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प्राचीन काल से ही भारत अपनी भव्य प्रदर्शन कलाओं के लिए जाना जाता रहा है। इन भव्य प्रदर्शन कलाओं में जादू का प्रदर्शन भी शामिल है जिसमें कलाकार अपने हाथों की सफाई के माध्यम से दर्शकों को भ्रमित करता है और एक आश्चर्य की अवस्था उत्पन्न करता है। कलाकार प्रायः प्राकृतिक साधनों का उपयोग करके असंभव प्रतीत होने वाले करतबों के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन करता है हालांकि वह मनोरंजन उत्पन्न करने के लिए दर्शकों को भ्रमित कर रहा होता है। यह अभिनय कला अन्य से अलग है क्योंकि यह वास्तविकता पर आधारित नहीं है। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है जो मनोरंजन का कारण बनती है। यह दुनिया की सबसे पुरानी प्रदर्शन कलाओं में से एक है, जिसे आज भी पसंद किया जाता है।
आधुनिक मनोरंजन जादू (Modern entertainment magic) का आरम्भ 19वीं सदी के जादूगर जीन यूजीन रॉबर्ट-हुडिन ने किया था जोकि एक लोकप्रिय नाट्य कला का रूप बना। 19वीं और 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कई प्रसिद्ध जादूगरों ने इस युग को "गोल्डन एज ऑफ मैजिक” (Golden age of magic) का रूप दिया और व्यापक व्यावसायिक सफलता हासिल की। इस अवधि के दौरान, जादू का प्रदर्शन हर थिएटर (Theatre), वॉडविल (vaudeville), और संगीत हॉल (Music halls) की जान बन गया था। जादू ने टेलीविज़न (Television) युग में डेविड कॉपरफील्ड, डग हेनिंग, पेन एंड टेलर, और डेविड ब्लेन जैसे कलाकारों को आधुनिक रूप देकर अपनी लोकप्रियता बनाए रखी।
शब्द मैजिक (Magic - जादू) की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘मगेया’ (Mageia) से हुई है। प्राचीन काल में फारसी पुजारियों को ग्रीक में मगोई (Magoi) के रूप में जाना जाता था। फारसी पुजारियों की अनुष्ठानिक कृतियाँ मगेया के नाम से जानी गईं जिसके बाद यह मैजिका (magika) में परिवर्तित हुई। 17वीं शताब्दी के दौरान ऐसी कई पुस्तकों का प्रकाशन किया गया जिसमें जादू की तरकीबों का वर्णन किया गया था। 18वीं शताब्दी तक, जादू मेलों में मनोरंजन के लिए दिखाए जाने वाले सामान्य प्रदर्शन का स्रोत बन गया था। 1845 में आधुनिक मनोरंजन जादू के संस्थापक जीन यूजीन रॉबर्ट-हुडिन ने पेरिस में जादू के एक थिएटर का शुभारम्भ किया। 19वीं शताब्दी के अंत में बड़े–बड़े थिएटरों में जादू का प्रदर्शन किया जाने लगा जिसके बाद यह टेलीविज़नों में भी दिखाई देने लगा। अन्य अभिनय कलाओं के समान ही भारत में जादू का इतिहास बहुत पुराना है।
भारतीय जादू का इतिहास 3500 ईसा पूर्व की हड़प्पा सभ्यता के समय का है तथा इसके कुछ साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। 20वीं और 21वीं शताब्दी में मदारी गाँव-गाँव घूमकर जादू का खेल दिखाते थे।
भारत में इनका विकास मुख्य रूप से मनोरंजन, लोगों को भ्रमित करने, खेल इत्यादि के लिए हुआ था। यहां प्रायः 18वीं शताब्दी की शुरुआत में जादू के प्रदर्शन का चलन स्पष्ट रूप से होने लगा था। पी.सी. सरकर को आधुनिक भारतीय जादू के पिता के रूप में जाना जाता है जिन्होंने जादू के ऊपर कई पुस्तकें भी लिखीं। 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान भारतीय जादूगरों को विभिन्न अवसरों पर जादू के प्रदर्शन के लिए यूरोप भी भेजा जाता था। प्रसिद्ध भारतीय जादूगरों में पी॰सी॰ सरकार, छोटे पीसी सरकार, गोपीनाथ मुतुकड, प्रह्लाद आचार्य इत्यादि के नाम शामिल हैं।
भारत में सड़कों पर दिखाये जाने वाले जादू का प्रभाव पश्चिमी जादू पर भी पड़ा और यही कारण था कि कई भारतीय जादूगर अपनी कला के प्रदर्शन के लिए यूरोपीय देशों में गये। उन्होंने पाया कि किस तरह पश्चिमी जादूगर अपने प्रदर्शनों में पारंपरिक भारतीय तरकीबों का उपयोग कर रहे थे या उन्हें अपना रहे थे। पहले के समय में जादू मुख्य रूप से गरीब समुदायों द्वारा बिना किसी विशेष उपकरण के भारत की सड़कों पर प्रदर्शित किया जाता था किंतु धीरे-धीरे इस प्रदर्शन ने विशाल मंचों, विशेष उपकरणों और विस्तृत पोशाकों की ओर अपना रूख किया और सबके लिए मनोरंजन का लोकप्रिय साधन बन गया। 21वीं सदी की शुरुआत ने निश्चित रूप से भारतीय जीवनशैली को बदल दिया है जिसका असर जादू प्रदर्शन पर भी देखा जा सकता है। यह प्रदर्शन अब अपनी लोकप्रियता कहीं खोता जा रहा है जिससे इनसे ज्दुए कलाकारों के लिए जीवनयापन करना कठिन हो गया है। टेलीविज़न और इंटरनेट (Internet) तक लोगों की पहुंच ने जादू से सम्बंधित आश्चर्यों को धूमिल कर दिया है। यह प्रदर्शन अब उतना शानदार नहीं है जितना पहले हुआ करता था।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Magic_(illusion)
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Magic_in_India
3. https://bit.ly/2RzKo8L
4. https://bit.ly/2ruqVf2
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://pixabay.com/no/photos/street-magic-india-chennai-586369/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Early_history_of_fantasy#/media/File:Ali-Baba.jpg
3. https://www.flickr.com/photos/kathika/2452412120
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