ट्री शेपिंग के जरिए दिया जाता है पेड़ों को विभिन्न आकार

पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें
21-05-2020 10:00 AM
ट्री शेपिंग के जरिए दिया जाता है पेड़ों को विभिन्न आकार

पेड़ों के साथ रहने की इच्छा किसी भी मनुष्य के लिए स्वाभाविक है। यह लालसा मानव चेतना में अंतरिम गहराई से रोपित है तथा शायद यही कारण है कि विभिन्न रूपों में उपयोग करने के लिए पेड़ों को आकार दिया जाता है। पेड़ों को आकार देने की इस क्रिया को ट्री शेपिंग (Tree shaping) कहा जाता है। यह अभ्यास कम से कम कई सौ वर्षों से किया जा रहा है, जिसे भारत की खासी जनजाति द्वारा निर्मित तथा रखरखाव किये गये जीवित पुलों या सेतुओं द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। इन सेतुओं को मुख्यतः जीवित पेडों की जड से बनाया गया है। ट्री शेपिंग (कई अन्य वैकल्पिक नामों से भी जाना जाता है) में विभिन्न संरचनाओं और कला बनाने के लिए जीवित पेड़ों और अन्य लकड़ी वाले पेड-पौधों का उपयोग किया जाता है। विभिन्न कलाकारों द्वारा अपने पेड़ों को आकार देने के लिए कुछ अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया जाता रहा है, जिनमें प्लीचिंग (Pleaching), बोन्साई (Bonsai), एस्पालियर (Espalier) और टॉपीएरी (Topiary) आदि शामिल हैं। जीवित जड़ सेतु एक प्रकार का सरल सेतु है, जिसे ट्री शेपिंग के द्वारा जीवित पौधों की जड़ों से बनाया जाता है। वे पूर्वोत्तर भारतीय राज्य मेघालय के दक्षिणी हिस्से में आम हैं। ये सेतु हस्तनिर्मित हैं, जिन्हें शिलांग पठार के दक्षिणी भाग के साथ पहाड़ी इलाके में खासी और जयंतिया लोगों द्वारा रबड़ अंजीर (Ficus Elastica) की वायवीय जड़ों से बनाया गया है। अधिकांश सेतु समुद्र तल से 50 मीटर और 1150 मीटर के बीच उपोष्णकटिबंधीय नम चौड़ी जंगल की खड़ी ढलानों पर बढ़ते हैं। जिस पेड़ से सेतु या पुल बनता है, वो जब तक स्वस्थ रहता है तब तक सेतु की जड़ें स्वाभाविक रूप से मोटी और मजबूत रहती हैं।

दुनिया भर में, सदियों से, व्यावहारिक और सौंदर्यवादी उद्देश्यों के लिए, लोगों ने पेड़ों को नया आकार देने और उन्हें मोड़ने की रणनीति विकसित की है। अधिकांश भागों में यह तकनीक अलगाव में विकसित हुईं किंतु बाद में पेड़ों को आकार देने की इस कला की तकनीकों या विधियों को एक दूसरे से सीखा जाने लगा। और अब इन कलाकारों द्वारा पेड़ों को अधिक महत्वाकांक्षी रूपों इमारतों से फर्नीचर तक, में विकसित करने का लक्ष्य रखा जाता है। इंडोनेशिया और उत्तरपूर्वी भारत में, बरगद और रबर के पेड़ों की जड़ों को जड़ सेतु बनाने के लिए बांस के तख्ते के चारों ओर लपेटा गया जो भयंकर मानसून का सामना कर सकते हैं। यूरोप में, बागवानों ने एक समतल पर पेड़ों को प्रशिक्षित करने की एक तकनीक विकसित की, ताकि वह सपाट हो जाएं। इस तकनीक को एस्पालियर नाम दिया गया, इसके बाद उन्हें औपचारिक पैटर्न (Patterns) और यहां तक कि शब्दों में निर्देशित किया जा सकता है। ट्री शेपिंग की रणनीतियों ने अक्सर व्यावहारिक उद्देश्यों को पूरा किया। 1900 के शुरुआती दिनों में, जॉन क्रैब्सैक (John Krubsack), जो कि विस्कॉन्सिन (Wisconsin) के एक बैंकर (बैंकर) थे, ने अपने घर के पीछे वाले आँगन में 32 बॉक्स वाले ऐसे बड़े पेड़ लगाए, जो एक बढ़ई द्वारा बनाई जा सकने वाली किसी भी कुर्सी से अधिक मजबूत थे। इन पेड़ों को झुकाने, कलम बांधने (Graft), और पेड़ों को एक शानदार फर्नीचर के रूप में विकसित करने में उन्हें 11 साल लग गए।

