दार-अल-हरब का मतलब समझाती जौनपुर के विद्वान करामत अली की किताब

ध्वनि 2- भाषायें
04-03-2020 04:07 AM
दार-अल-हरब का मतलब समझाती जौनपुर के विद्वान करामत अली की किताब

1840 में बंगाल के सिरसा में इस्लामी विद्वानों के बीच बड़ी बहस छिड़ गई कि उस समय के ब्रिटिश इंडिया को “दार-अल-हरब” (“दार-अल-हरब” माने रणभूमि यानी वह जगह जहां जिहाद घोषित किया गया, इसलिए ईद नहीं मनाई जानी चाहिए क्योंकि इलाके में आर्थिक-राजनीतिक तौर पर युद्ध जैसे हालात बन गए हैं) घोषित कर दिया जाए या नहीं। उस दौरान जौनपुर के एक विद्वान जनाब करामत अली ने अपने लेख में बड़े तर्कपूर्ण ढंग से यह साबित कर दिया कि ब्रिटिश भारत “दार अल हरब” नहीं है।आज भी इस महान विचारक और लेखक की किताबें आधुनिक बांग्लादेश और भारत में खासी लोकप्रिय हैं।

किताब की समीक्षा से पहले ये बेहद जरूरी है कि औपनिवेशिक भारत के माहौल में भारत और खासकर जौनपुर में मुस्लिम समाज और इस्लाम जिस अजीब से दोराहे पर खड़े थे और इस असमंजस की घड़ी में करामत अली ने उन्हें अमन का रास्ता चुनने में अहम भूमिका निभाई। जनाब करामत अली जौनपुर के एक धार्मिक और सामाजिक सुधारक थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में मुल्लाहाता नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता अबू इब्राहिम एस.के. मुहम्मद इमाम बक्श, शाह अबुल अजीज देहलवी के शागिर्द , फारसी साहित्य के विद्वान,हादित और इल्म की दूसरी विधाओं में पारंगत थे। खुद करामत अली हजरत अबु बकर सिद्दीक की पीढ़ी के 35 वें वंशज थे। करामत अली की शुरुआती तालीम उनके पिता की देखरेख में हुई। उन्होंने धर्म शास्त्रों की तालीम मौलाना कुद्रातुल्लाह अल्लामी से पाई। 18 साल की उम्र में करामत अली अपने आध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ाने के लिए रायबरेली में सैय्यद अहमद से मिले और उनके शागिर्द बन गए। सैय्यद अहमद शाहिद ने उन्हें बंगाल जाकर इस्लाम का प्रचार-प्रसार अपने भाषणों और लेखों के जरिए करने को कहा।

उस समय के बंगाल के मुस्लिम समाज में नये प्रयोगों ,अंधविश्वास और गैर इस्लामी तौर तरीकों का बोलबाला था। बहुत से मुस्लिमों ने रमजान में रोजे रखना ,नमाज अदा करना, अजान पर जागना छोड़ दिया था। उसकी जगह उन्होंने हिन्दु रीति-रिवाज को मानना और हिन्दु त्योहारों को मनाना शुरु कर दिया था। बुतपरस्ती यानि मूर्ति पूजा और नबी ने मुस्लिम सोच पर असर डाला। मौलाना करामत अली ने ऐसे माहौल में पुराने पवित्र इस्लामी मूल्यों की राह पर चलने के लिए बंगाल के मुस्लिमों में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया।

औपनिवेशिक भारत में जिहाद

नवाब अब्दुल लतीफ ने बंगाल में इन विचारों की फिर से गूंज पैदा कर दी। उन्होंने कलकत्ता की अपनी ‘’मोहम्डन लिटरेरी सोसायटी’’ को ब्रिटिश सरकार के विरोध में चल रहे संघर्ष के विरोध का जरिया बनाया। भारत की Abode of War (लड़ाई का घर,”दार अल हरब”’) के रूप में पहचान को नकारते हुए,लतीफ ने अपने मुस्लिम भाइयों को समझाना चाहा कि बेकार के राजनीतिक युद्धाभ्यास की जगह उन्हें अपनी सामाजिक और शैक्षिक समस्याओं का समाधान ढूंढना चाहिए। नवाब अब्दुल लतीफ जैसे व्यक्ति के सारे प्रयासों के बावजूद यह हर समय संभव नहीं था कि इस्लाम की जिहाद संबंधी न्यायिक विचारधारा की कांट छांट की जाए और जो तकनीकी कठिनाइयां इस तथ्य से पनप रहीं थीं , कि एक गैर मुस्लिम ताकत इस वक्त मानो भारत पर शासन कर रही थी। जो मुसलमान “दारुल इस्लाम” को मानते थे ,वे बाध्य थे युद्ध करने के लिए।

ऐसे माहौल में जौनपुर के मौलवी करामत अली ने अपना नया आंदोलन चलाया –“तैयूनी’’ जिसका मतलब था पहचान बनाना।वह मानते थे कि ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध जिहाद न्यायसंगत नहीं है क्योंकि वह मुसलमानों की धार्मिक कार्रवाइयों में दखल नहीं देते थे। करामत अली का मत था कि भले ही यहां “दार उल इस्लाम” (इस्लाम का शासन) नहीं है, लेकिन फिर भी दारुल अमन (अमन का सिलसिला) तो है।इसलिए मुस्लिम समुदाय के सुधार पर अपना सारा ध्यान लगाया। उसे बुत परस्ती और नबी से मुक्त कर इस्लाम के सच्चे रास्ते पर लाए। मौलाना करामत अली ने करीब 46 किताबें और पुस्तिकाएं लिखीं। उनकी किताब मिफ्ताह अल जन्नाह के बहुत से संस्करण प्रकाशित हुए।यह इस उपमहाद्वीप की इस्लाम संबंधी सबसे प्रमुख किताब मानी जाती है। उनकी ज्यादातर किताबें उर्दू में हैं,जबकि उन्होंने इन्हें अरबी और फारसी में भी लिखा था।उनकी कुछ महत्वपूर्ण किताबें हैं-मिफ्ताह –अलजन्नाह,बैआत-इ-तावबा,शिस्त-अल-मुसल्ली,मुखारिब –अल-हर्रूफ,कौकब-ई-दुर्री,तर्जुमा शामल ई तिरमीजी,तर्जुमा मिशाक्त आदि हैं।

सन्दर्भ:
1.
http://en.banglapedia.org/index.php?title=Jaunpuri,_Karamat_Ali
2. https://bit.ly/2VHzEaz
3. https://bit.ly/2IhJ9Fx

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.