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जौनपुर कृषि का एक बड़ा केंद्र है और आपूर्ति या विभिन्न खाद्य और नकदी फसलों के बड़े हिस्से में योगदान देता है। विश्व खाद्य दिवस प्रत्येक वर्ष 16 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाते हुए कई वर्ष हो चुके हैं, लेकिन विश्व भर में भूखे पेट सोने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है, यह संख्या आज भी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। विश्व में आज भी कई लोग ऐसे हैं, जो भुखमरी से जूझ रहे हैं।
विश्व खाद्य दिवस की स्थापना नवंबर 1979 में खाद्य और कृषि संगठन के 20वें सामान्य सम्मेलन में संगठन के सदस्य देशों द्वारा की गई थी। हंगरी के पूर्व कृषि और खाद्य मंत्री डॉ. पाल रोमानी के नेतृत्व में हंगरी प्रतिनिधिमंडल ने खाद्य और कृषि संगठन सम्मेलन के 20वें सत्र में विश्व भर में विश्व खाद्य दिवस मनाने के विचार का सुझाव रखा था। तब से यह प्रत्येक वर्ष 150 से अधिक देशों में मनाया जाता है, जिसके तहत गरीबी और भुखमरी के मुद्दों पर जागरूकता फैलाई जाती है।
भारत में, स्थानीय, क्षेत्रीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सहकारी समितियों का संजाल है जो कृषि विपणन में सहायता करते हैं। एक कृषि सहकारी, जिसे किसानों के सहकार के रूप में भी जाना जाता है, इसमें किसान अपने संसाधनों को जमा करते हैं। जिन वस्तुओं का ज्यादातर नियंत्रण किया जाता है वे हैं खाद्यान्न, जूट (Jute), कपास, चीनी, दूध और बादाम आदि। आनंद पैटर्न (Anand Pattern) पर आधारित डेयरी फार्मिंग (Dairy farming), एक एकल विपणन सहकारी के साथ, भारत का सबसे बड़ा आत्मनिर्भर उद्योग और इसका सबसे बड़ा ग्रामीण रोज़गार प्रदाता है। आनंद मॉडल के सफल कार्यान्वयन ने भारत को विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बना दिया है। वहीं गन्ने से चीनी का उत्पादन ज्यादातर स्थानीय किसानों के स्वामित्व वाली सहकारी गन्ना मिलों में होता है। अंशधारियों में मिलों को गन्ना आपूर्ति करने वाले सभी छोटे और बड़े किसान शामिल हैं।
खाद्य सुरक्षा और कृषि सहकारी का आपस में संबंध है। कृषि सहकारी 2012 में विश्व खाद्य दिवस का विषय "कृषि सहकारी समितियाँ: दुनिया का पेट भरने की कुंजी" रहा था, जो खाद्य सुरक्षा में सुधार और भुखमरी के उन्मूलन में योगदान करने वाली भूमिका पर ज़ोर देता है। खाद्य सुरक्षा को प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदमों में से एक सहकारी समितियों, निर्माता संगठनों और अन्य ग्रामीण संस्थानों में निवेश करना है।
विश्व भर में कई निर्माता संस्थाएं और सहकारी संस्थाएं जैसे ग्रामीण संस्थान छोटे किसानों, मछुआरों, पशुधन रखवाले, वन धारकों और अन्य उत्पादकों की मदद से खाद्य सुरक्षा में योगदान करते हैं, जो उन्हें आवश्यक जानकारी, उपकरण और सेवाओं तक पहुंचने में मदद करते हैं। इससे उन्हें खाद्य उत्पादन बढ़ाने, अपने माल का विपणन करने और रोज़गार बनाने, अपनी आजीविका में सुधार करने और विश्व में खाद्य सुरक्षा बढ़ाने की अनुमति मिलती है।
धारणीय निवेश भी बढ़ती ग्रामीण आय के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देता है, जिससे अधिक पौष्टिक आहार तक पहुंच में सुधार और खाद्य उपयोग में सुधार लाया जाता है। वहीं सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के बीच सहयोगात्मक निवेश भी प्रौद्योगिकी तक पहुंच बढ़ाने और ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सुधार करने में मदद कर सकता है। ग्लोबल एग्रीकल्चर एंड फूड सिक्योरिटी प्रोग्राम (Global Agriculture and Food Security Program) के आंकड़ों के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के निवेशों के माध्यम से, 1.04 करोड़ से अधिक किसानों और उनके परिवारों को समर्थ और सशक्त बनाने में मदद मिली है। संयुक्त रूप से, उनके जीवनकाल में, ये परियोजनाएं 1.2 करोड़ से अधिक ग्रामीण लोगों को प्रभावित करेंगी, जिनमें से 51 लाख महिलाओं और लड़कियों के होने की उम्मीद है। सार्वजनिक क्षेत्र 31 देशों में 47 परियोजनाओं का समर्थन करता है, और निजी क्षेत्र 27 देशों में 61 कृषि व्यवसाय और साथ ही 27 देशों में 67 सलाहकार परियोजनाओं का समर्थन करता है।
ऊपर दिये गये चित्र में विश्व खाद्य दिवस के मौके पर इटली गणराज्य द्वारा जारी किया गया सिक्का द्रश्यन्वित है।कृषि में निवेश कभी भी सतत विकास के लिए वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा, लेकिन सही नीतियां, जोखिम को कम करते हुए अधिकतम सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय निवेश का लाभ उठाया जा सकता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/World_Food_Day
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Agricultural_cooperative#India
3. http://www.fao.org/fileadmin/templates/getinvolved/images/WFD2012_leaflet_en_low.pdf
4. http://www.ifpri.org/blog/how-international-investments-agriculture-shape-food-security
5. https://www.gafspfund.org/
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