जौनपुर से है, संगीत का पुराना अटूट और नाता

मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक
01-05-2020 11:35 AM
जौनपुर से है, संगीत का पुराना अटूट और नाता

जौनपुर को देश- विदेश के पटल पर संगीत, ज्ञान और वास्तुशास्त्र की ऊँचाइयों पर पहुँचाने में शर्की शासकों का योगदान सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है।इस राजवंश के अंतिम शासक के तौर पर सुल्तान हुसैन शाह शर्की ने एक शासक और संगीतकार के तौर पर दोनों मोर्चों पर बेमिसाल पराक्रम दिखाया।

सुल्तान हुसैन शाह शर्की : एक शासक
इतिहास गवाह है कि हुसैन शाह शर्की जो जौनपुर के संगीत सम्राट थे, वे मालवा के राजा बाज़ बहादुर, गुजरात के राजा बहादुर शाह और अवध के नवाब वाजिद अली शाह की तरह शर्की साम्राज्य के आख़िरी राजा थे जिन्हें राज सिंहासन पर उनकी माता बीबी राजी ने 1458 ई० में बैठाया था।उन्होंने अपने पिता सुल्तान महमूद शाह शर्की से एक बड़ा साम्राज्य विरासत में पाया था जिसकी सीमाएँ पूर्व में बंगाल के स्वतंत्र राज्य से लेकर पश्चिम में लगभग आगरा गेट तक, उत्तर में हिमालय की तलहटी से लेकर स्वतंत्र राज्य मालवा, दक्षिण में बघेलखंड को शामिल करते हुए, उनके पास एक मज़बूत सेना थी और तमाम रईस अधीन थे। बहलोल लोदी, दिल्ली और आगरा के शासक को वह अपना प्रतिद्वंद्वी मानते थे क्योंकि उनके क़ब्ज़े में कुछ ऐसे प्रदेश थे जो न्यायिक तौर पर उनकी पत्नी से सम्बंधित थे (जो सुल्तान अलाउद्दीन आलम शाह की बेटी थी, जो सैय्यद वंश के आख़िरी सदस्य थे)। कुछ हद तक लापरवाह किंतु बहादुर और महत्वाकांक्षी सुल्तान हुसैन शाह शर्की ने विजय और राज-पाठ बढ़ाने के साथ अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार शुरू किया जो 1478 तक उनके पक्ष में रहा। उड़ीसा के राजा ने इनके समक्ष आत्मसमर्पण किया। इन्होने ग्वालियर के मज़बूत क़िले को जीता और वहाँ के राजा कीरत सिंह को जागीरदार बनाया। अपनी ताक़त का बयाना और विस्तार मेवात तक किया जिनके राज्याध्यक्षों ने उनकी ग़ुलामी स्वीकार कर ली थी।यमुना किनारे स्थित एक सामरिक महत्व के शहर इटावा जो कि शर्की और लोदियों के बीच सम्पर्क की रीढ़ था, सुल्तान हुसैन शाह शर्की ने जीत लिया। बदायूँ में अलाउद्दीन आलम शाह की मौत के बाद वह उनकी महत्वाकांक्षी बेगम के पक्ष में उनके वारिस बन गए। उन्होंने दिल्ली शहर को जीतने की बोली लगाई, लेकिन बाहलुल लोदी के हाथों करारी शिकस्त मिली जिसने शर्की सेनाओं पर 1479 में युद्ध विराम संधि समाप्त होने पर हमला कर दिया।

हुसैन शाह ने अपना शिविर, असबाब गँवा दिया। हज़ारों सैनिक यमुना में डूब गए। बाक़ी बचा उनका हरम और 40 रईस, जो सभी क़ैद कर लिए गए।शर्की ने फिर से अपने सैनिक लामबंद किए। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति वाली पत्नी को बाहलुल लोदी ने अपने पति से मिलने के लिए रिहा कर दिया था। हुसैन शाह ने अगले साल कन्नौज के नज़दीक आक्रमण किया और फिर से पराजित हुए। विजेता लोदी सेना के पहुँचने पर उन्होंने 1483 में जौनपुर छोड़ दिया। पीछे हटकर पूर्वी क्षेत्र के अपने विस्तृत अधिराज्य (जिसमें दक्षिणी बिहार और तिरहुत शामिल थे) में जाकर अगले 11 साल (1483-1495) निर्बाध राज्य किया बिना बाहलुल लोदी के व्यवधान के क्योंकि वह अपने पश्चिमी क्षेत्र के राज्य में बहुत व्यस्त था। हुसैन शाह को सुल्तान सिकंदर लोदी, सुल्तान बाहलुल लोदी के बेटे और उत्तराधिकारी ने 1494 में बनारस के नज़दीक युद्ध में पराजित कर दिया। उन्होंने बंगाल के राजा अलाउद्दीन हुसैन से शरण माँगी जिन्होंने उदारतापूर्वक अपने राज्य के पूर्वी बिहार के एक भाग कुहलगाँव को उन्हें अपनी सरकार की सीट के रूप में दे दिया।कुछ इतिहासकारों द्वारा ऐसा बताया जाता है कि अलाउद्दीन हुसैन शाह के बेटे और उत्तराधिकारी नसरत शाह ने अपनी बेटी की शादी हुसैन शाह शर्की के बेटे शहज़ादे जलालुद्दीन से की थी। फिरिश्ता के अनुसार हुसैन शाह की मौत गौर में हुई। उनके अवशेष उनके बेटे द्वारा बाबर के शासन में जौनपुर लाकर जामी मस्जिद स्थित पारिवारिक क़ब्रिस्तान में दफ़्न किए गए।