1920 के दशक में, कैलिफ़ोर्निया के एक किसान, एक्सल एर्लैंडसन (Axel Erlandson) ने पेड़ों को मेहराबों, ज्यामितीय आकृतियों में आकार देने का प्रयोग करना शुरू किया, ये ऐसे डिजाइन (Design) थे जिनकी कल्पना किसी ने पहले कभी नहीं की थी। इसी दौरान, एक जर्मन इंजीनियर आर्थर वेइचुला (Arthur Wiechula) ने बढ़ते हुए पेड़ों से घरों के लिए काल्पनिक, विस्तृत विचारों की रूपरेखा तैयार की। हाल के दशकों में, संयुक्त राज्य अमेरिका में रिचर्ड रीम्स (Richard Reames) और जर्मनी में कॉन्स्टेंटिन किर्श (Konstantin Kirsch) ने अन्य डिजाईनों, उपयोगी वस्तुओं और इमारतों को विकसित करने के लिए इन तकनीकों को सीखने और आगे बढ़ाने के लिए काम किया, जैसा कि रीम्स ने अपनी पुस्तक अरबरस्कल्प्चर (Arborsculpture) में इसका विवरण भी दिया है। अरबोरस्कल्प्चर वास्तव में पेड़ों के तनों को उगाने और उन्हें आकार देने की एक कला और तकनीक है। ग्राफ्टिंग, बेन्डिंग (Bending) और प्रूनिंग (Pruning) से पेड़ों को सजावटी या उपयोगी आकार में उगाया जाता है। यह तकनीक एक वांछित आकार धारण करने के लिए पौधों या पेड़ों की एकजुट होने, ग्राफ्टिंग और एक नया आकार बनाए रखने की क्षमता पर निर्भर करती है। ट्री शेप को प्राप्त करने के मुख्यतः तीन तरीके हैं। पहला एरोपोनिक रूट कल्चर (Aeroponic root culture), इंस्टेंट ट्री शेपिंग (Instant tree shaping-Arborsculpture) और ग्रेजुएल ट्री शेपिंग (Gradual tree shaping)। एरोपोनिक रूट कल्चर में एरोपोनिक रूप से जड़ों को बढाया जाता है, अर्थात जड़ों को एक पोषक तत्व समृद्ध मिश्रण में उगाया जाता है जब तक कि जड़ें पांच मीटर या उससे अधिक लंबाई की न हो जांए, इससे जडे लचीली बनी रहती हैं। इस पद्धति के पीछे विचार यह है कि बड़ी मात्रा में जड़ें विकसित की जा सकती हैं, जिनका उपयोग भवन निर्माण सामग्री के रूप में किया जा सकता है। जैसे-जैसे जड़ें मोटी होंगी, वे समय के साथ पेड़ों की एक ठोस दीवार बनाएंगे।

