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सन् 1880 में औद्योगिक दौर की शुरुआत के साथ इंग्लैंड (England), अमेरिका (America) समेत दुनिया के अन्य देशों में 8 घंटे काम, 8 घंटे मनोरंजन और 8 घंटे नींद का एक समयबद्ध बंटवारा किया गया था। इसका मतलब था – एक हफ्ते में 40 घंटे काम। देखते ही देखते ये एक औसत पैमाना बन गया। आज के समय में ये व्यवस्था लोगों को समझ में नहीं आती क्योंकि अब ज्यादातर रोज़गार नौकरियों के रूप में हैं। अतीत में ज्यादातर रोज़गार फैक्ट्रियों (Factories) से जुड़े थे। अब कामकाज में इंटरनेट (Internet) का प्रयोग होता है जिससे कर्मचारी अपना काम घर पर भी ले जाते हैं। दूसरा पहलू यह भी है कि ऑफिस (Office) के 8 घंटों में कर्मचारी समाचार पढ़ने, सोशल मीडिया (Social Media) और मनोरंजन से जुड़ी चीजें भी अपने स्मार्टफोन (Smartphone) से निपटा लेते हैं। इस तरह से काम की उत्पादकता को वे 8 घंटों की जगह 3 घंटों से भी कम समय देते हैं। 8 घंटे काम और 8 घंटे आराम की सार्थकता खत्म हो चुकी है। अब नींद के 8 घंटे भी कट जाते हैं जब रात में देर तक स्मार्टफोन पर व्यक्ति सक्रिय रहता है। इस तरह औद्योगिक युग के उस मॉडल (Model) की उपयोगिता आज के समय में पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है।
8 घंटे प्रति दिन आंदोलन का इतिहास
8 घंटे प्रतिदिन की मांग को कार्ल मार्क्स (Karl Marx) कामगारों की सेहत के लिए बहुत ही ज़रूरी मानते थे। 1867 में डास कैपिटल (DAS KAPITAL) में उन्होंने लिखा - “कामकाज के घंटे बढ़ाकर उससे पूंजीवादी उत्पादन बढ़ाकर ना केवल मानवीय श्रम की ताकत को नष्ट किया जाता है बल्कि उसकी सामान्य मौलिक विकास एवं सक्रियता की भौतिक परिस्थितियों को लूटा जाता है। इससे असमय थकान होकर श्रम की ताकत की समय से पहले मौत हो जाती है।"
कब और कैसे मई दिवस मजदूरों के लिए आधिकारिक छुट्टी में तबदील हुआ
इसकी शुरुआत 1886 में अमेरिका के शिकागो (Chicago) शहर से हुई जहां लाखों मजदूरों ने इक्ट्ठा होकर कामकाज के 8 घंटे तय करने के लिए हड़ताल कर दी। पूरे देश के मजदूरों के संगठन, मोची से लेकर दर्जी, इंजीनियर और बढ़ई ने मजदूर सभाएं आयोजित कीं। इनमें बेहतर कामकाजी माहौल की मांग उठाई गई, उस समय यूएस में डिप्रेशन (Depression) की स्थिति थी, करीब 5 हज़ार उद्योग मुंह के बल गिर पड़े थे। बेरोजगारी और वेतन भुगतान ना हो पाने की स्थिति में मजदूरों में असंतोष था। बहुतों का विश्वास था कि काम के घंटे कम करके 8 घंटे प्रतिदिन करने से बेरोजगारी कम हो सकती है और ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सकता है। भारत में मई दिवस की शुरुआत लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में की।
तब इसे मद्रास दिवस के रूप में मनाया जाता था। आज दुनिया भर के करीब 80 देशों में मई दिवस के
दिन आधिकारिक छुट्टी होती है।
हेयमार्केट स्क्वायर रैली (Haymarket Square Rally)
1 मई 1886 डेडलाइन (Deadline) थी जब युनियनों (Unions) और दूसरे संगठनों को हड़ताल पर जाना था। 8 घंटे प्रतिदिन की मांग लेकर समय से पहले राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 2.5 लाख लोग हड़ताल पर चले गये। इस जबरदस्त आंदोलन का केंद्र शिकागो था जहां हज़ारों लोग घटे हुए काम के घंटों की लड़ाई पहले ही जीत चुके थे। 1 मई को 10 हज़ार लोग शांतिपूर्वक हड़ताल पर चले गए। लेकिन कानून के दबाव और हड़तालियों के बीच तनाव बढ़ने से हड़ताल आगे भी जारी रही। पिकेट लाइन (Picket Line) पार करने को लेकर युनियन और कुछ लोगों के बीच हुए विवाद में पुलिस ने गोली चला दी। हुआ यूं कि जैसे ही हेयमार्केट रैली के आखिरी वक्ता ने अपना भाषण खत्म किया, एक डायनामाइट (Dynamite) बम विस्फोट पास के पुलिसवालों के बीच हुआ जिसमें एक अफसर मारा गया। जवाब में तुरंत पुलिस बल ने भीड़ पर गोली चलाना शुरू कर दिया। एक प्रदर्शनकारी की मौके पर ही मौत हो गई और 8 प्रदर्शनकारी बमबारी के लिए गिरफ्तार हुए। इनमें से चार को फांसी दे दी गई, जबकि स्पष्ट रूप से बमबारी में उनके शामिल होने के कोई सबूत नहीं थे। 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन ने मारे गये मजदूरों की याद में 1 मई को मजदूर दिवस घोषित कर इसे अंतर्राष्ट्रीय छुट्टी घोषित किया।
मार्च 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक फिनलैंड (Finland) लगातार दूसरी बार विश्व का सबसे खुशहाल देश माना गया है। और फिनलैंड की प्रधानमंत्री साना मारिन ने अपने देश में 6 घंटे प्रतिदिन और 5 दिन प्रति सप्ताह के वर्क माड्यूल (Work Module) का प्रस्ताव रखा है। भारत के परिवेश में देखा जाए तो इस परिस्थिति तक पहुंचने में हमें काफी समय लगेगा, लेकिन किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि ऊपर बताए गए जिन संघर्षों से पूरा विश्व 8 घंटे प्रतिदिन के काम के फैसले पर पहुंचा था, हमें उस त्याग और पराक्रम का सम्मान करते हुए भविष्य के लिए एक पुरजोर नीति बनानी चाहिए।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Eight-hour_day
2. https://www.pbs.org/livelyhood/workday/weekend/8hourday.html
3. https://www.quora.com/Why-India-doesnt-have-a-40-hour-workweek
4. https://thriveglobal.com/stories/in-an-8-hour-day-the-average-worker-is-productive-for-this-many-hours/
5. https://bit.ly/33uvq83
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