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इस विश्व में कई ऐसी प्रजातियाँ मौजूद हैं जो एक दूसरे की मदद करते हुए सहजीवन व्यतीत करती हैं। ऐसे ही विभिन्न प्रजातियों के कीड़े अपने से विपरीत प्रजाति के कीड़ों के साथ भी सहजीवी संबंध विकसित कर लेते हैं ताकि वे अपने वातावरण में स्वयं का बचाव कर सकें। ये रिश्ते मुख्य रूप से पारस्परिक होते हैं। उदाहरण के लिए, एफिड्स (Aphids) और कई चींटी की प्रजातियाँ एक दूसरे के लिए रक्षात्मक सहजीवन को बनाए रखते हैं। इसमें एफिड्स द्वारा चींटियों को फूलों का सार प्रदान किया जाता है, और इसके बदले में चींटियाँ एफिड्स को शिकारियों से बचाने के लिए रात में अपने घोंसले में ले जाती हैं और अगली सुबह उन्हें वापस एक पौधे में रख देती हैं। यहाँ तक कि कई चींटियों को एफिड के अंडों को सर्दियों के महीनों में सुरक्षित रूप से अपने घोंसलों में इकट्ठा करते हुए भी देखा गया है।
रक्षात्मक सहजीवन का एक और उदाहरण एक अमेज़ोनियन (Amazonian) मधुमक्खी की प्रजाति ‘श्वार्ज़ुला’ (Schwarzula) और ‘क्रिप्टोस्टिग्मा’ (Cryptostigma) नामक शल्क कीट की प्रजातियों के बीच भी देखा जा सकता है। मधुमक्खी की ये प्रजातियाँ कीट पतंगों से घिरे पेड़ के एक छेद में अपना घोंसला बनाती हैं और अपने साथ ही ये उस छेद में लगभग 200 शल्क कीटों को पनाह देती हैं। ये शल्क कीटे पेड़ की छाल का सेवन करते हैं और पराग का उत्सर्जन करते हैं। मधुमक्खी द्वारा इस पराग का सेवन किया जाता है और बदले में शल्क कीट को उसके स्वयं के अपशिष्ट में डूबने से बचाया जाता है।
वहीं कुछ सहजीवी इतनी बारीकी से परस्पर जुड़े हुए होते हैं कि यह बताना मुश्किल हो जाता है कि एक जीव कहाँ समाप्त होता है और दूसरा कहाँ से शुरू होता है। यह केवल कीटों में ही नहीं देखा जाता है, बल्कि पौधे/पशु के सहजीवन के मामले में भी यह बताना मुश्किल हो जाता है कि इनमें शारीरिक गठन किसके द्वारा किया जा रहा है। साथ ही इनमें अधिकांश सहजीवों को यह पता नहीं होता है कि वे दूसरे प्राणी की मदद कर रहे होते हैं। वे बस प्रकृति द्वारा संचालित एक सहज व्यवहार में जीवन व्यतीत करते हैं, जो उनके जीवन के लिए काफी लाभदायी होता है। सहजीवन के कई रूप होते हैं जैसे बाध्य सहजीवन में जीवों को जीवित रहने के लिए सहजीवी संबंध की आवश्यकता होती है। अन्य मामलों में, सहजीवी संबंध प्रत्येक जीव को जीवित रहने की अधिक संभावना देता है, लेकिन वे एक दूसरे पर संपूर्ण रूप से निर्भर नहीं रहते हैं। इसे संकाय सहजीव के रूप में जाना जाता है। ज्यादातर मामलों में, कई जीव सीधे दूसरे जीव के शरीर पर या उसके अंदर भी रहते हुए अपना जीवन यापन करते हैं।
एंडोसिम्बायोट्स (Endosymbiotes) एक अन्य जीव के अंदर रहते हैं, यानि वे वास्तव में कोशिकाओं के बीच या शरीर के ऊतकों (एकोएल फ्लैटवर्म की तरह) के भीतर पाए जाते हैं। और एक्टोसिमबोट्स (Ectosymbiotes), एक अन्य जीव के शरीर पर रहते हैं, जैसे मनुष्यों के सर पर जूँ। वहीं सफाई सहजीवन दो प्रजातियों के बीच का एक संबंध है, जहां एक (क्लीनर/Cleaner) दूसरे (ग्राहक) की सतह से परजीवी और अन्य सामग्री को निकालता है और खाता है। कीट सहजीवन का यह गुण कीट-माइक्रोबियल (Insect-microbial) सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने वाले तंत्रों और सूक्ष्मजीविता कीट के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली प्रक्रियाओं की हमारी समझ को बेहतर बनाता है। बेशक इस सहजीवन की प्रणाली से हम मानवों को भी काफी कुछ सीख मिल सकती है, ख़ास कर के वर्तमान परिस्थितयों को देखते हुए इस कला को सीखना और ज़रूरी हो जाता है।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Symbiosis
2.https://projects.ncsu.edu/cals/course/ent525/close/shannon.html
3.https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3220917/
4.https://science.howstuffworks.com/life/evolution/symbiosis.htm
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