भाषा का उपयोग केवल मानव द्वारा ही क्यों किया जाता है?

व्यवहारिक
26-06-2020 09:25 AM
भाषा का उपयोग केवल मानव द्वारा ही क्यों किया जाता है?

हम अपनी मातृभाषा को बिना किसी औपचारिक पाठ के सीखते हैं और फिर भी हर स्थिति में बिना कुछ सोचे समझे इसे संभाल लेते हैं। ये एक ऐसी क्षमता है जो हम मनुष्यों के लिए आरक्षित है। हालांकि बन्दर, कुत्ते, और तोते किसी अमूर्त प्रतीक या ध्वनि को किसी वस्तु से जोड़कर कुछ शब्द सीखने में सक्षम रहे हैं, लेकिन वे उन शब्दों को कुछ नियमों के अनुसार संयोजन करके सार्थक वाक्य बनाने में सक्षम नहीं हैं। भाषा हमें जानवरों से भिन्न करती है। काफी लंबे समय से मनोवैज्ञानिक, भाषाविद और तंत्रिका जीव वैज्ञानिक मनुष्य के दिमाग की छानवीन कर रहे हैं कि हम जो सुनते और पढ़ते हैं उस पर मस्तिष्क किस तरह से प्रक्रिया करते हैं।

इस प्रकृति में कोई अन्य प्राकृतिक संचार प्रणाली मानव भाषा की तरह नहीं है। मानव भाषा असीमित संख्या में विषयों (मौसम, युद्ध, अतीत, भविष्य, गणित, गपशप, परियों की कहानियों ...) पर विचार व्यक्त कर सकती है। इसका उपयोग केवल जानकारी को संप्रेषित करने के लिए नहीं, बल्कि जानकारी (प्रश्नों) को हल करने और आदेश देने के लिए भी किया जाता है। हर मानव भाषा में हज़ारों शब्दों की शब्दावली है, जो कई दर्जन भाषण ध्वनियों से निर्मित है। वक्ता शब्दों से असीमित संख्या में वाक्यांशों और वाक्यों का निर्माण कर सकते हैं और साथ ही उपसर्गों और प्रत्ययों का एक छोटा सा संग्रह और वाक्यों के अर्थ व्यक्तिगत शब्दों के अर्थ से निर्मित होते हैं।

मानव भाषा के अभिलेख ये पता चलता है कि मानव भाषा लगभग 5000 साल पहले से मौजूद है। वहीं समय के साथ ये भाषाएं धीरे-धीरे बदलती रही, कभी-कभी अन्य भाषाओं के साथ संपर्क करने के लिए और कभी-कभी संस्कृति और फैशन में बदलाव के कारण। लेकिन भाषा की मूल वास्तुकला और अभिव्यंजक शक्ति एक समान रही है। अब सवाल यह उठता है कि मानव भाषा के गुणों की शुरुआत कैसे हुई थी। जाहिर है, एक गुफा के चारों ओर बैठकर भाषा बनाने का निर्णय नहीं लिया गया होगा, क्योंकि सलाह देने और लेने के लिए एक भाषा होनी चाहिए थी! इसलिए ऐसा माना जा सकता है कि पहले के मनुष्य ने घूरघुराकर या चिल्लाकार या रोने से 'धीरे-धीरे' किसी तरह वर्तमान भाषा को विकसित किया होगा।

डरहम विश्वविद्यालय (Durham University, England) के शोधकर्ताओं ने यह स्पष्ट किया है कि मानव भाषा की विशिष्ट अभिव्यंजक शक्ति से मनुष्यों को अनुनय तरीके से संकेतों को बनाने और उपयोग करने की आवश्यकता होती है। एक गणितीय मॉडल का उपयोग करते हुए, डॉ. थॉमस स्कॉट-फिलिप्स (Dr. Thomas Scott-Phillips) और उनके सहयोगी, बताते हैं कि मिश्रित संकेतों (जिसमें दो या दो से अधिक संकेतों को एक साथ जोड़ा जाता है, और जो मानव भाषा की अभिव्यंजक शक्ति के लिए महत्वपूर्ण है) का विकास, सामान्य रूप से तब संभव नहीं है जब तक कि किसी प्रजाति के कुछ विशेष मनोवैज्ञानिक स्वतंत्र नहीं होते हैं। मिश्रित संकेतों का विकास केवल मनुष्य में होता है, किसी अन्य प्रजाति में नहीं, और इससे हम समझ सकते हैं कि केवल मनुष्यों के पास भाषा क्यों है।

