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कुछ समय पहले जौनपुर के पास एक जंगली जानवर की घुसपैठ की खबर आग की तरह सारे इलाके में फैल गई थी। घायलों का कहना था कि उन्हें एक तेंदुए ने घायल किया है। वन विभाग के कर्मचारियों के साथ गांव के लोगों ने अजीबोगरीब पैंतरे आज़माए। पटाखे फोड़कर छुपे हुए जानवर को डराकर बाहर निकालने की कोशिश हुई। कुछ गांव वाले डर के मारे घरों के दरवाज़े बंद करके दुबक कर बैठ गए, तो कुछ गांव वाले टोलियां बनाकर जंगली जानवर की तलाश करते हुए ‘जागते रहो, जागते रहो’ चिल्लाते हुए घूम रहे थे। ड्रोन (Drone) की मदद से भी इसे ढूंढने की कोशिश की गई।
कुछ इसी तरह एक तेंदुआ भटककर लखनऊ की आबादी वाले इलाके में घुस गया था। पूरे इलाके में दहशत का माहौल था। वन विभाग के कर्मचारी तेंदुए को पकड़ने की तैयारी कर ही रहे थे कि रेस्क्यू ऑपरेशन (Rescue Operation) के दौरान पुलिस की गोली से तेंदुए की मौत हो गयी। खबर फैलते ही सोशल मीडिया (Social Media) पर गुस्से से भरे पोस्ट्स (Posts) की बाढ़ सी आ गई। इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं। आए दिन जंगलों से भागे जानवरों के मानव-बस्ती में घुसने की खबर सनसनी बनकर मीडिया में बहस खड़ी कर देती है। क्या है इन घटनाओं के पीछे की असली वजह? कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास की कहानी का दूसरा पहलू मनुष्य और जानवर का वह टकराव है जो वास्तविक जंगलों की जगह लेते कंक्रीट (Concrete) के जंगलों ने खड़ा किया है?
औद्योगीकरण और विकास के नाम पर पर्यावरण को नष्ट किया जा रहा है। पूंजीवाद के देवताओं ने अपने विकास और निवेश के मकड़जाल में जंगलों को दबोच लिया है। जंगलों की खाद्य श्रृंखला बिखर सी गई है और नदियां सूख सी गई हैं। अवैध शिकारी और लकड़ी व खनन के ठेकेदार वहां डेरा जमाए हुए हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों ने भी जंगलों के भूगोल को उलट-पलट डाला है। शहरीकरण के इस इंसानी कहर से परेशान होकर जंगली जानवर इंसानों की बस्तियों की तरफ भागने को मजबूर हुए हैं। अब वह शहरों में भी पनाह तलाश रहे हैं। ऐसे माहौल में ज़रूरी है कि सभी इंसान इन जंगली जानवरों की विभिन्न प्रजातियों के आपसी फर्क को समझें और इनसे रूबरू हों, उदाहरण के तौर पर अक्सर हम लोग भारतीय तेंदुए और चीते के बीच का फर्क समझने में भूल कर जाते हैं। लेकिन हकीकत ये है कि चीते और तेंदुए में ज़मीन आसमान का फर्क होता है।
तेंदुए और चीते के बीच सबसे बड़ा फर्क होता है उनकी खाल पर उगे बालों के प्रतिरूप (Design) में। पहली नज़र में ये चित्तीदार जानवर भले ही एक जैसे लगें लेकिन हकीकत ये है कि तेंदुए के शरीर पर गुलाब की पंखुड़ियों जैसे निशान होते हैं जिन्हें अंग्रेज़ी में रेज़ेट (Rosettes) भी कहते हैं। वहीं चीतों के शरीर पर गाढ़ी गोल या अंडाकार चित्तियां होती हैं।
आंखों में फर्क
चीते अपने चेहरे पर बनी प्राकृतिक काले रंग की आंसुओं की धारा जैसी लकीरों के लिए जाने जाते हैं। ये लकीरें देखने में सुंदर होती ही हैं, साथ ही सूरज की रोशनी से दिन के समय में चमकती भी हैं जिससे चीते को दिन में शिकार करने में मदद मिलती है। वहीं दूसरी और तेंदुआ दिन में शिकार नहीं करता बल्कि रात में शिकार करने के लिए जाना जाता है।
तेंदुए की आंखों में बड़ी संख्या में प्रकाश संवेदनशील कोशिकाएं होती हैं जिसके कारण उन्हें रंग तो कम दिखाई देते हैं लेकिन अंधेरे में आसानी से किसी भी तरह की हलचल और आकृति को वे झट से देख पाते हैं। तेंदुए की आंखों की पुतलियां बहुत बड़ी होती हैं जिस कारण रात के अंधेरे में भी वह आराम से शिकार कर पाते हैं।