सुल्तान हुसैन शाह शर्की : एक संगीतकार
हुसैन शाह न केवल बेमिसाल संगीतज्ञ थे बल्कि एक महान अन्वेषक भी थे। ‘मिरात- इ-आफ़ताबनुमा ‘के लेखक ने उन्हें गंधर्व का ख़िताब दिया जो नायक के समकक्ष था।एक गंधर्व कुशल संगीतकार होता है व्यावहारिक पक्ष में अतीत में भी और अपने समय में भी, बाज़ बहादुर और तानसेन इसी श्रेणी के कलाकार थे। वे ख़याल गायकी के श्रेष्ठतम गायक थे, बहुत सी संगीत की किताबों में उन्हें ख़याल गायकी का जनक माना जाता है। हुसैन शाह एक अन्वेषक थे जिन्होंने भारतीय संगीत को नए रागों से समृद्ध किया। शाह नवाब खाँ ने ‘मिरात-इ-आफ़ताबनुमा’ में लिखा है कि शर्की संगीतकला के बेजोड़ विशेषज्ञ थे और उनकी शोहरत उनके जीवनकाल में भारत के चारों कोनों में फैली हुई थी।उस समय उनकी बराबरी का कोई दूसरा कलाकार नहीं था। शर्क़ी ने जो रागिनी खोजीं उनमें 14 श्याम हैं जैसे गौड़ श्याम, मल्हार श्याम, भूपाल श्याम, आज की 14 तोड़ी में से 4, एक जो आज भी हुसैनी तोड़ी कहलाती है और एक आसावरी जो आज जौनपुरी कहलाती है। कुछ संगीत सम्बंधी लेखक उन्हें हुसैनी कान्हणा का अन्वेषक मानते हैं। दूसरों के अनुसार जौनपुरी- आसावरी जो उनकी अपनी खोज है, वह जौनपुरी से अलग एक राग है और आसावरी, जौनपुरी और तोड़ी का मिश्रण है।
सुल्तान हुसैन शाह शर्क़ी मूलतः संगीतकार थे। भारतीय संगीत के विश्वकोश ‘संगीत राग कल्पद्रुम’ में बहुत से गाने हुसैन शाह के कम्पोज़ीशन (composition) के रूप में दर्ज हैं। हुसैन शाह शर्क़ी को श्रेय जाता है कि उन्होंने ख़याल स्कूल चलाकर उसे लोकप्रिय करने के साथ ही साथ मुग़ल शासकों की छत्रछाया में पनप रही ध्रुपद शैली के एकाधिकार को तोड़ने का काम भी किया। सूफ़ी रचनाकार क़ुतबान के विषय में आज के लोगों को बहुत कम पता है जिन्होंने हिंदवी सूफ़ी रोमांस ‘मिरिगावती’ की रचना 1530 ई० में की थी और उसे जौनपुर के शर्क़ी वंश के हुसैन शाह को समर्पित किया है जो कि उनके संरक्षक थे।

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चित्र (सन्दर्भ):
1.
जौनपुर के सुल्तान हुसैन शर्की की उड़ान (The Flight of Sultan Husaain Shah Sharqi), A.D. 1479 (Wikipedia)
2. बहलोल लोदी, हुसैन शाह शर्की और जौनपुर (Prarang)
3. जौनपुर की जामी मस्जिद (Prarang)
सन्दर्भ:
1.
https://sherazhyder.wordpress.com/sultan-hussain-sharqi/
2. http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00urduhindilinks/workshop2006/qutban/qutban_index.html
3. https://www.jstor.org/stable/j.ctt17rw4vj.22?seq=3#metadata_info_tab_contents

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