समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 725
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
पृथ्वी इस ब्रह्माण्ड का एक अद्भुत ग्रह है यह अपने जैव विविधता के लिए जाना जाता है। ब्रह्माण्ड में वैसे तो कई ग्रह हैं जोकि एक दूसरे से भिन्न हैं, लेकिन इस दुनिया के कुछ ग्रह ऐसे भी हैं जिनमे एक बड़ी समानता है। ग्रहों जैसे की बृहस्पति, शनि आदि में हम छल्ले देखते हैं परन्तु वहीँ जब हम इसके उलट देखते हैं तो पृथ्वी पर किसी प्रकार का कोई छल्ला नहीं है। अब यह जानना आवश्यक हो जाता है कि- 1. छल्लों का निर्माण किस प्रकार से होता है, 2- पृथ्वी पर कोई छल्ला क्यूँ नहीं है? 3- ये छल्ले आखिर कार्य किस प्रकार से करते हैं?
इन सभी बिन्दुओं के अध्ययन के लिए हमें अंतरिक्ष विज्ञान के गर्भ में जाना पड़ेगा। शनि ग्रह के पास बड़ा और जटिल छल्ला है। शनि के पास मौजूद छल्ले में पानी से बने बर्फ के छोटे टुकड़े से लेकर बड़े विशालकाय पहाड़ जैसे कण हैं। विभिन्न अंतरिक्ष वैज्ञानिकों या खगोलविदों में इस बात को लेकर मतभेद है की आखिर ये कहाँ से बने, कहाँ से आये, और ये कितने पुराने हैं। शनि ग्रह के इस बिंदु पर अधिकतर लोगों की आम सहमति है कि ये छल्ले लगभग शनि की उम्र के बराबर ही हैं। छल्लों के घूमने के कारण ये कण टूटते और छोटे भी दिखाई देते हैं। शनि के अलावा बृहस्पति के भी छल्ले हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है की पृथ्वी को भी करोड़ों साल पहले छल्ले हुआ करते थें। उनके कथन के अनुसार जिस वक्त पृथ्वी के चंद्रमा का विकास हो रहा था उस समय ये छल्ले मौजूद थे। एक सार्वभौमिक कथन के अनुसार एक थेइया नामक ग्रह पृथ्वी के नजदीक आया और टकराया, इससे पृथ्वी की कक्षा में हुई इस टक्कर के कारण एक छल्ले का निर्माण हुआ, जो बाद में हमारे चन्द्रमा में परिवर्तित हो गया। यदि उस छल्ले के अवशेष आज भी पृथ्वी की कक्षा में ही होते तो आज हमारे पास चन्द्रमा के स्थान पर सिर्फ एक छल्ला ही होता। उस छल्ले के अवशेष रोच लिमिट के बाहर हो गए थें।
अब यह प्रश्न उठता है कि आखिर ये रोच लिमिट क्या है? रोच लिमिट फ़्रांसीसी गणितज्ञ एडवर्ड रोच के नाम से आया है जिन्होंने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि एक ग्रह का गुरुत्वीय बल और उस ग्रह के चाँद का गुरुत्वीय बल एक सामान नहीं होता। इस सिद्धांत में एक ध्यान देने वाली बात यह भी है, कि एक ग्रह का गुरुत्वीय बल चन्द्रमा के एक सतह की ओर ज्यादा होता है और दूसरी की ओर कम। अब इस कथन को यदि छल्लों के साथ जोड़ के देखते हैं तो यह पता चलता है की यदि एक चन्द्रमा या छल्ला किसी ग्रह के नजदीक होगा तो वह पूर्ण रूप से विलयित हो जाएगा। यदि यह माना जाए की वे छल्ले आज भी पृथ्वी के चारों ओर हैं और या फिर किसी और टक्कर से नए छल्लों का निर्माण हो सकता है तो यह विभिन्न स्थानों पर निर्भर करेगा कि व्यक्ति उस स्थान से इन छल्लों को दिशा में देख पायेगा।
अगर भविष्य में प्रथ्वी के चारों ओर छल्ले बनते हैं या पूर्व में यदि छल्ले बने भी होंगे तो वे पृथ्वी के उपरी अर्ध भाग से देखे जा सकते हैं जिनको पूरब से पश्चिम की और तक एक पतली रेखा में देखा जा सकता था। यदि पृथ्वी के उपरी अर्ध भाग में एक व्यक्ति खडा होगा, दूर गगन में उतनी ही सही तरीके से ये छल्ले उसे दिख सकते हैं, इसके अलावा कुछ ऐसे भी बिंदु होते हैं जहाँ से एक व्यक्ति उन छल्लों को भी छूता हुआ प्रतीत हो सकता है। परन्तु अभी पृथ्वी के आसपास छल्ले तो नहीं हैं, परन्तु यदि होते तो उपरोक्त कथन की तरह का अनुभव हो सकता था।
सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/32NJIQa
2. https://bit.ly/33V2chA
3. https://www.universetoday.com/134604/doesnt-earth-rings/
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.