एक मिश्रित संचार प्रणाली में, कुछ संकेतों में अन्य संकेतों के संयोजन शामिल होते हैं। इस तरह की प्रणालियां समकक्ष, गैर-मिश्रित प्रणालियों की तुलना में अधिक कुशल होती हैं, फिर भी इसके बावजूद वे प्रकृति में दुर्लभ हैं। पिछले अध्ययनों ने पर्याप्त रूप से यह नहीं बताया है कि ऐसा क्यों है?
लेकिन एक नए प्रतिरूप से पता चलता है कि संकेतों और प्रतिक्रियाओं की अन्योन्याश्रयता ऐतिहासिक पथों पर महत्वपूर्ण बाधाएं डालती है जिसके द्वारा मिश्रित संकेत उभर सकते हैं, इस हद तक कि सबसे सरल रूप में मिश्रित संचार के अलावा कुछ भी बेहद संभाव नहीं है।

जबकि एक विकासवादी जीवविज्ञानी का तर्क है कि मनुष्यों ने बातचीत करना मोल तोल करने की आवश्यकता को देखते हुए शुरू कर दिया था। आधुनिक मनुष्यों की परिभाषित विशेषता हमारे सामाजिक व्यवहार का परिष्कार है। एक प्रजाति के रूप में हमारे पूरे इतिहास में हम अपने तत्काल परिवारों से बाहरी लोगों के साथ व्यापार और आदान-प्रदान में लगे हुए हैं। घाटा हो जाने और समझौते की शर्तों पर बातचीत करने की आवश्यकता के जोखिमों ने हमारी प्रजातियों में भाषा के विकास का दृढ़ता से समर्थन किया है। भाषा हमारे कौशल और प्रतिष्ठा को उन लोगों से दूर कर सकती है जो वास्तव में हमें जानते हैं, साथ ही ये व्यापार के दायरे और जटिलता को व्यापक करती है।

वहीं अन्य जानवरों के लिए, जो व्यापार या अपनी गतिविधियों के समन्वय में संलग्न नहीं होते हैं और जो सभी दिन भर एक ही तरह से कम या ज्यादा करते हैं, उनके लिए संचार या बातचीत करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता है, इसलिए उनको अपने संचार के वर्तमान रूप से अधिक का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है। नतीजतन, प्राकृतिक चयन ने उनमें अतिरिक्त भाषा का उपयोग करने की जरूरत को उत्पन्न नहीं किया।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में विश्व भर में प्रयोग की जाने वाली भाषाओँ के समन्वय को कलात्मकता के साथ प्रस्तुत किया गया है। (Freepik)
2. दूसरे चित्र में किलर व्हेल के साथ सांकेतिक रूप से बात करते हुए एक व्यक्ति का चित्रण है। (Youtube)
3. तीसरे चित्र में दो भेड़ों द्वारा भाषा की प्रायोगिकता का कलात्मक वर्णन किया गया है। (Wikimedia)

संदर्भ :-
1. https://www.theguardian.com/books/2018/sep/21/human-instinct-why-we-are-unique
2. https://royalsociety.org/news/2013/language-unique-humans/
3. https://www.theatlantic.com/business/archive/2015/06/why-humans-speak-language-origins/396635/
4. https://www.eurekalert.org/pub_releases/2017-11/mpif-tsd112117.php
5. https://www.linguisticsociety.org/resource/faq-how-did-language-begin

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.