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जौनपुर की भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ काफी कम मात्रा में खनिज पदार्थ पाए जाते हैं, यहाँ केवल चुनिंदा स्थानों में कंकड़ और कुछ घास के मैदानों में रेत पाई जाती है। हालांकि मानव द्वारा रेत का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है, इसका उपयोग ईंट के निर्माण में भी किया जाता है। चीन के बाद, भारत विश्व भर में ईंटों का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता है।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इसकी निर्माण सामग्री भारतीय वास्तुकला में बहुत महत्व रखती है। विश्व स्तर पर उत्पादित होने वाली ईंटों में से भारत अकेले ही 10% से अधिक ईंटों का उत्पादन करता है और यहाँ पर ईंट बनाने वाले 1,40,000 उद्यम हैं। यह उद्योग सालाना लगभग 1.5 करोड़ श्रमिकों को रोज़गार देता है और 3.5 करोड़ टन कोयले की खपत करता है। वर्तमान समय की निर्माण सामग्री की बात की जाए तो चुनने के लिए कई अन्य विकल्प उपलब्ध हैं, लेकिन ईंटें हमेशा से ही एक स्पष्ट विकल्प रही हैं।
ईंट का उपयोग निर्माण सामग्री के रूप में कम से कम 5,000 वर्ष पहले शुरू कर दिया गया था। ऐसा माना जाता है कि पहली ईंट शायद मध्य पूर्व में बनाई गई थी, जो कि अब इराक में टाइगरिस (Tigris) और यूफ्रेट्स (Euphrates) नदियों के बीच है। मध्य पूर्व से ईंट बनाने की कला पश्चिम में मिस्र में फैल गई और पूर्व में फारस और भारत में आई थी।
भारत में प्रमुख ईंट उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब हैं। इन राज्यों का देश में पूरे उत्पादन का लगभग 65% हिस्सा है। भारत में ईंटों का उत्पादन मुख्य रूप से ईंधन और मिट्टी की उपलब्धता के कारण भारत भर में भिन्न है। आज भी, ईंटों का उत्पादन करने के लिए पारंपरिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ईंटों की निर्माण प्रक्रिया मौसमों पर भी निर्भर रहती है क्योंकि सुखाने और जलाने की प्रक्रिया अभी भी खुली हवा के तहत की जाती है।
भारत में ईंट बनाने की प्रक्रिया से बहुत कम लोग ही परिचित होंगे। निम्न इसे बनाने की प्रक्रिया है:-
1. कच्चे माल को तैयार करें :- इस पहले चरण में मिट्टी का खनन किया जाता है और फिर उसे एक समतल ज़मीन पर बिछाया जाता है, जहां इसमें से सभी प्रकार की अशुद्धियों (जैसे वनस्पति पदार्थ, पत्थर, कंकड़ आदि) को साफ किया जाता है। एक बार जब समाग्री शुद्ध हो जाती है तो इसे कुछ महीनों के लिए खुला रख दिया जाता है। इसके बाद काओलिन (Kaolin) और शेल (Shale) सहित प्राकृतिक मिट्टी के खनिजों की मदद से ईंट को मुख्य आकार दिया जाता है।
2. आकार देना और ढालना :- पहले के समय में ईंटों को आकार देने के लिए उपयोग किए जाने वाले सांचे लकड़ी के बने होते थे और ईंटों को बनाने के लिए निर्माताओं ने रेत का इस्तेमाल किया ताकि मिट्टी साँचों में न चिपक जाए। लेकिन आज इस प्रक्रिया के लिए कई अन्य विकल्प उपलब्ध हैं। अंतः उत्पाद की गुणवत्ता के आधार पर, ईंटों को कई अलग-अलग तरीकों से ढाला जाता है। ईंटों को आकार देने या ढालने के लिए सबसे आम तरीके हैं हाथ की ढलाई और मशीन की ढलाई।
• हाथ की ढलाई : संयमित मिट्टी को इस तरह से साँचे में ढाला जाता है कि वह सभी कोनों में भर जाएं। अतिरिक्त मिट्टी को तार वाले ढांचे की मदद से हटाया जाता है। एक बार उचित आकार तैयार हो जाने के बाद, ढांचे को उठा लिया जाता है और जमीन पर कच्ची ईंट मौजूद रहती है।
• मशीन से ढालना : इस विधि का उपयोग वहाँ किया जाता है जहां बड़ी संख्या में ईंटें निर्मित होती हैं। आवश्यक रूप से ईंटों को ढालने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की मशीनों का उपयोग किया जाता है:
1) लचकदार चिकनी मिट्टी की मशीनें - यहां उपयोग की जाने वाली मिट्टी लचीली होती है और इसे एक आयताकार आकार के ढाँचे में डाला जाता है जो ईंटों की लंबाई और चौड़ाई के बराबर होती है। इसके बाद इन्हें ढांचे में तारों की मदद से ईंटों की एक समान चौड़ाई में काटा जाता है।
2) सूखी चिकनी मिट्टी की मशीनें - यहाँ सूखी मिट्टी को पाउडर (Powder) के रूप में संघनित किया जाता है जिसे मशीनों की सहायता से साँचे में भरा जाता है। फिर कठोर और अच्छे आकार की ईंटों को बनाने के लिए उच्च दबाव के संपर्क में लाया जाता है।
3) सुखाना :- ईंट बनाने की प्रक्रिया में सुखाने की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक है। अब आप ज़रूर यह सोच रहे होंगे कि ईंट को क्यों सुखाया जाता है? इसका मुख्य कारण ईंटों को दरारों से बचाना है। ईंटों को सुखाने से यह सुनिश्चित किया जाता है कि ईंटों के जलने की प्रक्रिया से पहले नमी को हटा दिया जाता है। इसके अलावा सुखाने से कच्ची ईंटों की ताकत बढ़ जाती है, जिससे यह बिना नुकसान पहुंचाए जलने की प्रक्रिया के लिए भट्ठे में अधिक तापमान पर भी बनी रहती है। आमतौर पर सुखाने की प्रक्रिया 7 से 14 दिनों तक की होती है।
4) जलाने की प्रक्रिया :- सुखाने के बाद, ईंटों को भट्टियों में उच्च तापमान पर रख दिया जाता है। ईंट बनाने की प्रक्रिया में जलाना एक और बहुत महत्वपूर्ण कदम है। भारत में ईंटों को दो अलग-अलग प्रक्रिया से जलाया जाता है: पज़वा और भट्ठा।
संदर्भ:
1. https://gosmartbricks.com/simplifying-brick-making-process-india/
2. http://www.madehow.com/Volume-1/Brick.html
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Brick
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