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गर्मी का मौसम आते ही जौनपुर का बाजार जमैथा जौनपुर के पानी तरबूज और कस्तूरी तरबूज से भर जाता है। खरबूजा त्वचा पर विशेष जाल के साथ एक प्रकार का कस्तूरी तरबूज होता है, इस फल की विटामिन ए और सी सामग्री आंतरिक और बाहरी त्वचा के ऊतकों को फिर से जीवंत करने में मदद करती है। विटामिन सी विशेष रूप से श्लेषजन का उत्पादन करता है, जो शरीर की कोशिकाओं को एक साथ रखती है, पाचन तंत्र में रक्त वाहिकाओं की भित्ति को मजबूत करती है और खराब कोशिकाओं और ऊतकों को ठीक करने में मदद करती है।
जमैथा का खरबूजा जौनपुर ही नहीं, बल्कि अन्य तमाम जनपदों में स्वाद व मिठास में अपनी अलग पहचान बनाये हुए है। लेकिन इस लाजवाब फल को प्रकृति की बुरी नजर लग गई है। शायद यही वजह है कि अब न तो यहां के खरबूजे में वह पहले वाली मिठास रह गई और न ही इसकी बोआई के प्रति किसानों की कोई खास रुझान। पहले जहां पैदावार प्रति बीघे आठ मन हुआ करती थी, वहीं आज यह घटकर आधी पहुंच गई है। इस फल के घटते मिठास का कारण खेतों में रासयनिक खादों का अत्यधिक प्रयोग करना है। जहां पहले खरबूजे की खेती करने के लिए एक खेत को पूरा जैविक खाद के लिए खाली रखा जाता था, वहीं अब किसानों द्वारा अन्य फसलें उगाने के चलते जैविक खाद के बजाए रासयनिक खाद का उपयोग किया जा रह है, जिस वजह से ही खरबूजों में वो मिठास नहीं मिलती है।
भारत में खरबूजे को पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है। यह गहरी उपजाऊ और अच्छी तरह से सुखी मिट्टी में उगता है। जब अच्छी तरह से सुखी दोमट मिट्टी पर इसे उगाया जाता है, तो यह काफी अच्छा परिणाम देता है। खराब जल निकासी क्षमता वाली मृदा खरबूजे की खेती के लिए अनुकूल नहीं है। एक फसली चक्र अपनायें क्योंकि एक ही खेत में एक ही फसल उगाने से मिट्टी के पोषक तत्वों, उपज में कमी और बीमारियों का हमला भी ज्यादा होता है। मिट्टी की पी एच 6-7 के बीच होनी चाहिए। खारी मिट्टी और नमक की ज्यादा मात्रा वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती। वहीं उत्तरी भारत में इसकी बिजाई फरवरी के मध्य में की जाती है। जबकि उत्तरी पूर्वी और पश्चिमी भारत में बिजाई नवंबर से जनवरी में की जाती है।
खरबूजे को सीधा बीज के द्वारा और पनीरी लगाकर भी बोया जा सकता है। साथ ही पौधे के विकास के शुरूआती समय के दौरान तल को नदीनों से मुक्त रखना जरूरी होता है। सही तरह से नदीनों की रोकथाम ना हो तो फल बोने से 15-20 दिनों में पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है। नदीन तेजी से बढ़ते हैं, इसलिए इस दौरान 2-3 बार गोडाई करते रहना चाहिए। वहीं हरित गृह में खड़ी खेती के एक नए चलन में, गुजरात में नवसारी कृषि विश्वविद्यालय ने सफलतापूर्वक साबित कर दिया है कि बरसाती मौसम के प्रतिकूल कस्तूरी और पानी तरबूज की खेती को अब बागवानी फसल के रूप में बे-मौसम उगाया जा सकता है। बागवानी फसल में पानी और कस्तूरी तरबूज के फल को प्लास्टिक के तार वाले बैग में लटकाया जाता है।
कस्तूरी और पानी तरबूज की फसल को पिछले साल अगस्त के पहले सप्ताह में बोया गया था और 65 दिनों के बाद पहली फसल के लिए तैयार थी और कटाई 90 दिनों तक जारी रही थी। कुल 925 पौधों को एक हरित गृह के 500 वर्ग मीटर क्षेत्र में समायोजित किया जा सकता है जो लगभग छह टन फल का उत्पादन करता है। इस प्रतिरूप का प्रमुख लाभ यह है कि ये फल सर्दियों से पहले बे-मौसम में उपलब्ध हो जाते हैं। यदि आप गर्मियों के दिन बहुत थका हुआ महसूस करते हैं तो एक खरबूज का सेवन करें और आप खुद को तरोताजा और ऊर्जावान पाएंगे। साथ ही कोई व्यक्ति मिताहारी है तो खरबूजा उसके लिए एक उत्कृष्ट फल है। इसमें महत्वपूर्ण मात्रा में फाइबर होता है और यह आपको पूर्णता की अनुभूति प्रदान करता है। आप एक त्वरित वजन घटाने की योजना में खरबूजे को शामिल कर सकते हैं।
चित्र (सन्दर्भ):
ऊपर दिए गए सभी चित्रों में खरबूज को दिखाया गया है।
1. Pixabay
2. Pixabay
3. Peakpr
4. Wallpaperflare
5. Wikimedia
संदर्भ :-
1. https://www.jaunpurcity.in/2013/05/musk-melon-kharbuza-of-jamaitha-jaunpur_16.html
2. https://www.apnikheti.com/en/pn/agriculture/horticulture/fruit/muskmelon
3. https://www.thehindu.com/sci-tech/science/off-season-musk-water-melon-production-a-possibility-nau/article3346116.ece
4. https://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-the-muskmelon-of-the-jamatha-is-famous-for-its-taste-19302996.html
5. https://www.hamarajaunpur.com/2016/11/blog-post_5.html
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