा सकता है। सड़क पार करने के वैकल्पिक उपाय करके भी इन हादसों को नियंत्रित किया जा सकता है। क्षेत्र में शोध द्वारा वन्यजीवों के लिए सुरक्षित सड़क पार करने के प्रभावी साधनों के निर्माण पर काम करने की जरूरत है।

राजमार्ग और उसकी पारिस्थितिक कीमत
विकासशील देशों में सड़कों का निर्माण विकास का पर्याय माना जाता है। सड़क निर्माण के फायदों से बहुत से लोग जुड़े होते हैं। रफ्तार लोगों को रोमांच से भर देती है। हर एक अपनी मंजिल तक तुरंत पहुंचना चाहता है। आए दिन होने वाले सड़क हादसों के बावजूद रफ्तार पर नियंत्रण की बहस किसी नतीजे तक नहीं पहुंचती।

जौनपुर, उत्तर प्रदेश में 1 किलोमीटर सड़क के निर्माण के लिए वहाँ के जमीन के मालिकों को 100 करोड़ का भुगतान किया गया। सड़क उनकी जमीन के बीच से निकलेगी। प्रत्येक व्यक्ति को 20 लाख से डेढ़ करोड़ के बीच रकम दी गई। यह रकम जमीन के बाजार भाव से 4 गुना ज्यादा थी। आम के पेड़ों के लिए मालिकों को रुपए दिए गए। 200 साल पुराने पेड़ काटे जाने थे। इन पेड़ों पर कई चिड़िया और जानवर रहते थे। आम के पेड़ों की गांव में पूजा होती है। लोगों की मान्यता है कि जो हरे आम के पेड़ काटता है, उसे दो समय का भोजन मुश्किल से मिलता है। लेकिन सच तो यह है कि जिन्होंने आम के पेड़ काटे, वह धनवान हो गए, पुराना विश्वास टूट गया।

क्या गांव वाले पैसे का बुद्धिमानी से प्रयोग करेंगे? सिर्फ कुछ परिवारों ने जमीन खरीदी जो बाद में दुकानदारों को बेच दी गई। पैसे आने के बाद गांव में 20 कारें, 25-30 दो पहिया वाहन खरीदे गए लेकिन उनका कोई आर्थिक उपयोग नहीं था। 3 सालों में 70% से ज्यादा पैसा खत्म हो गया और शराब की खपत कई गुना बढ़ गई। खरीदी गई गाड़ियों का उपयोग शराब पीने की सुरक्षित जगह ढूंढने के लिए होता है। बहुत से जुए के अड्डे बन गए, यहां तक कि अच्छी शिक्षा के नाम पर शून्यता की स्थिति है। गांव में एयर कंडीशनर और कुकिंग गैस का आम चलन है। बड़े-बड़े घर बन गए। जब पैसा ख़त्म हो जाएगा तो यह लोग आर्थिक स्थिति कैसे संभालेंगे? पेड़ कट गए, ठंडी-साफ़ हवा गायब हो गई है। ग्रामीण क्षेत्र पहले से ही गरीब था, अब नए बदलावों से और गरीब हो गया। चीनी मिलों के बंद होने से गन्ने की फसल भी खत्म हो गई। जंगली जानवर दालों की खेती चर जाते हैं, जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी हो गई है। यह लोगों को समझना बहुत मुश्किल है कि इस तरह का जीवन जीने के क्या परिणाम होते हैं। अगर घनी आबादी वाला भारत चौड़ी सड़क बना सकता है, तो वह विविधता को संरक्षित क्यों नहीं कर सकता, जिसके हमारे देश में प्रचुर भंडार हैं?

चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र अमेरिका (United States of America) के एक शहर का पुराना और नया चित्र दिखाता है। (Prarang)
दूसरा चित्र अमेरिका के हॉस्टन (Houston) में सडकों का जाल दिखाया गया है। (WallpaperFlare)
तीसरे चित्र में गुजरात के अहमदाबाद में सड़क दुर्घटना में मारी गयी पाम सिवेट कैट (Palm Civet Cat) को दिखाया गया है। (Publicdomainpictures)
चौथे चित्र में सड़क से गुजरते हुए सांप को दिखाया गया है। (Prarang)
अंतिम चित्र में सड़क पर कछुए को दिखाया गया है। (Prarang)
सन्दर्भ:
https://www.downtoearth.org.in/blog/urbanisation/the-ecological-cost-of-highway-to-my-village-69447
https://www.environmentalscience.org/roads

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.