रफ्तार में फर्क
चीता दुनिया का सबसे तेज़ दौड़ने वाला जानवर है। इसके दौड़ने की रफ्तार बहुत सी स्पोर्ट्स कार (Sports Car) से भी ज्यादा होती है। चीते की गति 120 कि.मी. प्रति घंटा हो सकती है। चीते की दौड़ने की गति मात्र 3 सैकेंड में 0 से 103 कि.मी. प्रति घंटा हो सकती है। वहीं दूसरी ओर तेंदुए की सबसे तेज़ रफ्तार 58 कि.मी. प्रति घंटा होती है। हांलाकि उनकी गति की कमी की भरपाई उनकी दूसरी खूबियां करती हैं। इनमें खास है इनके पंजों की विशिष्ट बनावट जिनकी मदद से ये चढ़ाई करने में कुशल होते हैं, यानि पीछे के पंजों में शिकार को दबोचकर ये आसानी से पेड़ों पर चढ़ सकते हैं। तेंदुए की एक और खूबी है कि वो कुशल तैराक भी होते हैं।
चीते के मुकाबले तेंदुए शारीरिक बनावट में छोटे होते हैं। हालांकि तेंदुए चीते के मुकाबले ज्यादा मज़बूत और भारी होते हैं, लेकिन चीता इनके मुकाबले हल्का और कद काठी में बड़ा होता है। तेंदुओं के प्रजनन का मौसम ज्यादातर जनवरी और फरवरी के महीनों में होता है। मादा तेंदुआ गर्भधारण करने के 90-105 दिन बाद शावकों को जन्म देती है। मादा तेंदुआ आम तौर पर एक बार में कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा 6 बच्चों को जन्म दे सकती है। हाल के पैदा हुए तेंदुए के बच्चों का फर (Fur) सिलेटी रंग का होता है और गुलाब की पंखुड़ियों की तरह दिखने वाली विशिष्ट चित्तियां इन बच्चों पर धीरे-धीरे बड़े होने पर ही आती हैं। मादा चीता 90-98 दिनों के भीतर 3-4 शावकों को जन्म देती है। जन्म के समय तेंदुओं और चीतों दोनों के ही बच्चों की आंखें बंद होती हैं। हांलांकि 10 दिनों के बाद उनकी आंखें खुल जाती हैं।
चीता अपने शिकार को पीछा करते समय मारता है, फिर उसके बाद शिकार के गले पर प्रहार करता है, ताकि उसका दम घुट जाए। चीता के लिए चार पैरों वाले जानवरों का गला घोंटना आसान नहीं होता। इस दुविधा को पार करने के लिए ही वो इनके गले के श्वासनली में पंजो और दांतो से हमला करता है, जिसके चलते शिकार कमज़ोर पड़ता जाता है। इसके बाद चीता परभक्षी द्वारा उसके शिकार को ले जाने के खतरे के चलते पहले ही जितना जल्दी संभव हो अपने शिकार को निगलने में देर नहीं करता। तेंदुओं के पास बहुत मज़बूत और अच्छी पकड़ वाले पंजे होते हैं जिसकी वजह से वे एक सीधी चट्टान पर भी आसानी से चढ़ सकते हैं।
चीते और तेंदुए की पूंछ की बनावट में भी काफी अंतर होता है
चीते की दुम कुछ हद तक चपटी होती है। जिससे उसे तेज़ रफ्तार में भागने में मदद मिलती है। वहीं तेंदुए की दुम नली जैसी होती है, जो तेंदुए को संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। खासकर जब वह शिकार के दौरान पेड़ पर ऊपर या नीचे चढ़ते-उतरते हैं। चीते के मुकाबले तेंदुए पेड़ पर ज्यादा समय बिताते हैं। हालांकि चीता भी पेड़ पर चढ़ सकता है लेकिन वो तेंदुए की तरह अपने शिकार को लेकर पेड़ पर नहीं चढ़ सकता। हांलाकि चीता और तेंदुआ दोनों ही इंसान से डरते हैं। लेकिन इंसान पर हमला करने में तेंदुओं के ही मामले ज्यादा सामने आते हैं। वहीं चीता तो कई लोगों ने घरों में भी पाला है पर तेंदुए के ऐसे किस्से कम ही सामने आए हैं।
संदर्भ:
1. https://www.asiliaafrica.com/leopard-vs-cheetah-can-you-tell-the-difference/
2. https://bit.ly/3c0tJTH
3. https://bit.ly/39WJUj4
4. https://bit.ly/2w40zlZ
5. https://byjus.com/biology/difference-between-leopard-and-cheetah/
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