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कई वर्षों से मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के साथ लगातार छेड़छाड़ करता आ रहा है। जिसके दुष्परिणाम भी हमें दिखाई देने लगे हैं। हम सब इस बात से तो अच्छी तरह परिचित हैं कि पर्यावरण को संतुलित रखने में पेड़-पौधों के साथ ही पशु-पक्षियों की भूमिका भी अहम होती है। लेकिन मनुष्य के अत्यधिक हस्तक्षेप के चलते इन सबकी संख्या कम होती जा रही है। ऐसी ही कुछ स्थिति महाराष्ट्र के राज्य पक्षी, हरियल कबूतर (ट्रेरन फॉनीकॉप्टेरा (Treron phoenicoptera)) की है।
आमतौर पर, हरियल कबूतर झुंड में सड़क के किनारे पीपल और बरगद के पेड़ों पर पाए जाते हैं, लेकिन भोजन की तलाश में ये उड़ते हुए शहरों के बगीचों में भी देखे जाते हैं।
ये पक्षी अधिकतर फलों का सेवन करते हैं, लेकिन कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग, सड़क चौड़ीकरण में फल-फूल वाले पेड़ों की कटाई और शहर में व्यापक निर्माण गतिविधियों के कारण ये पक्षी विलुप्त होने की स्थिति में आ सकते हैं। वैसे तो इन्हें वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के अंतर्गत अनुसूची – IV (यानी कम चिंताजनक स्थिति) में वर्गीकृत किया गया है।
हरियल कबूतर सामाजिक पक्षी होते हैं और ये कई पक्षियों के झुंड में रहते हैं और इन का सबसे छोटा समूह 5 से 10 पक्षियों का होता है। ये पक्षी ज़मीन पर बहुत कम उतरते हैं तथा अक्सर पेड़ों पर और ऊंचे स्थानों पर ही बैठते हैं।
हरियल कबूतर का आकार 29 से 33 सेंटीमीटर तक होता है तथा इसका वज़न मात्र 225 से 260 ग्राम के बीच होता है। इनके पंखों का फैलाव 17 से 19 सेंटीमीटर लंबा होता है और इनके शरीर का रंग हल्का पीला-हरा होता है। वहीं इनके सर के ऊपर हल्के नीले भूरे रंग के बाल होते हैं, उनके कंधों पर बैगनी रंग का पैच (Patch) और पंखों में एक विशिष्ट पीले रंग की पट्टी होती है। हरियल कबूतर के पैर चमकीले पीले रंग के होते हैं जिसकी वजह से इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। हरियल कबूतर अपना घोंसला तिनकों और पत्तियों से पेड़ों और झाड़ियों में बनाते हैं और यह एक प्रजनन काल में एक से दो अंडे ही देते हैं, इन अंडो का रंग चमकीला सफेद होता है। अंडे से बच्चे 21 से 25 दिनों में बाहर आते हैं। इस अवधि के दौरान नर भोजन की व्यवस्था करता है और घोंसले के पास रहता है। वहीं मादा भी केवल सुबह धूप लेने के लिए घोंसले से बाहर निकलती है।
हरियल कबूतर हमारे भारत के अलावा श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, चीन, थाईलैंड, कंबोडिया आदि देशों में भी पाया जाता है। यह केवल सिंध, बलूचिस्तान और रेगिस्तानी इलाकों को छोड़कर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/316tNMq
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Green_pigeon
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Yellow-footed_green_pigeon
4. https://bit.ly/2m7WDvN
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