विकास स्तर की निगरानी के लिए उपयुक्त साधन है, मानव विकास सूचकांक

सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान
17-06-2020 12:15 PM
विकास स्तर की निगरानी के लिए उपयुक्त साधन है, मानव विकास सूचकांक

किसी भी देश के विकास के स्तर पर नजर रखने के लिए एक साधन की आवश्यकता होती है तथा मानव विकास सूचकांक (Human Development Index - HDI) ऐसे साधन का महत्वपूर्ण उदाहरण है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम प्रत्येक वर्ष अपनी वार्षिक रिपोर्ट (Report) में जारी मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट के आधार पर देशों को पंक्तिबद्ध करता है। देश के विकास के स्तर पर नज़र रखने के लिए मानव विकास सूचकांक सबसे अच्छे साधन में से एक माना जाता है, क्योंकि यह आर्थिक विकास के लिए उत्तरदायी सभी प्रमुख सामाजिक और आर्थिक संकेतकों को जोड़ता है। मानव विकास सूचकांक एक सांख्यिकीय साधन है जिसका उपयोग किसी देश की सामाजिक और आर्थिक आयामों में समग्र उपलब्धि को मापने के लिए किया जाता है। किसी देश के सामाजिक और आर्थिक आयाम लोगों के स्वास्थ्य, उनकी शिक्षा के स्तर और उनके जीवन स्तर पर आधारित होते हैं। मानव विकास सूचकांक का निर्माण पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा 1990 में किया गया जो आगे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा देश के विकास को मापने के लिए उपयोग में लाया गया। अनुक्रमणिका की गणना चार प्रमुख सूचकांको को जोड़ती है जिनमें स्वास्थ्य के लिए जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के लिए प्रत्याशित वर्ष, स्कूली शिक्षा के लिए औसत वर्ष और प्रति व्यक्ति आय शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने 2008 में जिलेवार मानव विकास सूचकांक की गणना शुरू की थी। इसके बाद दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र ने 2008 में, तीसरे और चौथे स्थान पर क्रमशः मिजोरम और दिल्ली ने 2013 में मानव विकास सूचकांक की गणना शुरू की। आज उत्तर प्रदेश जिलों के मानव विकास सूचकांक स्कोर (Score) की गणना करने के लिए दो अलग-अलग अभ्यास कर रहा है। पहला अभ्यास मानव विकास सूचकांक गणना के लिए चर के रूप में शिशु मृत्यु दर, साक्षरता दर और प्रति व्यक्ति आय को केंद्रित करता है जबकि दूसरा अभ्यास अधिक समावेशी है और शिशु मृत्यु दर, संस्थागत प्रसव, साक्षरता दर, सकल नामांकन राशन और प्रति व्यक्ति आय अर्थात पांच संकेतकों को केंद्रित करता है। नीति निर्माण और अनुसंधान में वर्तमान अध्ययन एक महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि यह संकेतकों की एक श्रृंखला के लिए जिला-स्तरीय मानव विकास के नवीनतम अनुमान प्रदान करता है। मानव विकास सूचकांक के मामले में उत्तर प्रदेश के 72 जिलों में से, जौनपुर 59 वें स्थान पर है, हालाँकि जौनपुर की गरीबी दर सभी जिलों में सबसे कम है।

उत्तर प्रदेश ने अपना पहला मानव विकास सूचकांक वर्ष 2003 में और दूसरा 2008 में बनाया। दोनों रिपोर्टों ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme-UNDP) पद्धति के अनुसरण में अपने सूचकांकों का निर्माण किया। इन रिपोर्टों ने न केवल एक अंतर-राज्य तुलनात्मक रूप से उत्तरप्रदेश को प्रस्तुत किया बल्कि यह राज्य के जिलों के मानव विकास की स्थिति के विश्लेषण को भी सामने लाया। विश्लेषण वर्ष 1991, 2001 और 2005 के लिए किया गया था। महाराष्ट्र (2012), मिजोरम (2013) और दिल्ली (2013) सरकारें अपने मानव विकास रिपोर्ट के साथ आयीं जिसने उत्तर प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्य सरकारों को भी अपने मानव विकास रिपोर्ट को नवीनतम आंकड़ों के अनुसार अपडेट (Update) करने की चुनौती दी।

उत्तर प्रदेश के मामले में, कुछ शोधकर्ताओं ने जिलेवार मानव विकास सूचकांक का आकलन करने की कोशिश की है लेकिन पुराने आंकड़ों का इस्तेमाल किया है। राज्य में प्रचलित सामाजिक और स्थानिक असमानताओं को देखते हुए, यह उन सभी जिलों में सापेक्ष मानव विकास की स्थिति का विश्लेषण करने के लिए महत्वपूर्ण है जो विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित हैं। इसके अलावा, सत्तारूढ़ सरकारों/पार्टियों में बार-बार बदलाव और नए जिलों को बनाने और नए नाम आदि प्रदान करने के उनके शौक भी कुछ राजनीतिक कारण हैं जो जिलों के मानव विकास स्तरों का नियमित अध्ययन करने के लिए कहते हैं। पिछले दशक में आर्थिक विकास, ढांचागत विस्तार और संरचनात्मक परिवर्तनों के विकास के स्तर में वृद्धि के साथ लोगों के अधिकारों और योग्यता के स्तर में भी वृद्धि हुई है। जिलेवार मानव विकास सूचकांक का अनुमान लगाने के लिए बुनियादी आंकडे 2011 की जनगणना वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट, उत्तर प्रदेश 2011-12, जिला प्राथमिक शिक्षा रिपोर्ट 2011-12, और आर्थिक गतिविधि 2011-12, आर्थिक और सांख्यिकी विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार से लिया गया। चूंकि अध्ययन उत्तर प्रदेश के जिलों के मानव विकास की स्थिति का विश्लेषण और तुलना करने का एक प्रयास है, इसलिए राज्य के सभी 75 जिलों के आंकड़ों को अच्छी तरह से खोजा गया। भारत में जिला स्तर पर आंकडों की उपलब्धता की सीमाओं को देखते हुए, केवल 72 जिलों के आंकडों का उपयोग और संकलन किया गया। वर्तमान अभ्यास हेतु 72 जिलों के लिए मानव विकास सूचकांक के दो समूहों की गणना की गयी है, पहला तीन संकेतकों के आधार पर और दूसरा पांच संकेतकों के आधार पर। सूचकांकों का निर्माण तीन आयामों अर्थात् स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के लिए किया गया।