इंस्टेंट ट्री शेपिंग मूल रूप से 3 D प्लिचिंग है, जोकि पेड की अशाखित 2-3 मीटर लंबी टहनी का उपयोग करती है। इन्हें डिज़ाइन आकार में मोडा और बुना जाता है तथा धातु की सलाखों के पास तब तक रखा जाता है जब तक कि पेड़ों की नई वृद्धि के छल्ले एक डाली न बन जाएं। पेड़ों की परिपक्वता और झुकने की प्रक्रिया में होने वाला नुकसान डाली को मजबूत बनाने हेतु नयी वृद्धि और फिर नए आकार में स्थिर रहने के लिए आवश्यक समय की लंबाई को निर्धारित करेगा। यह समय 2-15 साल या उससे अधिक की भी हो सकती है। कुछ ट्री शेपर्स मेज, कुर्सी, पुल और यहाँ तक कि घर बनाने के लिए भी इस विधि का प्रयोग करने का प्रयास कर रहे हैं। इस पद्धति का फायदा यह है कि इससे एक त्वरित सुखद प्रभाव प्राप्त किया जा सकता है और एक कुर्सी या मध्यम आकार की वस्तु को आकार देने का काम एक घंटे में किया जा सकता है। इसका नुकसान धीमी असमान वृद्धि और शीर्षारंभी क्षय है जिन्हें दिखाने में कई साल लग सकते हैं। इसकी सहायता से पेड को कुर्सी का आकार भी दिया जा सकता है। कुर्सी बनाने के लिए सबसे पहले जमीन में धातु की दो 5 फीट लंबाई वाली सलाखों को लगभग 3 फीट की दूरी पर गाढ दें, यह कुर्सी के पीछे का भाग होगा। इसके बाद दो सीधी सलाखों के बीच सीट के स्तर को निर्धारित करने के लिए चार फुट धातु की सलाखों में से एक को बांध दें। एक अन्य चार फुट की सलाख को 8 इंच पर पहली सलाख के ऊपर तथा अंतिम चार फुट की सलाख को 8 इंच पर इसके ऊपर बांधे। कुर्सी के पीछे के हिस्से के लिए अपने दो सबसे बड़े, मोटे तथा बाहों के लिए सबसे पतले दो सीधे तनों (Saplings) को चुने। एक बड़े और एक पतले तनों का एक साथ बंडल बनाए और इन्हें ऊपर की सलाखों के सामने रोप दें। शेष आठ तनों को दो सम समूहों में विभाजित करें और उन्हें वहां लगाए जहां सामने के पैर हों। अंदर के तने को सीट बनाने के लिए किसी भी पैटर्न में झुकाएं या मोडे। उन्हें पहले सबसे नीचे की सलाख के अंदर से गुजारें और फिर अगली सलाख से वापस ले लें। और अंत में इसे सबसे ऊपर की सलाख के पीछे से गुजारें। कुर्सी के सामने एक अस्थानीय झुकाव या वक्र बनाने के लिए दोनों हाथों का प्रयोग करें। नयी वृद्धि के साथ जैसे-जैसे यह बढने लगे इसे पैटर्न में निर्देशित करें। कुर्सी के पीछे भाग को बनाने के लिए दो बड़े तनों को बांधें और ग्राफ्ट करें। दो पतली भुजाओं को सामने की ओर और फिर पीछे की ओर फैलाएं और खिंचाव टेप से सुरक्षित करें। किसी भी भाग जो आकार से बाहर दिखाई देते हैं, उन्हें खिंचाव टेप के साथ जगह में खींचा जा सकता है। वृद्धि वाले मौसम के दौरान सबसे छोटे तने के सिरों को प्रकाश देने के लिए शाखाओं की छंटाई करें। अपनी कुर्सी पर तभी बैठें जब वह आपके वजन को सहने के लिए पर्याप्त मजबूत हो।

ट्री शेप को प्राप्त करने का तीसरा तरीका ग्रेजुएल ट्री शेपिंग है, जो सहायक ढांचे के साथ शुरू होता है। इस ढाँचे में वृद्धि पथ बनते हैं। ये पथ या तो लकड़ी के सांचों पर होते हैं या फिर एक तार के आकार के होते हैं, फिर 7-30 सेंटीमीटर लंबी छोटी कटिंग (Cuttings) लगायी जाती है। नयी वृद्धि का वास्तविक आकार शेपिंग ज़ोन (Shaping zone) के प्रशिक्षण के साथ होता है। इस पद्धति के लाभ यह हैं कि यह वृद्धि के साथ भी दोहराई जा सकती है, और आप अपने डिजाइनों का परीक्षण आसानी से कर सकते हैं या अपने परीक्षण के वर्षों को बचाने के लिए अन्य लोगों के सिद्ध डिज़ाइनों को विकसित कर सकते हैं। आप अपनी रचना की एक जीवंत विरासत छोड़ सकते हैं और ऐसा करना सस्ता भी है। यह विधि पेड़ पर अधिक तनाव डालने से बचती है और लगातार और समान रूप से बढ़ती रहती है। इसका मुख्य नुकसान यह है कि वृद्धि वाले मौसम में नयी वृद्धि की जाँच और प्रशिक्षण के लिए प्रति दिन 5-20 मिनट खर्च करने की आवश्यकता होती है। दूसरा यह कि किसी विशेष प्रजाति के पेड़ को आकार देने की विधि को सीखने में कई साल लग सकते हैं।

चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में वृक्ष का आकर परिवर्तन कर कुर्सी बनायीं गयी है। (Publicdomainpictures)
2. दूसरे चित्र में बोन्साई पौधे का आकर दिख रहा है। (Peakpx)
3. तीसरे चित्र में पौधे का कलात्मक आकर परिवर्तन उदहारण दिख रहा है। (Unsplash)
4. चौथे चित्र में वृक्ष के आकार परिवर्तन के द्वारा बनाया गया शांति चिन्ह दृश्यांवित है। (Flickr)
5. पांचवे चित्र में वृक्ष परिवर्तन के सेतु दिखाया गया है। (Wikimedia)
6. अंतिम चित्र में बोन्साई पौधे का आकार परिवर्तन दिख रहा है। (Unsplash)
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Tree_shaping
2. https://www.permaculture.co.uk/articles/art-tree-shaping
3. https://www.atlasobscura.com/articles/a-short-history-of-tree-shaping
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Living_root_bridge
5. http://www.arborsmith.com/how-to-grow-a-chair

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