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वर्तमान में वायु प्रदूषण अपने चरम पर है। दिल्ली सहित पूरा उत्तर प्रदेश ही इस समस्या से बहुत बुरी तरह से घिरा हुआ है क्योंकि यहां वायु गुणवत्ता का अच्छा स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता चला जा रहा है। इसके प्रभाव से जहां सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड रहा है, वहीं लोग श्वसन सम्बंधी बीमारियों से भी ग्रसित हो रहे हैं। वायु गुणवत्ता को वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air quality index -AQI) के माध्यम से मापा जाता है। यह सूचकांक बताता है कि आपकी हवा कितनी साफ या प्रदूषित है और इससे जुड़े स्वास्थ्य प्रभाव आपके लिए चिंता का विषय हो सकते हैं या नहीं। वर्तमान में वायु प्रदूषण अपने चरम पर है।
दिल्ली सहित पूरा उत्तर प्रदेश ही इस समस्या से बहुत बुरी तरह से घिरा हुआ है क्योंकि यहां वायु गुणवत्ता का अच्छा स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता चला जा रहा है। इसके प्रभाव से जहां सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड रहा है, वहीं लोग श्वसन सम्बंधी बीमारियों से भी ग्रसित हो रहे हैं। वायु गुणवत्ता को वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air quality index -AQI) के माध्यम से मापा जाता है। यह सूचकांक बताता है कि आपकी हवा कितनी साफ या प्रदूषित है और इससे जुड़े स्वास्थ्य प्रभाव आपके लिए चिंता का विषय हो सकते हैं या नहीं। AQI कुछ घंटे या दिन प्रदूषित वायु में सांस लेने के कारण स्वास्थ्य पर पडने वाले प्रभावों पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
AQI का स्तर जितना अधिक होगा, वायु प्रदूषण का स्तर भी उतना ही अधिक होगा और स्वास्थ्य की चिंता भी उतनी ही अधिक होगी। उदाहरण के लिए, यदि AQI, 50 है तो यह अच्छी वायु गुणवत्ता का प्रतिनिधित्व करता है जबकि यदि AQI, 300 से अधिक है तो यह खतरनाक तथा हानिकारक वायु गुणवत्ता का प्रतीक है।
यदि जौनपुर की बात की जाए तो यहां की वायु गुणवत्ता अस्वास्थ्यकर है क्योंकि AQI रीडिंग (reading) 164 मापी गयी है। हालांकि उत्तर प्रदेश की तुलना में यह स्थिति बेहतर है क्योंकि पूरे उत्तर प्रदेश का AQI स्तर 400 मापा गया है जोकि एक आपातकालीन स्थिति को इंगित करता है। 100 से नीचे की AQI रीडिंग को आमतौर पर संतोषजनक माना जाता है। किंतु जब AQI का मान 100 से ऊपर होता है, तो वायु गुणवत्ता को लोगों के कुछ संवेदनशील समूहों के लिए अस्वास्थ्यकर माना जाता है।
वायु गुणवत्ता सूचकांक के विभिन्न स्तरों को छह श्रेणियों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक श्रेणी स्वास्थ्य चिंता के एक अलग स्तर से मेल खाती है। 0 से 50 तक का AQI स्तर वायु गुणवत्ता का अच्छा स्तर माना जाता है। 51 से 100 तक की वायु गुणवत्ता स्वीकार्य होती है। हालाँकि, कुछ लोगों के स्वास्थ्य के लिए यह चिंता का कारण हो सकती है, जो वायु प्रदूषण के लिए असामान्य रूप से संवेदनशील हैं। 101 से 150 तक का AQI स्तर संवेदनशील समूहों के लिए अस्वास्थ्यकर होता है। हालांकि इस AQI स्तर में आम जनता के प्रभावित होने की संभावना नहीं है। 151 से 200 के बीच के AQI स्तर को अस्वस्थ स्तर माना जाता है। यदि AQI स्तर 201 से 300 के बीच है तो यह बहुत अस्वास्थ्यकर है। AQI स्तर 300 को आपातकालीन स्थिति माना जाता है।
सामान्यतः उद्योगों, कारखानों, वाहनों इत्यादि से निकलने वाली हानिकारक गैसों को ही मुख्य रूप से वायु प्रदूषण का मुख्य कारण माना जाता है। और इसलिए केवल इन ही कारकों को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है। किंतु इस प्रकार का नियंत्रण वायु प्रदूषण को अल्प समय के लिए ही नियंत्रित कर सकता है। यदि वायु प्रदूषण को पूर्ण रूप से खत्म करना है तो इसके मुख्य कारण को समझना जरूरी है। उत्तर भारत में प्रदूषण के लिए सरकार द्वारा हरियाणा और पंजाब के किसानों को दोषी ठहराया जा रहा है।
सरकार का मानना है कि फसल कटने के बाद बची डंठलों को किसानों द्वारा बहुत अधिक मात्रा में जलाने के कारण ही वायु प्रदूषण बढ रहा है। किंतु इसका वास्तविक कारण बचे उत्पाद का जलना नहीं बल्कि मुफ्त पानी, बिजली और मूर्खता (STUPIDITY) है। पंजाब और हरियाणा में चावल की खेती बहुत अधिक मात्रा में की जाती है। इतनी अधिक कि इसका संग्रहण करना मुश्किल हो जाता है और परिणाम-स्वरूप इसका निर्यात दूसरे देशों में करना पडता है। इन क्षेत्रों में मुफ्त पानी और बिजली की बहुत अधिक सुविधा है जो अनावश्यक खेती को प्रोत्साहित करती है। इससे न केवल अनावश्यक फसल उत्पादित होती है बल्कि बचने वाला उत्पाद भी बहुत अधिक मात्रा में संग्रहित हो जाता है जिसे अंततः जलाया जाता है।
संदर्भ:
1. https://airnow.gov/index.cfm?action=aqibasics.aqi
2. https://bit.ly/33dQw9Z
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