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कीड़े ऐसे जीव होते हैं जिनको देख कर बहुत ही बड़ी संख्या में लोग घिन खाते हैं ऐसे में लोग यह भूल जाते हैं कि इनका योगदान हमारे पारिस्थितिक तंत्र में अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है। खाद्य पदार्थ से लेकर हमारे स्वास्थ्य तक इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस लेख में हम बात करेंगे कि किस प्रकार से कीड़े हमारी दवाओं में मिलाये जाते हैं और किस प्रकार से वो हमारे स्वास्थ्य का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
कीड़े और उनसे निकाले गए पदार्थों का उपयोग बड़ी संख्या में दुनिया भर की संस्कृतियों में औषधीय गुणों के रूप में देखने को मिलता है। चिकित्सा के अलावा यदि देखा जाए तो इन कीड़ों का प्रयोग जादूई गतिविधियों द्वारा बीमारियों के उपचार के तौर पर भी देखने को मिलता है। कीड़ों द्वारा स्वास्थ्य सम्बन्धी उपचारों पर दुनिया भर में कई वैज्ञानिकों ने बेहतर तरीके से शोध आदि किये जिसमें यह पाया गया कि कई प्रकार के रोगों के उपचार में कीड़ों का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जा सकता है, उदाहरण के तौर पर जब हम बात करते हैं तो मधुमेह की बिमारी के दौरान घाव आदि लग जाने पर कीड़ों के जरिये ही इलाज किया जाता है। वर्तमान काल में आज दुनिया भर में कीड़ों के आधार पर कई बीमारियों का उपचार किया जा रहा है और यह एक अत्यंत ही सुलभ उपचार के रूप में निकल कर सामने आया है। भारत में प्राचीन काल से ही इन कीड़ों का प्रयोग उपचार में किया जाता जा रहा है, इसके कई लेख आयुर्वेद में हमें देखने को मिल जाते हैं। आयुर्वेद प्राचीन भारत की चिकित्सा पद्धति पर आधारित एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
आयुर्वेद में दीमक का प्रयोग विशिष्ट और अस्पष्ट दोनों प्रकार की बीमारियों में किया जाता था। दीमक का प्रयोग अल्सर, अनीमिया और आम्वाती जैसे रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता था तथा इसको ही दर्द निवारक के रूप में भी ग्रहण किया जाता था। जेट्रोफा के पत्ते पर पाया जाने वाला एक अन्य कीट भी औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है, इस कीट को काट के उबाल कर एक घोल बनाया जाता है और इस घोल के प्रयोग से बुखार, जठरान्त्र आदि जैसी बीमारियों का उपचार किया जा सकता है। इस प्रकार से हम देख सकते हैं कि भारत में प्राचीन काल से ही कीड़ों का प्रयोग किया जाता जा रहा है। कीड़ों से सम्बंधित उपचार को एंटोमोथेरेपी (Entomotherapy) के रूप में जाना जाता है, इस विधा से प्राचीन और आधुनिक काल में भी इलाज किया जाता है। पारंपरिक रूप से यह माना जाता था कि कई कीड़ों और जीवों के शरीर के कुछ अंग मनुष्यों से मिलते जुलते हैं ऐसे में कई सभ्यताओं में उन कीड़ों का प्रयोग दवा के रूप में किया जाता था जैसे कि मक्सिको (Mexico) में टिड्डों की मादाओं का प्रयोग किया जाता है।
जिसके पीछे यह कारण है कि टिड्डों की मादाओं का जिगर मनुष्यों से काफी हद तक मिलता जुलता है। इसके अलावा भारत और चीन में भी इस प्रकार से कीड़ों से सम्बंधित इलाज अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं। अब आधुनिक दौर में एंटोमोथेरेपी की बात करें तो इसका प्रयोग कई एंटीबायोटिक आदि दवाओं का निर्माण कीटों के आधार पर ही किया जाता है। भारत के न्येशी और गालो जनजाति जो कि अरुणांचल प्रदेश में पाए जाते हैं अपने इलाज के लिए कीड़ों का प्रयोग बड़े पैमाने पर करते हैं। ये जनजातियां गुबरैला आदि का भी प्रयोग स्वास्थ सम्बंधित मामलों के लिए करती हैं।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में अनुसंधान के दौरान एक कीट को दिखाया गया है। (Unsplash)
2. दूसरे चित्र में एक अनुसंधान केंद्र में रखे कीटों के सैंपल दिखाए गए हैं। (Wikimedia)
3. तीसरे चित्र में परखनलियों में कीट दिखाई दे रहे हैं। (Flickr)
4. चौथे चित्र में एक कॉकरोच के द्वारा कुछ वैज्ञानिक शोध होता दिखाया गया है। (Freepik)
5. अंतिम चित्र में एक कीड़े को एक व्यक्ति के हाथ पर दिखाया गया है। (publicdomainpictures)
सन्दर्भ :
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Insects_in_medicine
2. https://bit.ly/3gxvKc7
3. https://hicare.in/blog/entomotherapy-medical-uses-insects/
4. https://ethnobiomed.biomedcentral.com/articles/10.1186/1746-4269-7-5
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