अंतिम मानव विकास सूचकांक की गणना में दो चरण शामिल हैं। पहला चरण प्रत्येक संकेतक के लिए व्यक्तिगत आयाम सूचकांक की गणना है और दूसरा प्रत्येक जिले के लिए संयुक्त सूचकांक अर्थात मानव विकास सूचकांक की गणना है। प्रत्येक सूचक के लिए आयाम सूचकांक की गणना निम्न सूत्र का उपयोग करके की जाती है:
आयाम सूचकांक = वास्तविक दर – न्यूनतम दर/ अधिकतम दर – न्यूनतम दर

शिशु मृत्यु दर जैसे नकारात्मक संकेतक के लिए, निम्न सूत्र का उपयोग किया जाता है:
आयाम सूचकांक = अधिकतम दर – वास्तविक दर/ अधिकतम दर – न्यूनतम दर

न्यूनतम और अधिकतम मूल्य क्रमशः 'प्राकृतिक शून्य' और 'आकांक्षात्मक लक्ष्य' के रूप में कार्य करते हैं, जिनसे घटक संकेतक मानकीकृत होते हैं। प्रत्येक आयाम के सूचकांकों को खोजने के लिए विशेष आयाम के संकेतकों के औसत माध्य की गणना की जाती है। आयाम-वार सूचकांकों की गणना के बाद, प्रत्येक जिले के अंतिम मानव विकास सूचकांक की गणना तीन आयाम सूचकांकों के अंकगणितीय माध्य द्वारा की जाती है। मानव विकास प्राप्ति के संदर्भ में व्यापक विश्लेषण, के परिणाम बताते हैं कि पांच संकेतकों के आधार पर मानव विकास सूचकांक का अनुमान सभी जिलों के आधार पर तीन संकेतकों से कम है। कई जिले जो पहले उच्च मानव विकास को दर्शाते थे पांच संकेतकों के मामले में मध्यम मानव विकास श्रेणी में शामिल हुए। तीन संकेतक आधारित अनुमान अतिशयोक्तिपूर्ण आंकड़े प्रदान करते हैं क्योंकि राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार साक्षरता बढ़ाने और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। राज्य को स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ सकारात्मक आय सृजन नीतिगत हस्तक्षेप द्वारा आय असमानताओं को कम करने का भी प्रयास करना चाहिए। इस संबंध में, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम और कौशल विकास कार्यक्रमों को मजबूत करना निश्चित रूप से फायदेमंद साबित होगा।

राज्य में यदि शहरी और ग्रामीण प्रवास की बात की जाए तो ग्रामीण से शहरी प्रवासियों के वितरण के संदर्भ में, पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों के शहरी क्षेत्र प्रवासियों को लगभग समान रूप से (प्रत्येक में 40 प्रतिशत से अधिक) आकर्षित करते हैं। बाहरी राज्य से उत्तर प्रदेश में आर्थिक प्रवास काफी कम है। उत्तर प्रदेश में राज्य के भीतरी क्षेत्रों से पुरुष आर्थिक प्रवासी मध्यम आयु वर्ग (25-44) के होते हैं। ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में जाने वाली आबादी में प्रवासियों की निरक्षर आबादी अधिक है। राज्य के भीतर ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में जाने वाले प्रवासियों में उन लोगों या प्रवासियों की आबादी अधिक है जिनके पास माध्यमिक शिक्षा है जबकि राज्य में स्नातक आबादी शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में जाते हैं, यह पैटर्न (Pattern) सबसे अधिक सम्भावित सार्वजनिक क्षेत्र के स्थानांतरण को दर्शाता है। उनकी वर्तमान आर्थिक स्थिति के संदर्भ में, ग्रामीणों से शहरी क्षेत्रों में जाने वाले प्रवासियों के अपवाद के साथ शीर्ष प्रवासियों के बीच पुरुष प्रवासियों का बहुत अधिक प्रतिनिधित्व है।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में जीवन प्रत्याशा, आर्थिक विकास, शिक्षा दर इत्यादि को दर्शाया गया है। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में २०१७ के आकड़ों के अनुसार विश्व मानव विकास सूचकांक को नक़्शे के साथ प्रस्तुत किया गया है। (Wikipedia/Prarang)
3. तीसरे चित्र में मानव जीवन प्रत्याशा (उम्र), शिक्षा (वैशभूषा), आर्थिक विकास (पार्श्व में - पैसे) इत्यादि को कलात्मक तरीके से एक ही चित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया है।(Freepik)

संदर्भ:
1. https://prarang.in/rampur/posts/3635/What-is-Human-Development-Index
2. https://bit.ly/2Y72fXt
3. https://bit.ly/2N5QqdT

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